इकलौता बेटा- कहानी

    “गहराई नापना उसकी फ़ितरत थी अब वो क्या जाने ? उसे कितने गहरे उतरना होगा असल गहराई नापने के लिए… वह उतर चुकी है उस अंजान सागर की असल गहराई नापने.. जिसमें असंख्य विषधरों का निवास है.. और वो उनकी प्रकृति से भी परिचित नहीं है.. कौन जानें बचती भी है या फिर विषधरों का निवाला ही बनना उसकी क़िस्मत को मंज़ूर है”

    सुबह के पाँच बजे हैं, सुमित्रा अभी-अभी फूल तोड़कर लौटी है, उसकी बेटी कनेरी फूलों की डलिया ले कर, फूल तोड़ने के लिए निकल रही है, आज डलिया भरकर फूल चुनकर ही लाना है, अम्मा के लिए, वह आज देवी जी का दरबार सजाने के लिए, भर -भर के माला बनाएगी, मंदिर में भंडारा भी है, कनेरी का भाई केशव कई दिनों का बाहर गया, अभी तक लौटा नहीं है, वो रहता था तो ठेला भर के फूल और कलियाँ लाता था.. क्यों न! उसे भोर में तीन बजे ही मोहल्ला-मोहल्ला, गली-गली में फूलों वाले घरों में चोरी ही करनी पड़े, पर उसका ठेला कभी ख़ाली नहीं लौटा, एक दिन तो उसे पार्क के माली ने पकड़ ही लिया था उसने बहुत हाथ-पाँव जोड़े, माफ़ी माँगी तब जाके माली ने छोड़ा था.. वह कहाँ मानने वाला था, दोबारा फिर एक बंगले के लॉन में घुसा था साहब ने सीसीटीवी कैमरे में देख, पुलिस से पकड़वाया था, पुलिस वालों के सामने उसने अपनी विधवा माँ का राग अलापा था..

 पुलिसवाले की माँ भी विधवा थी.. इसलिए उसे माफ़ी मिल गई थी । लग तो रहा है कि इस बार भी वो किसी के हत्थे चढ़ गया है फूलचोरी या किसी और चोरी के केस में,और हवालात में है, कनेरी के पूँछने पर अम्मा बार-बार गोलमोल जवाब दे रही है, कनेरी से न रहा गया वो आज फिर पूँछने लगी…

“भला बताओ अम्मा ई भैया अभी तक नहीं आया और तुम कभी कह रही हो कि नानी के यहाँ है, कभी कहती हो पंजाब चला गया ज़्यादा पैसा कमाने.. अब सही -सही बताओ अम्मा भैया कहाँ है ? फिर तो नहीं कोई साहब पकड़ लिए, क्योंकि उसका ठेला भी वापस नहीं आया, अगर वो नानी के यहाँ जाता तो ठेला तो कमरे के सामने गली में ही खड़ा करता । 

और आज समीना आँटी भी कह रही थीं कि तुम्हारा भाई कहीं दिखाई नहीं दे रहा, कहीं गया हुआ है क्या ?”

“वो कह रही थीं कि भाई गली के सबसे ख़तरनाक गुंडों के साथ दिख रहा है आजकल, जिनके साथ घूमता है वो, वो सब जेल की सैर कर चुके हैं कई बार, अम्मा को समझाना कि भाई पर ध्यान दे ।तुम तो जानती ही हो अम्मा समीना आँटी बच्चों को सुधारने के एक एनजीओ में काम करती हैं, जब उनके बेटे का नाम टेररिस्ट अटैक में आया था तब उन्होंने कितनी मुसीबतें झेलीं, कितने कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाया और कितना पैसा लगाया, बेचारी ने घर तक गिरवी रख दिया था । यहाँ तक कि दाने-दाने को मोहताज हो गईं थीं उसी बीच में अंकल को दमा हुआ और वो चल बसे, ओह क्या मुसीबत थी उनके ऊपर ? और देखो आज भी, अभी तक उबर नहीं पाई हैं, उनका भी तो इकलौता बेटा आजीवन कारावास काट रहा है, अम्मा समीना आँटी को एनजीओ वालों ने बहुत मदद की, तभी वो सम्भाल पाईं, नहीं तो वो तो पुलिस से तंग आकर आत्महत्या ही कर लेतीं, आख़िर अंकल तो चले ही गए, अम्मा आँटी सही बात ही समझाएँगी, जब से वो एनजीओ से जुड़ी हैं, तब से उनको हर बात की सही जानकारी रहती है, उनको हमें हल्का नहीं लेना चाहिए, आख़िर वे हमारे भले की बात कर रही हैं ।”
कनेरी भाई को ले चिंतित हो,अपनी बात आगे बढ़ाते हुए फिर माँ से कहती है..

