गागर में सागर ( गद्य )
मेरे इस ब्लॉग में मेरी कहानियों और लेखों का संग्रह है ,आशा है अपको रुचिकर लगेंगे-
गणतंत्र दिवस की वो प्रभातफेरी जो भुलाए नहीं भूलती
इनको कैसे समझाएँ ? ( कामवाली )
अरे अजनारा तुम कैसे ? कहाँ से आ रही हो ? तुम तो बाहर चली गईं थीं । अरे हाँ ! तुम तो शायद हैदराबाद गई थीं, कब आईं वहाँ से ? क्या हुआ ? सपरिवार लौट आई क्या ? या तुम्हारा घरवाला अभी वहीं है ? क्या हुआ ? इस तरह से चुप क्यों हो ?
आज़ तीन साल बाद अजनारा को देखते ही मैंने सवालों की झड़ी लगा दी और वह खामोशी से मेरी बातों को सुनती रही । कहती भी क्या ? वह बेचारी तो अपने पति के साथ न चाहते हुए भी अपने सारे लगे लगाए काम छोड़कर हैदराबाद गयी थी ।मैंने उसे कितना रोका था कि तू इतने छोटे बच्चों को लेकर अजनबी शहर में कैसे रहेगी ? फिर तेरा घरवाला भी कोई ख़ास कमाऊ नहीं है, जो तेरे चार बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाएगा, इसके अलावा उसकी रोज़ नशा खोरी की आदतें तुझे कहीं भूखों मरने के लिए न मजबूर कर दें । कुछ तो मैं अजनारा के लिए चिंतित थी,उससे ज़्यादा मैं अपने लिए थी,क्योंकि वह मेरी बारह साल पुरानी कामवाली थी, जिसके भरोसे मैंने अपने छोटे छोटे बच्चों को पालकर बड़ा किया था, इसके अलावा मेरे हर सुख दुःख में उसने मेरा ऐसे साथ निभाया था, जैसे वह मेरे पिछले जन्म की क़र्ज़दार हो ।हाँ मैंने भी अपनी तरफ़ से उसके लिए, कुछ भी करने में कोई कोर कसर, कभी भी नहीं छोड़ी, उसे जब भी कोई ज़रूरत पड़ी, मैं हमेशा खड़ी रही । इसलिए मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी, कि वह मुझे छोड़कर कहीं और काम के तलाश में जा सकती है । चूँकि सुबह से शाम तक मैं अजनारा- अजनारा करती रहती थी और उसने भी कभी किसी काम के लिए मना नहीं किया, इसलिए मुझे उसके बिना अपने घर का कोई काम होता दिखाई ही नहीं देता था । और मुझे उसकी आदत सी पड़ गई थी ।
पर मैं उसे कितना समझा सकती थी ? जब उसका घरवाला उसे नहीं छोड़ रहा था, तो वह रुकती भी तो कैसे ? वह अपना हिसाब कर अपने घरवाले के साथ,ज़्यादा पैसा कमाने हैदराबाद चली गई थी ।आज इतने दिनों बाद अपने दरवाज़े पर रुआंसी सी अजनारा को देख मैं हतप्रभ थी, मेरे कई बार पूँछने के बाद वह रोती हुई बोली कि यहाँ से जाने के बाद , उसके घरवाले ने उसे कभी कोई काम नहीं करने दिया पर उसकी बड़ी बेटी को किसी के घर छोड़ आया और बोला कि अब हमें कभी भी पैसों की कमी नहीं पड़ेगी,मेमसाहब तब से आज तक मैंने बेटी को एकबार भी नहीं देखा, और घरवाला खुद दारू पी कर पड़ा रहता है और जैसे ही नशा उतरता है, फिर कहीं से पैसे लाता है और खा पी के खत्म कर देता है, इतना कहते कहते वह ज़ोर ज़ोर से रोते हुए मेरे पैरों पे गिर पड़ी और गिड़गिड़ाने लगी, मेमसाहब मेरी लड़की को बचा लीजिए ,मेरी लड़की को घरवाले ने बेंच दिया है वो लोग उसको अब हमें नहीं देंगे,घरवाले ने उनसे पैसा ले लिया है, घरवाले ने मुझसे झूठ बुलवाया था कि हम हैदराबाद जा रहे हैं, हम कहीं नहीं गए थे, हम तो यहीं छुप के रह रहे थे । मेमसाहब माफ़ कर दीजिए। वो बराबर रोये जा रही थी, और मैं अचम्भे से उसे देखे और सुने जा रही थी ।
मुझसे जब नहीं सुना गया तो मैंने उसे चुप कराया और पीने के लिए पानी दिया, अब वह थोड़ी शांत थी, मैंने संयत होकर कहा, कि अब वह मुझसे क्या चाहती है ? उसने कहा कि उसका घरवाला सात दिन से ग़ायब है, मिल नहीं रहा है ।मैं ढूँढ ढूँढ के थक गई हूँ ।पुलिस भी कुछ नहीं बता रही है। मेरा तो सिर चकरा गया कि अब क्या करूँ ?फिर भी मैंने अपने जानने वाले एक पुलिस वाले को फ़ोन किया जो उसी इलाक़े का इंचार्ज था । बाद में पता चला कि उसका पति नशे की हालत में, किसी फूटपाथ पर पड़ा हुआ मिला,उसने इतना नशा कर लिया था कि फिर कभी उठ नहीं पाया, उसकी मौत हो गई ।
आज जब अजनारा पति और बेटी को खोकर, बिल्कुल असहाय, जर्जर, ग़रीबी और भुखमरी के कगार पर पहुँच गई, तब दोबारा मेरे पास आई है । मैं क्या करूँ ? कि उसका थोड़ा सा दर्द कम हो जाय। इसी सोच में डूबी मैं अपने ही कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाश रही हूँ ?
