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व्यवहार

“पापा ये बाबा तो हर वक्त गाली ही देते रहते हैं..जब इनके पास आओ या बग़ल से गुजरो..ये अपनी छड़ी पटकते हैं और कुछ न कुछ बड़बड़ाने लगते हैं और आप कहते हैं कि मुझे इनके पास बैठना चाहिए, समय बिताना चाहिए.. सम्मान करना चाहिए..आदर करना चाहिए ।”

“अब आप ही बताइए भला ऐसे में कोई इनके साथ ज़्यादा देर तक तो नहीं बैठ सकता न.. मैं बाबा के काम कर दूँगा पर उनके साथ बैठना मुझसे न होगा न ।”

“हाँ दादी के तो मैं सारे काम भी कर दूँगा, बैठूँगा उनके पास, बात भी करूँगा, पैर तो मैं उनके दबाता ही हूँ जब वो कहती हैं ।”

“अरे बेटा बड़े बुज़ुर्ग ऐसे ही होते हैं, छोटों को ही उनके साथ सामंजस्य बैठना पड़ता है ।” राघव ने बेटे को समझाते हुए कहा..।”

“ये तो ठीक है पापा पर बिना गल्ती के बार बार गाली..मुझसे नहीं होगा..पापा..कह रहा हूँ..।”

“अर्रे उनकी उम्र हो गई बेटा जी..कुछ तो समझिए..।”

“पापा.. ये उम्र बढ़ने का क्या मतलब ? उम्र बढ़ने से तो मैं उन्हें सम्मान दे सकता हूँ पर आदर तो दादी के ही हिस्से में जाएगा क्योंकि दादी बुज़ुर्ग होने के साथ-साथ मुझसे अच्छा “व्यवहार” भी करना जानती हैं ।”

बेटा बड़ा हो रहा है.. राघव समझ चुके थे ॥

**जिज्ञासा सिंह**