  “देख लो अम्मा तुम हमारी पढ़ाई छुड़वा के हमसे फूल तुड़वाती हो और भैया को कहती हो कि वो तुम्हारा "इकलौता बेटा" है उसकी बात छुपाती हो.. उसके बारे में हमसे झूठ बोलती हो, ये ठीक नहीं अम्मा.. भैया इसी में बिगड़ा है.. अभी तो वो ख़ुद ही फँसता है, किसी दिन वो तुम्हें भी फँसवाएगा तब समझोगी, ये उसकी छोटी-छोटी चोरी-चकारी मत छुपाओ अम्मा.. 
   पापा तो हैं नहीं, दुनिया तुम्हें ही कहेगी कि दो ही बच्चे थे, बाप दारू पीके मर गया और माँ ने बच्चों की ग़लतियाँ छुपा के उन्हें बरबाद कर दिया। अब भैया पढ़ेगा तो है नहीं, कम से कम चोर-उचक्का तो न बने ऐसा कुछ करो.. हम बरबाद हो जाएँगे अम्मा, अगर भाई इस तरह की हरकत करता रहा और तुम छुपाती रही तो ।”

“अरे कन्नो तू ऐसा क्यों सोचती है ? कि मैं भाई को बर्बाद कर रही और वो समीना आँटी, जो तुम्हें भड़का रही है, उसका बेटा कौन सा दूध का धुला है ? जो हमें ज्ञान दे रही.. अबकी बार कुछ कहे तो उसको जवाब दे देना, कहना कि आँटी पहले अपने लड़के को सम्भालो फिर मेरे भाई को कुछ कहना ।”

सुमित्रा कनेरी की बातों को सुनकर, भड़क गई और उसे समझाने की कोशिश करने लगी । पर कनेरी कहाँ समझने वाली थी ? वो भी अब कोई दूध पीती बच्ची नहीं थी इस बार उसने ग्रेजुएशन कर लिया था उसे भी भले-बुरे का ज्ञान था । वो बार-बार माँ को समझाने की कोशिश करती है ।

“ समझो अम्मा बात को.. तुम तो बदला लेने वाली बात करने लगीं, समीना आँटी कह रही थीं कि देखो मेरा बेटा हाथ से निकल गया मैं कुछ नहीं कर पाई इसीलिए तुम्हारे भाई की फ़िक्र कर रही हूँ, अब बेटा मैं तो कह ही सकती हूँ, तुम्हारी अम्मा ज़रूर बुरा मान जाएँगी, पर तुम कहना ज़रूर । मेरा तो घर बर्बाद हो ही गया, कम से कम तुम्हारा न बर्बाद हो ।”

कनेरी अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुमित्रा ग़ुस्से में चिल्लाने लगी..
“ अरे जानती हूँ, समीना आँटी कितनी अच्छी है ? कितनी परिवार पालक है, पहले तो घूमती रही, अब समाज सुधारक बन रही.. ख़बरदार जो समीना आँटी की तरफ़दारी की, उसके कहे में पड़के लड़की, अपने ही भाई की ही दुश्मन बनी जा रही है, अब कल देखो तुम, समीना की ख़ैर लेती हूँ, अपने लड़के को बर्बाद कर दिया अब मेरे बच्चों को चली है पाठ पढ़ाने ।”

