“बेटा ! ये जो मेज पर प्लेट में धुले हुए, दो सेब रखे है, जाओ एक दादी माँ को दे दो एक तुम खा लेना ।” शगुन ने बेटे से कहा ।
बेटे ने सेव उठाया और चलते-चलते.. दाँतों से कुतरना शुरू कर दिया दूर बैठी, दादी ने ये दृश्य देखा और ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाने लगीं ।
“देखो तो.. इसने दोनों सेव जूठे कर दिए ।”
सुबह से किसी बात पे झल्लायी शगुन ने आव देखा न ताव, बेटे के गाल पर तड़ातड़-तड़ातड़ थप्पड़ जड़ दिए । बेटा सुबकने लगा.. दादी हाँ-हाँ कहती रह गईं ।
अंदर कमरे से ये दृश्य देखता मुकुंद हतप्रभ हो बेटे के पास आया, उसने बेटे को पकड़ा और झकझोरते हुए पूँछा “तुमने दोनों सेव क्यों जूठे कर दिए ?”
अरे पापा.. मैं तो देख रहा था कि कौन सा सेव ज़्यादा मीठा है ? दादी माँ को मीठे सेव पसंद है न.. उसदिन वे मम्मा से कह भी तो रही थीं कि तुम्हें सेव लेना नहीं आता.. पुराना-बासी-फीका सेव लेकर चली आती हो, बस इसीलिए चख रह था पापा.. फिर दादी माँ ने मुझे कहानी में भी बताया था.. कि शबरी ने भगवान राम को झूठे बेर खिलाए थे.. चख-चख के और उन्होंने बिना कुछ कहे खा लिए थे प्रेम में।
**जिज्ञासा सिंह**
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कविता जी ।
हटाएंबहुत सुंदर लघुकथा, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंज्योति जी आपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह ! शगुन का बेटा तो शबरी से भी आगे निकल गया.
जवाब देंहटाएंभक्त शबरी ने छोटे-छोटे बेर झूठे किए थे, भक्त पोते ने बड़े-बड़े सेब झूठे कर दिए.
अच्छा हुआ कि सेब दो ही थे. अगर सेबों से भरा टोकरा होता तो ---
सही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार।
वाह, सार्थक लघुकथा
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना है प्रिय जिज्ञासा।दो पीढ़ियों के बीच बचपन फुटबाल बन जाता है।
जवाब देंहटाएंबालक निर्दोष भी होते हैं, संवेदनशील भी। तथाकथित व्यावहारिक वयस्क उनकी कोमल भावनाओं को न समझें तो वे बेचारे क्या करें ?
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
परीक्षा में असफल का चेहरा देखने लायक ही होता है
जवाब देंहटाएंबढ़िया सृजन
आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर विचारपूर्ण लघुकथा। बच्चे बहुत अधिक निर्मल और अबोध होते हैं इसीलिए जिस प्रेम, धैर्य और धर्म की गूढ़ बातें कर के भी, हम उन्हें आचरण में नहीं ला पाते, बच्चे सहजता से कर लेते हैं। माता-पिता को भी बच्चों के साथ धैर्य और प्रेम से आचरण करने किसुन्दर सीख क्योंकि बच्चे वह नहीं सीखते जो हम बोलते हैं, वे वह सीखते हैं जो आचरण हम उन्हें करके दिखाते हैं। सादर प्रणाम आपको, साथ एक अनयरोध भी मैं ने एक नया ब्लॉग खोल है, चल मेरी डायरी, उस पर दो लेख पोस्ट किए हैं, कृपया उन दोनों को पढ़ कर अपना आशीष दें।
जवाब देंहटाएंकथनी और करनी के इसी फर्क के कारण आज बच्चे बड़ों की बातें नहीं मान रहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित लघुकथा।
बच्चों का पवित्र और कोमल मन बड़ों की सीख को किस प्रकार आत्मसात करता है क्या खूब संदेश दिया है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा जिज्ञासा जी।
सादर
स्नेह।
बाल मन को न समझना और उनको अकारण प्रताड़ित करना ।
जवाब देंहटाएंबहुधा ऐसा होता है।
प्रेरक सीख देती लघुकथा।
सच में बालमन बहुत कोमल और मासूम होता है।उसके भीतर जो चीज पैठ बना लेती है वह उससे ज्यादा नहीं सोच पाता।उसकी सोच और संस्कारों को हल्के में लेना सही नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंThis is the one of the most important information for me. And I am feeling glad reading your article. The article is really excellent ?
जवाब देंहटाएं