कुछ तो गड़बड़ है !

धड़कता सा क्यूँ है ? आज मेरा दिल । क्या परेशानी है ? 
   सुबह सुबह मैं हैरान सी क्यूँ हैं ? कुछ तो गड़बड़ है, वीणा स्नानघर में कपड़े धोते हुए पास लगे शीशे में खुद को निहारती है, चेहरे पे भी असमंजस की स्थिति स्पष्ट झलक रही है । 
    अरे हाँ..अब समझ आया... आज चिड़ियाँ गायब हैं । कहाँ गईं ? उनकी चूं चूं चां चां चाँ चाँ चीं चीं सब गायब है.. क्यूँ वो आज इतनी शांत हैं ? क्या बात हो गई ?
     सोचते हुए वो कपड़े डालने लगी । और देख रही कि कहीं चिड़ियाँ दिख जाएँ । पर कहीं एक भी नहीं... बस दो कौवे बैठे हैं सामने घर के वर्षों पुराने एंटीने पर ।
     और गली में कामवाली के दो तीन बच्चे कल दीवाली में दगे पटाखों में पटाखे ढूँढ रहे ।
   इतने में एक बच्चे ने चुटपुटी बम पटका और अचानक धड़ाम की आवाज आई और कौवे चौंकते हुए फुर्र हो गए ।
वीणा समझ गई चिड़ियाँ क्यों और कहाँ गायब हैं ?......