“माँ-बेटी दोनों अपना-अपना तर्क देती रहीं पर सुमित्रा ने कनेरी को यह नहीं बताया कि भाई कहाँ है ? आख़िरकार थक कर कनेरी फूल चुनने के लिए जाने लगी, वो मुश्किल से अभी अपने कमरे के आगे वाली गली के नुक्कड़ से मुड़ी ही थी कि तीन चार मोटर सायकिल से पुलिसवाले भरभराकर उसके सामने से निकलते हुए उसकी गली में जाकर रुक गये और सामने से जा रहे दौलत को एक फ़ोटो दिखाकर पूँछने लगे कि क्या इस लड़के को देखा है ? दौलत ने पहले तो फ़ोटो देखी फिर नुक्कड़ पर खड़ी कनेरी को देखा और पुलिस वालों के सामने असमंजस में सिर हिला दिया.. दरोग़ा ने ज़ोर की हाँक लगाई ।
“देख बे ये इसी गली का पता है ना ।” मोबाइल में झाँकते हुए दौलत ने सहमति में सिर हिला दिया ।”

“जी साहब ! यहीं का है ।”

“फिर तू कैसे नहीं जानता है इस लड़के को ? ये यहीं का रहने वाला है, ठीक से देख ।”

दूसरे दरोग़ा ने उसके पैर में एक सोंटा बजाया ।
“जी साहब देखा तो है शायद ।” 

दौलत ने कनेरी की तरफ़ देखते हुए कहा ।
कनेरी धीरे-धीरे अपने घर की तरफ़ लौटने लगी
उसके मन में भाई को लेकर शंका होने लगी, वो पुलिस वालों के पीछे आकर ठिठक कर खड़ी हो गई और दयनीय दृष्टि से दौलत की तरफ़ निहारने लगी ।

कनेरी को देखते ही सिपाही बोला..
 “ऐ लड़की देख इस फ़ोटो को, इसे पहचानती है, इसी गली का पता है न.. अभी मोड़ पर तो लोगों ने बताया कि यही गली है ।”

“जी.. जी.. ये पता तो इसी गली का है, देख फ़ोटो देख ये, इस लड़के को देखा है, कभी ।”

फ़ोटो पर नज़र पड़ते ही कनेरी के होश उड़ गए
भाई का फ़ोटो पुलिस के हाथ में देख वो सकपका गई.. फूलों की डलिया हाथ से छूट गई, सरकता हुआ, दुपट्टा ठीक करते हुए बोली..
 “जी साहब देखा है इसे.. मेरा भाई है ये । इसने क्या जुलुम किया साहब ?”

“इसने.. इसने तो वो काम किया है, जिसकी माफ़ी नहीं है ।”

“ऐसा क्या किया साहब ?”.. हाथ जोड़ते हुए कनेरी दरोग़ा के पैरों में झुक गई ।

तेरा भाई.. तेरा भाई.. वो बदमाश भाई नहीं, वो भाई के नाम पर कलंक है ।”

उसने एक फूल जैसी बच्ची के साथ.. छिः-छिः.. मुझे तो कहते हुए भी शर्म आ रही है, तेरे सामने । उस बदमाश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर तीन साल की बच्ची के साथ बड़ा घिनौना आपराधिक काम किया है, बदमाश रोज़ फूल चुराता था जहाँ से, उसी घर के चौकीदार की एक छोटी सी बच्ची को टॉफ़ी देने के बहाने, फुसलाकर ले गया और.. और फिर अपने दोस्तों के साथ.. ओह कहने में भी शर्म आ रही है ।
इतना सब बताते-बताते दरोग़ा अचानक आक्रोशित हो गया और ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ने लगा ।
 “बुला अपनी माँ को, कह रहा था तेरा भाई कि उसके इस काम में उसकी माँ भी शामिल है, वो सब जानती है, बुला जल्दी !”
दरोग़ा चिल्लाने लगा..
 बुलाती है कि नहीं, हम उसी को लेने आए हैं, ऐसी भी माएँ होती हैं साली.. जो अपने बच्चे के बलात्कार की भी जानकारी रखती हैं.. और मुँह नहीं खोलतीं… ओह !

