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इंतज़ार

  

वृद्धाश्रम में रहते मित्र की मृत्योपरांत, केशव और वृद्धाश्रम संचालक, उनके बेटे को फ़ोन करते रहे पर वह नॉर्वे से नहीं आया। निराश केशव ने अंतिम संस्कार स्वयं करने की इच्छा अपने बेटे ऋषभ को बताई। बेटा रोष में बोला,

 “पापा! मित्रता आश्रम तक ही रहे घर मत लाइएगा।”

   बेटे के दुर्भाव से आहत पिता ने मित्र का क्रियाकर्म कर, वृद्धाश्रम में ख़ाली बेड अपने लिए रिज़र्व कर लिया। घरवाले पेंशन का इंतज़ार करते रहे।

जिज्ञासा सिंह