ऑर्डर-ऑर्डर-ऑर्डर!
जज ने आनंदी के पक्ष में फ़ैसला सुनाया, आनंदी ने गौरव को कनखियों से देखा। गौरव उनसे अलग होकर दुखी नहीं था,
होता भी क्यों? उसके जीवन में बहार जैसी रागिनी, पहले से जो थी। वकील को धन्यवाद कह, आनंदी बेटी के साथ चलकर गाड़ी में बैठ गई, सालों की ज़िल्लत आँखों से बहती कि, बेटी ने माँ की आँखों में निहारा, बोली,
“ माँ! आपकी आँखों में हमारा आसमान हँसता हुआ दिख रहा है।"
जिज्ञासा सिंह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 11 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को "पांच लिकों का आनंद" में शामिल करने के लिए बहुत आभार सखी!
हटाएंवाह! सखी जिज्ञासा जी ,बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मित्र!
जवाब देंहटाएंएक सच यह भी | सुन्दर|
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंदिन ब दिन बढ़ती ऐसी घटनाओं को व्यक्त करती चंद पंक्तियां, दिल को झकझोरती सी।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंसचमुच गागर में सागर .......चाँद पंक्तियों में गहरी बात,सादर नमन जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंसखी का हृदयतल से आभार।
हटाएंछोटे में बहुत कुछ कहती सामर्थ्य वान लेखनी हार्दिक बधाई सुलेखनी को।
जवाब देंहटाएंइतनी सार्थक प्रतिक्रिया ने मनोबल बढ़ा दिया आपने बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंलाजवाब लघुकथा👌👌
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