दरोग़ा बराबर चिल्लाए जा रहा था और गली के हर दरवाज़े के पर्दे खुलते जा रहे थे ।कनेरी आँखों में आँसू भरे, सहमें हुए कदमों के साथ अपने कमरे की सीढ़ियों पर चढ़ रहीहै, सामने माँ अपने एक हाथ में कलियाँ थामें, दूसरे में धागा पड़ी सुई लिए, देवी को पहनाने के लिए माला गूँथ रही है, कनेरी माँ के हाथ से माला खींच लेती है और ज़ोर से चिल्लाती है..
अम्मा पुलिस तुम्हारे इकलौते बेटे को ढूँढ रही है।

**जिज्ञासा सिंह**

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,जनवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. मेरी पहली कहानी है, जो मैने ब्लॉग पर डाली है,आपने उसे परिचर्चा में शामिल कर मेरा उत्साह और मनोबल बढ़ा दिया है, आपको मेरा विनम्र आभार और अभिनंदन। सादर अभिवादन दीदी।

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  3. दिल को भेदती कहानी...
    आजकल की कुंठित मानसिकता को दर्शाती

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. बेटे इतने भी ना बिगड़ें अगर घरवाले उन्हें सर-आँखों पर ना बिठायें ।
    बहुत ही हदयविदारक कहानी।

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  6. बेटे हों या बेटियाँ, माता पिता को बचपन से ही उन पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। मैं स्कूल में पढ़ाती हूँ और आए दिन ऐसे माता पिता से पाला पड़ता है जो अपने बच्चों की गलतियों को छिपाते हैं, शिक्षकों से भी लड़ बैठते हैं। ऐसे माता पिता बच्चों को बड़े अपराध करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। एक कठोर यथार्थ को उजागर करती मार्मिक कहानी।

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  7. अपने बच्चों की गलतियों को ढकने वाले उनकी गलतियों को सही ठहराने वाले माता-पिता अपने बच्चों के सबसे बड़े शत्रु होते हैं यही सच है।
    बेहद मर्मस्पर्शी कहानी जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।

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  8. अपने बच्चों की गलतियों को ढकने वाले उनकी गलतियों को सही ठहराने वाले माता-पिता अपने बच्चों के सबसे बड़े शत्रु होते हैं यही सच है।
    बेहद मर्मस्पर्शी कहानी जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।

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  9. बहुत सुंदर। सच कहूं तो आपकी लेखनी से ईर्ष्या होने लगी है😀🙏

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  10. बहुत ही मर्मांतक और समाज का कुत्सित सत्य उजागर करती कहानी प्रिय जिज्ञासा! अनगिन माँओँ की अन्धी ममता कथित इकलौते बेटों को निरंकुश बनाकर अनैतिकता की ओर अग्रसर कर अपराध के अंधे कुएँ में धकेल देती है।केशव जैसे बेटे,सुमित्रा जैसी धृतराष्ट्री माँ के आँचल में छुपकर कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हैं तो समीना जैसी शिक्षित माँएँ अपनी बुढापे की लाठी का लालच त्याग कर और अपनी निजी क्षति की परवाह छोड़ कर, अपने अपराध की राह पर चलने वाले बेटे को कानून के हाथों में सौंप कर एक जिम्मेदार नागरिक होने का सुबूत देती है।एक मार्मिक और सार्थक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं ।

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  11. अक्सर बहुत सी माँएँ यही करती अपने बच्चों की गलतियां छुपा कर उन्हें गुनाह करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित करती हैं,पर भूल जाती हैं कि सच छूपाने से छुपता नहीं एक न एक दिन सामने आ ही जाता है और जब सामने आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है!
    हृदय भेदती बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी!

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