दवा की दुइ टिक्की

       मंगरू आज फिर गिरता संभलता दोस्तों के सहारे किसी तरह घर पहुँचा ।
       दुलारी उसे देखते ही उसको और उसके दोस्तों को पानी पी पी कर श्राप देने लगी । उसके बच्चे आँख  मींजते अपने अपने बिछौने में उठकर बैठ गए, मंगरू को लिटाकर सारे दोस्त दुलारी से मंगरू को संभालने का इशारा करते हुए एक एक कर घर से निकल गए ।
बचा मंगरू ।
उसने जेब से बोतल निकाली, दो घूँट मारी और बड़बड़ाने लगा । साथ ही झोपड़ी के कोने में उल्टियाँ भी करता जा रहा । पीछे से दुलारी झाड़ू से पति को मार रही । सब बच्चे चिल्ला रहे बाप के ऊपर । अरे गंदगी कर रहा है..पापा गंदगी कर रहा है.. । हम कैसे सोएंगे ? उसी चिल्ल पों के बीच मंगरू दुलारी को बाल पकड़ जमीन पर गिरा देता है, वो ऐं ऐं.. मार डाला..मार डाला.. चिल्लाती है, और १०..१५ मिनट तक ऐसे ही शोर चलता है, थोड़ी देर बाद सारा मामला शांत हो जाता है ।
  सुबह एक कबाड़ीवाला झोपड़ी के सामने खड़ा है और दुलारी एक बोरी में भरी हुई, ढेर सारी खाली बोतलों का सौदा कर रही है ।
   आँख मिलते ही कहती है, जो कुछ भी मिल जाय, साहब.. ललिया बीमार है न.. दवा की दुइ टिक्की ही लै लूँगी । 

**जिज्ञासा सिंह**

11 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय जिज्ञासा जी,बहुत मार्मिक चित्र है विपन्नता मे नशेडी पति और बच्चे की बीमारी से उलझती जीवट नारी का। परिस्थ्तियाँ कितनी भी विपरीत हों ,जीवन कितना भी दूभर क्यों न हो, एक औरत को हर हालात से समझौता करने का हुनर आता है।वह गिर-गिर के फिर् सवार हो जाती है,जैसे दुलारी ने अगली सुबह अपने बारे में ना सोचकर अपने बच्चे के बारे में ही सोचा 👌👌🙏❤

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी त्वरित और समीक्षात्मक टिप्पणी ने कथा को सार्थक कर दिया ।
    बहुत आभार आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जिज्ञासा, बहुत मार्मिक कहानी !
      अल्मोड़ा में रहते हुए मैंने न जाने कितने शराबियों के घर उजड़ते देखे हैं.
      काश कि घर-उजाडू शराबियों को जूते मार-मार कर सही रास्ते पर लाने वाली बीबियाँ हमारी-तुम्हारी कहानियों की नायिकाएँ बनें !

      हटाएं
    2. आभार आपका सर । मिल रही हैं, ऐसी नायिकाएँ, बस अभी उन्हें जीना है मुझे, उनके भावों में उतरना है मुझे ।
      तभी लिख पाऊँगी , क्योंकि वे न के बराबर हैं।
      पर हैं बड़ी महान । आपको मेरा सादर अभिवादन ।

      हटाएं
  4. बहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा... सचमुच कितने ही किस्मों के दर्दों से पीड़ित है नारी
    फिर भी पुरूष मालिक है स्वामीहै, और नारी का सहारा बनने का दम भरता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत ही सारगर्भित प्रतिक्रिया सुधा जी ।
      आपकी टिप्पणी मेरा संबल है, बहुत आभार सखी ।

      हटाएं
  5. विपरीत परिस्थितियों में भी जरूरत मंद ,जिस से नफ़रत करता है उन्हीं बोतलों को सहेज कर अपनी मजबूर आवश्यकता की पूर्ति का साधन बनाते हैं।
    दारुण,स़घातिक सच निर्धन को हर वस्तु से जुगाड़ बिठाना पड़ता है।
    मर्म स्पर्शी लघुकथा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका ।
      आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक कर दिया ।

      हटाएं
  6. गरीबी के साथ शराब की लत न जाने कितने घर तबाह कर देती है। मर्मस्पर्शी लघु कथा जिज्ञासा जी !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा आपने ।
      ये वर्ग गरीबी के साथ साथ न जाने कितनी दुश्वारियां खेलता है ।और उसे उसका भान भी नहीं।
      आपकी टिप्पणी को नमन ।

      हटाएं