बेला की लड़ियाँ

   मुझे गजरा बहुत पसंद है, वो जब आता है शाम को.. अक्सर उसके हाथ में बेला की लड़ियाँ होती हैं, वो आता ही कितना है, आर्मी में है न...
   कोई बात नहीं जब घर रहता है.. तब तो वो ये लड़ियाँ लाना नहीं भूलता..कितने प्यार से मेरे बालों में सजाता है.. फिर उन्हें निहारता है.. खो सा जाता है वो मेरे बालों में सजी लड़ियों में... सैरंध्री अपने मन में सोचकर पुलकित हो रही है, सामने टीवी पर समाचार चल रहा है, अचानक एंकर खबर पढ़ती है कि आतंकवादियों से लोहा लेते हुए मेजर शहीद.. ओह.. एक आह.. दूजी आह.. तीसरी आह पर वो बेहोश हो जाती है ।
  होश आता है तो सामने एक रथनुमा वाहन उसके गेट पर खड़ा है, जो सफेद बेला की लड़ियों से सुशोभित है...

ममत्व

    रिमझिम बूंदों को महसूस करने के लिए नंदनी ने ज्यों ही बरामदे से आँगन की तरफ कदम बढ़ाया, छत पर जाने वाली सीढ़ी के कोने में उसे  कुछ हिलता सा दिखाई दिया । उसने चश्मा ठीक करते हुए अंधेरे की तरफ़ झाँका, सहसा वो चौंक पड़ी, फुर्र फुर्र पंख फड़फड़ाता  छोटा सा बिल्कुल नन्हा परिंदा, जिसकी आँखें भी ठीक से नहीं खुली थीं, इधर उधर ढेले की मानिंद लुढ़क रहा था, नंदिनी हाय कहके चीख पड़ी। देखा तो फ़ाख्ता का बच्चा घोंसले से गिर गया था।
        उसने दौड़कर, हौले हौले सहलाते हुए उसे उठाया और सीने से चिपका लिया, बिना सोचे समझे वो नन्ही जान उसके वक्ष से चिपक गया, यूँ कहें उसके कोमल नाखून नंदिनी के आँचल में फँस गए, और नंदिनी ने सोचा कि परिंदे ने उसे अपनी माँ बना लिया।
       उसने सत्तू का घोल और दूध में पानी मिलाकर बारी बारी से परिंदे को पिलाया और उसकी जान बचायी । इसी तरह परिंदे को पालते पोसते कई दिन गुजर गए, धीरे धीरे माँ चिड़िया भी आने की कोशिश में, परिंदे के आसपास मंडराने लगी, अपने चिरौटे से मिलने के लिए उसका मन मचलने लगा, नंदिनी की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा, जब एक दिन माँ फ़ाख्ता अपने नन्हें चिरौटे को पंखों में छुपाती नज़र आई । एक दो दिन बाद माँ बच्चा गलबहियाँ करने लगे, परिंदे के पंखों ने भी रफ़्तार पकड़ी और दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और फुर्र से उड़ गए, और जाली की खिड़की से, सुकून भरी नज़रों से नंदिनी, उन्हें उड़ता देखती रह गयी । उसकी ममता ने टीस मारी और मुँह से निकला । आह !!

      **जिज्ञासा सिंह**