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बोनसाई

अरे तुम्हें ये क्या हो गया ?
कैसे इतनी चोट लग गई ? मैं तुम्हें कई दिनों से ढूंढ रही थी ।
तुम्हारा फोन नंबर भी बंद आ रहा था । 
 कहां थे तुम ? बगीचा कितना गन्दा हो गया है ।
देखो सारे पौधे कितने खराब हो गए हैं ? बोनसाई को भी  कटिंग की जरूरत है । 
लावण्या नरेश से सारे प्रश्न पूछे जा रही है, पर उसकी निगाह नरेश के टूटे हाथ में बंधे प्लास्टर की ओर है ।
पूरे शरीर में कटे पिटे का निशान और पैर में बंधी मोटी पट्टी बता रही है, कि वो काफी चोटिल है ।
उसने पूँछा क्या पैर में भी ?.. नरेश ने बात काटते हुए बताया कि पेड़ पर चढ़ा था छंटाई करने के लिए और गिर गया मैडम  । बहुत चोट लगी थी हाथ पैर सब टूट गया था, पैर की तीनों बड़ी उंगलियाँ आधी से ज्यादा काट दी हैं डॉक्टर ने । गाँव में था न, अपना घरेलू इलाज कर रहा था । सड़न पैदा हो गई थी मैडम । अब तो काफी ठीक हूँ । पर इलाज लंबा चलेगा, आप लोगों से मदद माँगने आया हूँ । बड़ा महंगा इलाज है । बचूँगा तो फिर आप लोगों की बगिया संवारूंगा । बोनसाई बनाऊँगा ।आखिर बोनसाई बनाना ही तो मेरा हुनर है, उसके बिना मेरा जीवन कहाँ संभव है, वही मेरी रोजी रोटी है ।
  इतना कहकर नरेश अपने बनाए पीपल, बरगद और फायकस के शानदार बोनसाई के तरफ दर्द भरी निगाह से देखने लगा।
   और लावण्या असहाय कटे पिटे बोनसाई की तरह बंधे नरेश को देखकर, सोचने पर मजबूर हो गई कि बोनसाई तो कट पिट कर बंधकर, घर्षण करके एक नया रूप लेकर निखर जाता है, पर क्या मनुष्य के लिए ये संभव है..?