नया खर्चा

"रिक्शा खींचते-खींचते थकते नहीं तुम? कुछ बचत भी करते हो या बस्स.. 

"अरे मैडम क्या थकेंगे? क्या बचत करेंगे हम?  जैसे ही लल्ला का मुँह और पिंकी की फीस याद आती है, पाँव अपने आप और तेज पैडल मारने लगते हैं।”


मंहगाई का हाल तो आप लोगों को भी पता है, क्या आप लोग सब्जी नहीं खाते या गैस नहीं भराते? हम तो गरीब हैं ही . जितना कमाते हैं, उससे ज्यादा घर खर्च, ऊपर से रोज एक नया खर्चा।"


रिक्शेवाला बात ही कर रहा था कि फोन की घंटी बजने लगी, वो अपने घर बात करने लगा..


"अरे घबराओ मत! सवारी उतार दें बस। आ रहे हम। तुम घाव के जगह पर रूमाल लगा के अँगोछा से बाँध दो.. खून रुक जाएगा, तैयारी रखो, आते ही अस्पताल चलेंगे, रिक्शेवाले के सामने "नया खर्चा" मुँह फाड़े खड़ा था।


**जिज्ञासा सिंह**

19 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक सत्य को दर्शाती रचना ...

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    1. आपकी टिप्पणियां हमेशा नव लेखन को उत्साहित करती है, नेह बनाए रखिए।

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  2. गरीबी में आटा गीला कहावत को चरितार्थ करती जिज्ञासु लघुकथा. साधुवाद सा
    vikramsinghbhadoriya. blogspot.Com

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    1. बहुत आभार आपका आदरणीय। मेरी रचना को आपकी टिप्पणी ने जो मान दिया है उसकी आभारी हूं।

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत आभार आपका आदरणीय दीदी। मेरी रचना को आप ने जो मान दिया है उसकी आभारी हूं। नमन और वंदन।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका। ब्लॉग पर सार्थक टिप्पणी के लिए आभार।

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  5. कड़वी सच्चाई बतलाती लघुकथा।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी। लघुकथा पर सार्थक टिप्पणी के लिए आभार।

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  6. वाक़ई बड़े जीवट वाले होते हैं मेहनतकश लोग

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    1. बहुत बहुत आभार आपका। ब्लॉग पर सार्थक टिप्पणी के लिए आभार।

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  7. बहुत बहुत आभार आपका दीदी। रचना पर सार्थक टिप्पणी के लिए आभार।

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  8. यथार्थ और वास्तविकता जिससे मुंह नही मोड़ा जा सकता है...!

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  9. कटु सत्य पर आधारित लाजवाब लघुकथा ।

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  10. साधनों की कमी से जूझते मजदूर वर्ग को संसार में सबसे ज्यादा हौंसला मिला है।ये संयम और हिम्मत ही उसकी पूँजी है।
    मार्मिक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय जिज्ञासा।

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