देर आए दुरुस्त आए

 मिठाई का डिब्बा लिए आज कलुआ को देखा, आश्चर्य से भर गई । मन सोचते हुए उस पुरानी घटना पर अटक गया और सोचने लगी  कि अरे कैसे उस दिन इन्होंने कलुआ को अपनी गाड़ी के नीचे तक दबा दिया था, जब वो आधी  रात को अंधेरे में नशेड़ियों और जुआरियों के साथ दारू के नशे में, पेड़ के नीचे बैठा जुआ खेल रहा था और इनको गाड़ी की लाइट में दिख गया था झूम झूम ठहाका लगाते हुए, इनको ग़ुस्सा आता भी क्यों न, सुबह ही कलुआ बच्चे की बीमारी के बहाने इनसे ५०० रुपया माँग ले गया था । 

कलुआ हमारा पुराना माली था, अतः हम सब फ़िक्रमंद थे। रात की घटना के बाद हमने सुबह ही कलुआ के बीवी और माँ बाप को बुला लिया और कलुआ को ख़ूब धमकवाया,माँ बाप से कहा कि तुम सब इसे छोड़ दो हम भी छोड़ देंगे, घर और ऑफ़िस सब जगह से निकाल देंगे,ये दर दर भीख माँगेगा, होश ठिकाने आ जाएँगे, आख़िर हद होती है।घरवाले पहले से परेशान थे, सब तुरत राज़ी हो गए।आख़िर ये कोई पहली घटना नहीं थी।

     कलुआ हफ़्ते भर इधर उधर भटकता रहा, थक हारकर एक दिन आकर इनके पैर पड़ गया, माफ़ी माँग ली, और वादा किया कि अब वो सुधर जाएगा । वो दिन और आज का दिन कलुआ धीरे धीरे रास्ते पे आ गया, और जब उसे सरकारी आवास मिला तो उसी में अपने भी पैसे मिलाकर घर और एक दुकान बनवाया है, जिसकी दावत पतिदेव घर जाकर खा आए और मेरे लिए कलुआ मिठाई लेकर हाज़िर है।           

**जिज्ञासा सिंह**     

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 21 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय दीदी,नमस्कार !
      मेरी लघुकथा के चयन के लिए आपकी दिल से आभारी हूं,आप सबकी प्रेरणा ही सृजन का आधार है, आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।

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    2. कल्लू जैसे कुछेक लोगों को सिर्फ एक ही भाषा समझ आती है

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