बस केवल एक सिप !

अरे लो न !
केवल एक सिप।
डरो मत ! इतने में कुछ भी नहीं होता ।
लो न ! 
 इतने बड़े शरीर में एक ढक्कन, उस पर आधा गिलास बरफ़ । ये तो ऊँट के मुँह में जीरा के समान है। दीपक ने श्रद्धा को गिलास पकड़ाते हुए फिर वही बात दोहराई । 
ऐसे ही नशा होने लगे तो लोग ये बोतलें क्यों खरीदें ?एक ढक्कन से ही काम चला लें..न । एक बोतल महीने भर चले ।
   वो देखो वो सामने वाली किरायेदार शीना को तो मैंने कई बार, बार में देखा है, पीते हुए । आज तक कोई जान ही नहीं पाया । आराम से आती जाती है, उसकी तो मकान मालकिन तक को ख़बर नहीं।
श्रद्धा चुपचाप कुछ सोचती हुई अपनी सैंडिल धीरे धीरे अँगूठे के नाखून से रह रह खुरच रही है ।
और दीपक भावुक अंदाज़ में गिलास देते हुए उससे बोलता जाता है, तुमसे रोज थोड़ी कहूँगा । आज मेरा जन्मदिन है । कुछ तो सेलिब्रेट करो । आखिरी बार कह रहा हूँ । लो भाई, झिझको मत ।
  देखो श्रद्धा मैं अपने जन्मदिन की पार्टी अपने दोस्तों के साथ मना सकता था पर मैंने तुम्हारी ख़ुशी के लिए सोचा कि तुम्हारे साथ मनाऊँगा । और अब तुम नख़रे दिखा रही हो । लेना हो तो लो नाटक मत करो ।
      श्रद्धा ने गर्दन झटकी, हल्के से इधर उधर देखा ।हाथ बढ़ाया.. एक ढक्कन शराब और आधा गिलास बरफ़ गटागट पी गई और अभी तक नशे में चूर है ।

**जिज्ञासा सिंह**


आखिरी स्नेह

    पैरों को चूमते हुए दूब धीरे धीरे सहला रही है माली के तलवे । माली को गुदगुदी होती है, भीना सा मासूम अहसास भी । 

  पर वो क्या जाने ? जाड़े में गर्म और गर्मियों में सर्द अहसास देने वाली उस नन्हीं मासूम छुईमुई दूब का सौंदर्य । जो गर्म खुरदुरी मिट्टी में एक कोपल के साथ जमती है और धीरे धीरे मिट्टी की गर्मी सोखकर अपने अंदर समाती हुई पूरे लॉन में फैल जाती है, आने जाने वाले लोग अपने रेशमी या खुरदुरे पावों को नर्म मुलायम अहसास देने के लिए पैसे से खरीदे हुए जूते उतार देते हैं और अंगड़ाई लेते हुए अपने प्रिय का हाथ पकड़े उसके दामन में पसर जाते हैं।

माली को कहते हुए आज उसने सुना है, कि अब वो पहले जैसी नहीं रह गई है, आज उसका आखिरी दिन है, क्योंकि ऋतु परिवर्तित हो चुकी है और उम्रदराज होने से उसकी रेशमी पत्तियाँ झड़ रही हैं, अतः उसे जड़ से उखाड़ कर खत्म किया जाएगा उसकी जगह कोई नई घास ले लेगी । दूब तो बस अपने माली को आखिरी स्नेह दे रही है ।               

**जिज्ञासा सिंह**

माँ के नाम एक पत्र

प्यारी माँ,
      प्रणाम !
कैसी हैं आप ? सोचती तो थी कि आपको एक चिट्ठी लिखूँ । पर समझ न आया क्यों ? कब और क्या लिखूँ?
  अब मौका मिला है, तो लिख रही हूँ । आपको ये पत्र । आशा है, ये पत्र और उसमे लिखी मेरे बचपन की एक कविता भी जो कि नीचे लिखूँगी, आपको मेरी मन की अपरिमित गहराइयों में ले जाएगी और आपको समझना पड़ेगा कि एक नन्हें बच्चे को छोड़कर माएँ ऐसे नहीं जाया करतीं।
   आपको शायद पता न हो पर एक माँ के न होने का एक बच्चे को, आजीवन एक अनजाना दंश झेलना पड़ता है, जो कि वो स्वयं भी नहीं जानता कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? वो तो निश्छल है, जल की तरह निर्मल है ।
  फिर क्यूँ ये द्वंद, ये दंश उसे पल पल इस निर्मम संसार में झेलने पड़ते हैं । जो शायद उसे जब तक जीवन है, तब तक ऐसे ही झेलना पड़ता है । ऐसे में आप का मुझे यूँ छोड़कर जाना मुझे कभी दुख, कभी गुस्सा दे गया ।
    सच्ची माँ अब तो बहुत कुछ सीख गई हूँ, उम्र ने जीना सिखा दिया है तुम्हारे बिना भी ।
अब किसी परछाईं का पीछा नहीं करती । जब पीछा नहीं करती तो परछाइयाँ मुझे धोखा भी नहीं दे पातीं। आप निश्चिंत रहिए । मैं आपकी ही तरह धीर गंभीर हूँ, धैर्यवान हूँ, ऐसा मैं नहीं, सभी कहते हैं कि मैं आपकी ही परछाई हूँ, हूबहू। अब कोई गुस्सा नही है आपसे । जीवन अच्छा लग रहा है ।
अब तो आपकी पुरानी किताबें भी अक्सर पढ़ती हूँ, कि उनके बीच शायद आपने मेरे लिए कोई चिट्ठी छोड़ी हो । पर वो मिली नहीं अभी तक । हाँ आप तो अचानक चली गई थीं ।
       जहाँ कहीं भी हो आप अपना ख्याल रखिए। हाँ ये कविता जरूर पढ़िएगा । जिसे मैंने काफी समय पहले आपके लिए आपकी याद में लिखी थी...

बचपन की आस । मेरी भी होती माँ काश ।।
माँगती गुड़िया व कार । सपनों से भरा संसार ।
वे कहतीं अरी वो नटखट । तू कितनी भोली है चल हट ।।
क्या संसार इतना छोटा है । वो तो भैंसे सा मोटा है ।।
वहाँ बहुत बड़ा सागर है । तेरी तो छोटी सी गागर है ।।
कैसे भरेगी इतना पानी। गागर फूटी तो रूठ जाएँगी नानी ।।
वो रूठी तो कहानी कौन सुनाएगा?पारियों का राजा आएगा।
डोली सजाएगा । सागर पार संसार ले जाएगा ।।
वहाँ होगी जब रात । तुझे आएगी माँ की याद ।
कौन सुनाएगा लोरी । दूध से भरी कटोरी ।।
तुझे नींद नही आएगी । आँखों में रात बीत जाएगी ।।
हो जाएगी भोर । नाच उठेगा मोर ।।
इतने में मैं उठी झनझना ।टूट चुका था मेरा सपना ।।
काश कि ये सपना फिर आए । भ्रम में जीवन बीत जाए ।।
 
                       आपकी दुलारी बेटी
                             गुड़िया
                             लखनऊ
                          ७/५/२०२२