नानी माँ की धरोहर ( मातृ दिवस )

       संदूक खोलते ही कई सिर उसमें झांकते हुए, जब टकराने लगे तो बड़ी मामी बोली थोड़ा धीरज धरो सभी, अभी एक एक कर सब सामान निकलेंगे और सबको दिखाएंगे..इतना हड़बड़ाओ नहीं कोई खजाना नहीं है, जो लुट जाएगा, तसल्ली रखो, अम्मा का बक्सा है थोड़ा संभाल संभाल कर निकालेंगे उनका सामान, नहीं तो ऊपर से ही नाराज़ होने लगेंगी, तुमको सबको पता ही है, वो अपना सामान कितना संभाल के रखती थीं, इतना सुनते ही राजन का छोटा बेटा बोला पर वो तो भगवान जी के पास चली गईं न दादी,आप ही तो बता रही थीं, कि बड़ी दादी अब कभी नहीं आएंगी, फिर वो ऊपर से बोलेंगी कैसे ? चुप्प, उसकी माँ ने उसको शान्त किया, और फिर सब लोग थोड़ा गमगीन हो गए नानी की याद में, थोड़ी देर में दोबारा बड़ी मामी ने फिर नानी के बक्से का सामान दिखाना शुरू किया । 

    धीरे धीरे वो सामान निकालती जा रही थीं और सभी अचरज भाव से देखते जा रहे थे, उजली सफेद साड़ियां ,(नानी रंगीन कपड़े नहीं पहनती थीं ), कई अंगोछे, ( जिससे नानी पैर पोंछती थीं ) लकड़ी की छोटी छोटी कई छड़ियां मिलीं, जिसके एक छोर पर लिपटा हुआ कपड़ा बंधा था ( जिससे नानी अपनी पीठ खुजलाती थीं और हम सबको तोहफे में देती थीं ) कई हाथ के बुने पंखे और सुंदर कशीदाकारी की हाथ की बनी डलियां मिलीं, जिन्हें जाड़े के दिनों में आंगन में बैठकर वो बीना करतीं थीं, कई सुंदर कढ़े हुए रुमाल मिले तथा एक दर्जन दस्ताने मिले नानी के हाथ के बुने हुए, फिर पांच रुपए, दस रुपए की कई नोटों की नई नई गड्डियां मिलीं जो घर में उनके बेटे, पोते, पोतियाँ, नानी को खुश होकर देते थे, आखिर वो घर की सबसे बड़ी बुजुर्ग थीं, और नाना की कच्ची उम्र में असामयिक मृत्यु के बाद अपने आठ बच्चों को बड़े संघर्षों से पाल पोसकर उच्च शिक्षा दी थी जिससे घर में सब बेटे बेटियों के साथ साथ अगली पीढ़ी के बच्चे भी बड़े बड़े अधिकारी थे और पूरा परिवार नानी को बहुत सम्मान तथा आदर देता था ।

    मामी ने फिर नानी के बक्से से समान निकलना शुरू किया, अचानक एक पैकेट में एक जैसी तीन कंघियां निकलीं जिसे देखते ही मेरे तीनों मामा एक साथ बोल पड़े कि देखो हमारी अम्मा केवल तीन कंघी हम तीन भाईयों के लिए छोड़ी हैं जिसे कि हम तीनों एक एक ले लें और अम्मा कंघी के बहाने हमारे सिर सहलाती रहें और आशीष देती रहें ये सब सुनकर सभी लोग द्रवित हो गए, हमारी तीनों मामियां हतप्रभ रह गईं, कहने लगीं कि जरा अम्मा का भाग्य तो देखो, जीते जी पूजी गईं, और मरने के बाद भी उनकी औलादें पूजा करने को तैयार हैं । देखो हम लोगों का क्या होता है ? और बड़ी मामी ने अम्मा का सारा सामान नानी के सारे रिश्ते नातों में एक एक कर के बांट दिया .. सब के हिस्से में कुछ न कुछ आया और छोटे बाल बच्चों को बराबर बराबर पैसे दे दिए..सारे लोग खुश हो गए.. और बोले कि नानी की जगह अब बड़ी मामी को इस घर की बागडोर दे दी जाय.. बड़ी मामी ने सबको अपने गले से लगा लिया । लगा जैसे नानी लौट आई हैं, और बक्से की धरोहर के साथ साथ अपने परिवार रूपी धरोहर को सम्भाल रही हैं, जो उनके बनाए नियमों, संस्कारों और मूल्यों को सहेजने में तत्पर है,और नानी के जीवन की पूंजी भी।

                                                                                                                       **जिज्ञासा सिंह**