देवरानी जेठानी

 किटी पार्टी में आज चर्चा का विषय है “देवरानी जेठानी के सम्बन्ध”। 

सारी औरतें देवरानी जेठानी के रिश्ते की खटास की परिचर्चा करने में मशगूल हैं, हर औरत अपने बुरे अनुभव का रोना रो रही । शांति भी कुछ बताने की चाहत में भटकते हुए बीस साल पहले की यादों में खो जाती है, और सारा दृश्य उसकी जेठानी के इर्द गिर्द घूम जाता है ।

    शांति खाने की मेज के सहारे खड़ी अपनी दुकान के गत्ते काट काट कर बंडल बना के रख रही, आख़िर दीवाली सिर पर है, और मिठाई के डिब्बों की डिमांड बहुतायत में है, पास ही मेज पर ही उसकी एक महीने की बेटी लेटी है, उसको भी उसे दूध पिलाना है, गत्ते का बंडल अभी काफ़ी बचा है, उसका हाथ मशीन की गति से चलायमान है, इतने में पास खड़ी जेठानी, जो नौ महीने के गर्भ से है, उससे धीरे से कहती है, लगता है कि उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई है, दर्द बढ़ रहा है, और वह डॉ. के पास जा रही । उसने सब्ज़ी बना दी है, तुम समय निकाल रोटियाँ बना लेना । जेठानी को तरस भरी नज़रों से देखते हुए शांति फिर गत्ते काटने लगती है । रात के नौ बजे हैं, बार बार घड़ी देखती है, इधर गत्ते, उधर रोटी, और साथ में पति का रोष भरा चेहरा, जो सुबह जाते वक्त धमकाते हुए दिखा गए थे कि तीन दिन हो गए ये गत्ते का ढेर लगे हुए । तुमसे कुछ नही होता, आज खत्म हो जाय, मुझे शाम को डिब्बे बनाने हैं। सारा कुछ सोचते सोचते उसे जेठानी की चप्पलों की भारी सी आहट सुनाई दी ।उसने हड़बड़ाकर आश्चर्य भरी नजरों से देखा । अरे दीदी आप लौट आईं, क्या हुआ ? 

हाँ..छोटी..डॉ ने कहा है अभी दो तीन घंटे का समय है, मैंने सोचा बगल की ही तो बात है, छोटी के पास बहुत काम हैं, बिटिया भी रो रही होगी। क्यों न रोटी बना आऊँ? रोटी बना के चली जाऊँगी। फिर तब तक तू भी खाली हो जाएगी और मुझे लेकर चलेगी ।

आज देवरानी जेठानी परिचर्चा में शांति की आंखें पूरी तरह गीली होकर बह चलीं, उस महामना जेठानी की याद में ।

**जिज्ञासा सिंह**

15 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
    'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
    लघुकथा के चयन पर अतीव हर्ष हुआ ।
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।।

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  3. इतना प्‍यार और वो भी देवरानी जिठानी में...कम ही दिखता है...जिज्ञासा जी, आपने ये प्रेरक प्रसंग यहां बताकर बहुत कुछ सीखने को दे दिया...

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  4. मेरी मां भी कुछ ऐसी ही जेठानी थी, बहुत ही सुन्दर और मार्मिक कथा,सादर नमस्कार जिज्ञासा जी 🙏

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    1. हमेशा हर रिश्ते में खटास नहीं होती ।
      मैंने जीवन में इन रिश्तों में खटास से ज़्यादा मिठास देखी है ।
      बहुत आभार सखी ।

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  5. उत्तर
    1. बहुत आभार आपका ज्योति जी । ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी सृजन को सार्थक कर गई ।

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  6. बहुत सुन्दर !
    काश कि आपस में हमेशा गुत्थम-गुत्था करने वाली जेठानियाँ-देवरानियाँ इस कथा से कुछ सीख ग्रहण करतीं !

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