इनको भी अपने घर में चैन नहीं। जब देखो तब बेटे का सिर खाते रहते हैं... बुला लो..बुला लो.. बेटा बहुत दिन हो गया तुम लोगों से मिले हुए । मुन्ना की याद आ रही ।
.. मिन्नी की याद आ रही ।
न मुन्ना न मिन्नी, इन्हें तो बस अपनी पड़ी है।
शालू चाहरदीवारी के सहारे खड़ी अपनी पड़ोसन नीलम को आज ही अभी अभी गाँव से पधारे, अपने ससुर का दुखड़ा सुना रही थी । अभी तो उसकी ससुर से मुलाकात भी नहीं हुई थी । वे घर में घुसे ही थे और मुँह धोने गुसलखाने में चले गए थे । और वह इधर चली आई थी।
उसने धीरे-धीरे फिर सुनाना शुरू किया ..
जानती नहीं भाभी जी इनकी उमर आपकी अम्मा जी से कम थोड़ी है, अब आपकी अम्मा जी तो पाँच साल पहले ही चली गईं लेकिन ये तो संजीवन बूटी पिए हैं, इनकी भगवान के यहाँ पूँछ नहीं.. न जाने कब..क्या कहूँ ? इनसे भी तो नहीं कह सकती । हमेशा कुछ न कुछ कहानी गढ़े रहते हैं, बाप-बेटा ।
शालू अपनी धुन में इतनी लीन हो गई
कि उसे पता जी नहीं चला कि बाबू जी कब उसके पीछे आके खड़े हो गए और झिझकते हुए सिर नीचा करके बोले देखो बहू तुम्हारे लिए गाँव से ये जौ चने का सत्तू, और अपने पेड़ की अमिया लाया हूँ ।
सत्तू के साथ अमिया का पना बनाना । गर्मियों में लू नहीं लगेगी।
हाँ देखो ये गन्ने का सिरका भी बड़ा फायदेमंद है। तुम्हे पिछले साल लू लग गई थी न । अपना ख़्याल नहीं करती बेटा तुम ।
तभी तो मैं आने के लिए परेशान था । परसों गाँव का एक मुकदमा अपनी कचहरी में लगा है, मैं कल चला जाऊँगा । बिटिया के पेपर भी हैं, तुम्हें कोई तकलीफ़ नही दूँगा ।
वो तो ..वो तो.. ऐसे ही..वो बाबू जी को अचानक देख
शालिनी हड़बड़ा गई ।
उसने जल्दी से अपना आँचल ठीक किया और पैरो में झुकते हुए बोली..चरण स्पर्श बाबू जी ।
बाबू जी ने उसके शीश पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी । सानंद रहो, भगवान तुम्हें लंबी उमर दें ।
दीवार के उस पार खड़ी नीलम अवाक रह गई ।
**जिज्ञासा सिंह**