**जिज्ञासा सिंह**
महिला ग्राम प्रधान की घरेलू विसंगतियाँ (महिला सशक्तिकरण )
कुछ सोचते हुए मैं ग्राम प्रधान के सीढ़ीदार घर पे एक-एक सीढ़ी चढ़ रही थी, और घर के दालान से ,छन-छन के आ रही,कई लोगों के बतियाने की आवाज़ सुन रही थी , अचानक किसी ने कहा, सुनो प्रधान बाबू अबकी बार तो महिला सीट थी, चाची चुनाव लड़ीं और प्रधान हो गईं और तुम मुँह देखते रह गए । इतनी सी बात के बाद प्रधान जी की ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। ये कहते हुए वो चीख रहे थे वो, कि कौन है ? जो कहता है ? कि चाची प्रधान हैं, अरे दस्तखत कर देने से कोई प्रधान हो जाता है, बीस साल से घर तो सम्भाल नहीं पाई । पंचायत संभालेंगी वो । अपने लड़के बच्चे सम्भाल लें, समझो इनकी प्रधानी मुकम्मल है । इनके बस का कुछ नहीं है । इस संसार में औरतों से कुछ सम्भला है भला । झूठे औरतों को बढ़ावा दे रही है सरकार । करना धरना तो सब,हम आदमी जात को ही है ।
इतना सुनकर मैं प्रधान जी के दरवाज़े पे ठिठकी और ऊपर जाने के बजाय उल्टे पाँव धीरे से लौट ली और रास्ते भर सोचती रही कि क्या हम औरतें इतनी ही नाकाबिल हैं या हमें इतना सब सुनने के लिए पाला ही गया है,आख़िर उस महिला का क्या दोष है ? जो चार हज़ार लोगों की, ग्राम सभा की प्रधान है ।कुछ न कुछ तो उनमें क़ाबिलियत होगी ही ,जो लोगों ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना है, मेरा जिज्ञासु मन ये जानने के लिए व्याकुल हो गया कि सच में हमारी ग्राम प्रधान की क्या खूबी है? जो इतने महिला विरोधी मानसिकता वाले पति के रहते प्रधान हो गईं ,आख़िरकार ये उनके घर की पहली प्रधानी जो है।
चूँकि मैं बाहर रहती हूँ और अपने गाँव कभी कभी आती हूँ , इसलिए मैंने अपने गाँव के जागरूक लोगों से विस्तृत चर्चा की, तदुपरांत जो सच्चाई सामने आई,उसे सुनकर मैं दंग रह गई ।मुझे पता चला कि ग्राम पंचायतों में महिला प्रधान के जितने भी कार्य हैं, चाहे वो जनपद स्तर के हों,ब्लॉक स्तर के हों, या ग्राम स्तर के, हर कार्य मेरे गाँव की महिला प्रधान अपने पति से ज़्यादा अच्छा करने में सक्षम हैं,साथ ही साथ उनके अंदर सेवा भाव तथा गाँव के विकास को लेकर एक विस्तृत खाका है,जिससे पंचायत के चुनाव के समय में लोग ख़ासा प्रभावित हुए और उन्हें वोट देकर विजयी बनाया था।परंतु आज सारा खेल ही उल्टा हो गया है।प्रधान तो पत्नी है, और कार्य क्षेत्र पतिदेव सम्भाल रहे हैं ,जो कि पत्नी से कम पढ़े लिखे हैं ।प्रधानी जीतने के बाद उन्होंने पत्नी का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है ,उड़ती उड़ती तो ये खबर सुनायी पड़ी, कि पत्नी अगर घर से बाहर निकलीं और लोगों से मिलीं, तो बाहर की हवा लगेगी और वो बिगड़ जाएँगी।अतः सारा कार्यभार उन्होंने सम्भाल लिया है । और पत्नी को जब बहुत ज़रूरी काम हो,जो पति द्वारा किए जाने पर, दंड भुगतना पड़ सकता है, तभी अपनी छत्रछाया में उन्हें ले जाते हैं ।कभी कभी तो प्रधान पति, पत्नी की जगह अपना दस्तख़त करने से भी नहीं चूकते।
मैं इन बातों को सुनकर हैरान हुई,और सोचने लगी कि इस तरह तो गाँव को महिला प्रधान होने का कोई फ़ायदा नहीं मिल सकता, और महिला प्रधान अपनी प्रतिभा के द्वारा कोई कार्य कर ही नहीं पाएगी, इसके लिए सरकार को और समाज को कोई न कोई ठोस कदम उठाने होंगे ।जिससे महिला प्रधान अपने हिसाब से अपने कार्य को करे और ग्रामीण जीवन की हर छोटी बड़ी समस्या का निराकरण कर सके तथा गाँव के साथ साथ ग्रामीण महिलाओं और उनके बच्चों के जीवन स्तर में सुधार ला सके । तभी गाँवों को महिला प्रधान होने का फ़ायदा मिलेगा।
**जिज्ञासा सिंह**