धीरे धीरे बच्चों की टोली की आवाज़ में देशभक्ति के तराने मेरे घर के दरवाज़े पे गूंजने लगते हैं और घर में हलचल सी मच जाती है, मैं नन्ही सी बच्ची नन्हें नन्हें पाँवों से दौड़कर अपने परबाबा के घुटनों में चिपक कर सारे बच्चों, गुरुजनों तथा अपने परिजनों के साथ अपनी मीठी, तोतली ज़ुबान में होंठ हिलाते हुए गाने लगती हूँ और दादी,ताई,माँ,चाची सभी घर के बरामदे में झाँकती हुई हमारा साथ दे रही होती हैं ।
" वीर तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।"
थोड़ी देर में बाबाजी राष्ट्र्गान गाते हैं और हम सब उनका साथ देते हैं, फिर पँगत लग जाती है, और सब भोजन करते हैं,जलेबियाँ खाते हैं,ताऊजी सभी गुरुजनों को पान खिलाते हैं तथा सब एक दूसरे को गणतंत्र दिवस की बधाई देते हैं और फिर एक बार मेरे सारे भैया दीदी अपने गुरुजनों के साथ देशभक्ति के नारे लगाने लगते हैं ।
भारत माता की जय ।
भारत माता की जय।।
और फिर ये सुंदर कारवाँ तिरंगा थामे, देशभक्ति का नया तराना गाते हुए, शनैः शनैः मेरी आँखों से ओझल होता हुआ कहीं बहुत दूर चला जाता है जिसे अपलक मेरी आँखें आज तक ढूँढ रही हैं और मुझे वो दिखाई नहीं देता ।शायद देशभक्ति का वो मनोरम दृश्य मैं फिर कभी नहीं देख पाऊँगी ।
**जिज्ञासा सिंह**
बदलते समय के साथ बीते दौर का वो जोश अब नहीं दिखाई देता।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका यह ब्लॉग।
बहुत बहुत आभार यशवन्त जी, आपकी बहुमूल्य प्रशंसा के लिए..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संस्मरण।
जवाब देंहटाएं72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार! आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों को ताज़ा करने वाला सृजन...।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद प्रिय जिज्ञासा 🙏
आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का हृदय से अभिनंदन करती हूँ..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक सृजन वाह ! बहुत सुंदर कहानी,
जवाब देंहटाएंPoem On Mother In Hindi
आपका बहुत बहुत धन्यवाद..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंहाँ ऐसे ही मनाया जाता था .ह दिवस.उसअतीत को फिर से अनुभ कर लिया .
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने आदरणीय दी, आपकी प्रतिक्रिया दिल को छू गई..सादर अभिवादन..
जवाब देंहटाएंसार्थक सुन्दर संस्मरण।
जवाब देंहटाएंसंजय जी ,ब्लॉग पर आपके स्नेह का हृदय से आभार व्यक्त करतीं हूं..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंवाह ! हृदयस्पर्शी संस्मरण
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीया अनीता जी..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंप्रभात फेरियों का वो ज़माना बहुत याद आता है जिज्ञासा जी । मेरी भी पुरानी यादें ताज़ा कर दीं आपने जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी ,आपका बहुत बहुत आभार .. आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का आदर करती हूं..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें सुहानी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका अजीतेंदु जी,मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंबहुत ध्यान से पढ़ रही थी मैं इस संस्मरण को,मैं भी इन सभी बातों की कमी महसूस करती हूँ अच्छी चीजें, आदतें क्यों बदलती है ऐसे दिनों को याद करके उदास भी हो जाती हूँ , परिवर्तन भी अजीब होती हैं, माना जरूरी है मगर किसी नुकसान पर नही, रिश्तों की दुनिया की खूबसूरती कायम रहनी चाहिए , मिलजुलकर रहने के कई फायदे होते है,जिसे वर्तमान मे नजर अंदाज करते जा रहे है सभी, तभी अकेलेपन के शिकार होते जा रहे है दिन पर दिन कहीं , बहुत ही अच्छी लगी पोस्ट, भावुक हुए नही रहे, और इतना कुछ कह गये, अच्छे दिन की अच्छी यादों को सांझा करने के लिए तुम्हारा हार्दिक आभार जिज्ञासा, एक अपनेपन का अहसास कराती हुई ,पोस्ट पुरानी अवश्य रही मगर यादें ताजा हो गई ,कल की अच्छी यादें आज के लिए जीने का सहारा होती हैं ।
जवाब देंहटाएंजी, सच कहा आपने,ज्योति जी,वो पुरानी यादें बहुमूल्य हैं मैं तो जब भी कभी अपने गांव बमुश्किल जा पति हूं तो बड़े बुजुर्गों से मिल जरूर उनसे कुछ अनोखे मनोरम अनुभव लेकर आती हूं और उन्हें अपनी यादों के साथ रचनाओं में समहित करने की कोशिश करती हूं..आपकी व्याख्यात्मक प्रशंसा अभिभूत कर गई..आपको मेरा सादर प्रणाम ..
जवाब देंहटाएं*पति/पाती
जवाब देंहटाएंजरूर सांझा करना, मुझे बता भी देना मै अवश्य पढूंगी, गाँव मुझे बहुत अच्छा लगता है ,प्राकृतिक खूबसूरती के साथ सादगी, अपनापन देखने को यही मिलता है । अच्छा लगा बातें करके जिज्ञासा
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा ।।
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