..उसके मुख से एक टीस सी निकली और जाते हुए चाँद को देखती हुई, धीरे धीरे गाड़ी घर के अंदर पार्क कर दी और आराम से सीढियाँ चढ़ते हुए छत के ऊपर चली गई । अपने कमरे का ताला खोल ही रही थी कि...
चाँद फिर कनखियों से उसे ताक रहा था.. वह सोचने लगी,
सच ये तो बिलकुल मेरे उसी चाँद की तरह है, जिसकी मैं दीवानी थी...और वो मुझे चाँद सितारों की दुनिया जैसे सपने दिखाने के बाद एक अमीरजादी के पल्लू में बंध गया, क्या कमी थी मुझमें ? बस पापा दहेज ही देने को तो राज़ी नहीं थे.. मैं तो अच्छा कमा ही रही थी ।
सोचते हुए उसकी नजर फिर चाँद पर पड़ी, अब वो उसकी छत छोड़कर किसी और छत की मुंडेर पर छुप गया था.. बिलकुल उसके चाँद की तरह किसी और के पहलू में....
**जिज्ञासा सिंह**