ममत्व

    रिमझिम बूंदों को महसूस करने के लिए नंदनी ने ज्यों ही बरामदे से आँगन की तरफ कदम बढ़ाया, छत पर जाने वाली सीढ़ी के कोने में उसे  कुछ हिलता सा दिखाई दिया । उसने चश्मा ठीक करते हुए अंधेरे की तरफ़ झाँका, सहसा वो चौंक पड़ी, फुर्र फुर्र पंख फड़फड़ाता  छोटा सा बिल्कुल नन्हा परिंदा, जिसकी आँखें भी ठीक से नहीं खुली थीं, इधर उधर ढेले की मानिंद लुढ़क रहा था, नंदिनी हाय कहके चीख पड़ी। देखा तो फ़ाख्ता का बच्चा घोंसले से गिर गया था।
        उसने दौड़कर, हौले हौले सहलाते हुए उसे उठाया और सीने से चिपका लिया, बिना सोचे समझे वो नन्ही जान उसके वक्ष से चिपक गया, यूँ कहें उसके कोमल नाखून नंदिनी के आँचल में फँस गए, और नंदिनी ने सोचा कि परिंदे ने उसे अपनी माँ बना लिया।
       उसने सत्तू का घोल और दूध में पानी मिलाकर बारी बारी से परिंदे को पिलाया और उसकी जान बचायी । इसी तरह परिंदे को पालते पोसते कई दिन गुजर गए, धीरे धीरे माँ चिड़िया भी आने की कोशिश में, परिंदे के आसपास मंडराने लगी, अपने चिरौटे से मिलने के लिए उसका मन मचलने लगा, नंदिनी की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा, जब एक दिन माँ फ़ाख्ता अपने नन्हें चिरौटे को पंखों में छुपाती नज़र आई । एक दो दिन बाद माँ बच्चा गलबहियाँ करने लगे, परिंदे के पंखों ने भी रफ़्तार पकड़ी और दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और फुर्र से उड़ गए, और जाली की खिड़की से, सुकून भरी नज़रों से नंदिनी, उन्हें उड़ता देखती रह गयी । उसकी ममता ने टीस मारी और मुँह से निकला । आह !!

      **जिज्ञासा सिंह** 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आदरणीय यशोदा दीदी, नमस्कार !
    "पांच लिंकों का आनंद" जैसे सुंदर मंच पर मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐🙏

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  3. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय जोशी जी,आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  4. हृदय स्पर्शी गहन भाव लघुकथा। जिज्ञासा जी।
    बहुत सुंदर।

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  5. बहुत ही प्यारी और भावपूर्ण प्रस्तुति है प्रिय जिज्ञासा जी। बचपन के अनेक ऐसे प्रसंगों को स्मरण कराती ये लघुकथा नंदिनी के निश्छल ममत्व के माध्यम से मूक प्राणियों के लिए करुणा का आभास कराती है। सस्नेह

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