कुछ तो गड़बड़ है !

धड़कता सा क्यूँ है? आज मेरा दिल। क्या परेशानी है? 

   सुबह-सुबह मैं हैरान सी क्यूँ हैं? कुछ तो गड़बड़ है, वीणा स्नानघर में कपड़े धोते हुए पास लगे शीशे में खुद को निहारती है, चेहरे पे भी असमंजस की स्थिति स्पष्ट झलक रही है। 

    अरे हाँ! अब समझ आया, आज चिड़ियाँ नहीं बोलीं। कहाँ गईं ? उनकी चूंचूंचींचीं सब गायब है, क्यूँ वो आज इतनी शांत हैं? क्या बात हो गई?

     सोचते हुए वो कपड़े डालने लगी। और देख रही कि कहीं चिड़ियाँ दिख जाएँ। पर कहीं एक भी नहीं। बस दो कौवे बैठे हैं, सामने के घर में वर्षों पुराने एंटीने पर।

     गली में कामवाली के दो-तीन बच्चे कल दीवाली में दगे पटाखों में पटाखे ढूँढ रहे।

   इतने में एक बच्चे ने चुटपुटी बम पटका, धड़ाम की आवाज आई और कौवे चौंकते हुए फुर्र हो गए।

वीणा समझ गई चिड़ियाँ क्यों और कहाँ गायब हैं?