पेंटिंग्स.. कहानी

“विभोम स्वर”
आलेखों, कहानियों, लघुकथाओं से सज्जित वैश्विक हिन्दी चिंतन की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित मेरी कहानी ‘पेंटिंग्स’! 





पेंटिंग्स

      “गिरने के भी बड़े-बड़े किस्से हैं, कोई चल के गिरता है, कोई खड़े-खड़े गिरता है, कोई लेटे-लेटे गिर जाता है, कोई सोच से ही गिर जाता है, कोई सोचता नहीं है, इसलिए गिरता है, कितने भी बड़े ओहदे वाला गिर जाता है, बिना ओहदे का तो पहले ही गिरा हुआ माना जाता है, किसी को देखते ही गिरने वाले तो बहुत देखे हैं, जिन्होंने कुछ देखा नहीं वो भी गिर जाते हैं, कुछ देखने के लिए भी गिर जाते हैं, कुछ दिखाने के लिए गिर जाते हैं, गिरते-गिरते इतना गिर जाते हैं, कि गिरने की सुर्ख़ियाँ बन जाते हैं।मनुष्य कितनी भी श्रेष्ठता पर पहुँच जाय, वो गिरने की आदतें नहीं छोड़ पाता, फिर उसका परिणाम चाहे जो हो, ऐसी आदतें कभी-कभी मौत तक को न्योता दे देती हैं, अतिशयोक्ति का स्थान तो हर जगह बरकरार है।”

 

   विनय बाबू को रिटायर हुए आठ बरस हो गए थे, बड़े ही उच्च पद से रिटायर हुए थे, रिटायरमेंट के समय जो पार्टी उन्होंने दी थी। उसमें हमारा जाना हुआ था, पार्टी में बहुत लोगों ने बताया कि विनय बाबू बहुत ही अच्छे पेंटर हैं, उनके पास विनय बाबू की पेंटिंग्स हैं, जो उनके घर की बैठक में शोभा पाती हैं, मैं हैरान थी कि वे एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ-साथ बहुत अच्छे आर्टिस्ट भी हैं। पार्टी में ही मुझे ये भी पता चला कि उनकी पत्नी भी बहुत अच्छी मूर्तिकार थीं। पर अब वे इस दुनिया में नहीं थीं।


     विनय बाबू हमारी पुरानी कॉलोनी के हमारे परिचित थे, पर हमारा उनके घर कम ही आना-जाना था। रिटायरमेंट के पहले हमें बाज़ार में मिल गए थे, बहुत देर तक कॉलोनी के अपने पुराने मित्रों का हाल-चाल पूँछते रहे, उतनी देर में मैंने नोटिस किया कि वे पहले जैसे मस्तमौला नहीं रह गए थे। जाते-जाते उन्होंने हमें बताया कि वे रिटायर हो गए हैं, उसी उपलक्ष्य में अपने पार्क में ही एक रिटायरमेंट पार्टी रखी है, बहुत आग्रह किया था कि हम लोग उस पार्टी में ज़रूर आएँ और हम पति-पत्नी ने उनका विनम्रता से भरा आग्रह स्वीकार कर लिया था।


  पार्टी में विनय बाबू की पत्नी की मूर्तियों की चर्चा खूब हो रही थी, ख़ासतौर से महिलाओं को उनकी नग्न मूर्तियों में अधिक दिलचस्पी थी, कई तो यहाँ तक कहती थीं कि पहले तो वे कॉलेज में प्रोफ़ेसर थीं, रिटायरमेंट और बच्चों के बाहर सेटेल होने के बाद, पति के कहने पर ही वे इस प्रोफ़ेशन में आई थीं। दोनों का शौक़ भी काफ़ी मिलता जुलता था, पति को नग्न पेंटिंग और पत्नी को नग्न मूर्तियाँ बनाने का शौक़ था, जिसे कॉलोनी वालों ने उनके बाग़ीचे की साज-सज्जा और बैठक की दीवारों पे सजी पेंटिंग्स के रूप में साक्षात देखा था, ये भी सुनने में आता था कि विनय बाबू एक बार देखकर ही किसी की भी हुबहू पेंटिंग बनाने में माहिर थे, उनकी आँखों में जिसकी छवि अंकित हो जाती थी, उसकी पेंटिंग वे बनाकर ही दम लेते थे।


   उस दिन जब कुनिका का फ़ोन आया तो मैं उसकी सारी बातें सुनकर अवाक रह गई थी। उसने एक झटके में बताया था कि,

 

“विनय बाबू का मर्डर हो गया, ज़रा अपना टीवी खोलना, वही समाचार चल रहा है।”


   टीवी खोलते ही जो मैंने जो दृश्य देखा उससे तो मेरे हाथ-पाँव फूल गए थे, विनय बाबू की मिट्टी में दबी लाश पुलिस उन्हीं के घर में पेड़ के नीचे की मिट्टी से निकाल रही थी, गोरे-चिट्टे, लंबे-चौड़े, विनय बाबू का ऊपर का धड़ मिट्टी में घुसा हुआ दिख रहा था, चारों तरफ़ से पुलिस की टीम घेरे हुए थी, वहीं उसी आँगन के एक कोने में लगे अमरूद के पेड़ की जड़ में ही उगी एक मोटी डाल पर अपना पैर टिकाए खड़ी ऐंकर आँखों देखा हर दृश्य समझाते हुए चिल्ला रही थी,


  “शहर की पॉश कॉलोनी में रहने वाले अवकाश प्राप्त अधिकारी की लाश, उन्हीं के आँगन में मिट्टी में दबी हुई पाई गई है, कहते हैं दो दिनों से अधिकारी किसी को दिखाई नहीं पड़े, कल कामवाली आकर चली गई, दूधवाले ने घंटी बजाई और दरवाज़ा नहीं खुला तो वह भी चला गया, आज जब उनका दूधवाला और कामवाली एक ही साथ गेट पर पहुँचे और कई बार घंटी बजाने के बाद भी गेट नहीं खुला तथा कई दिन का पेपर लॉन में पड़ा हुआ दिखा, तब उन्हें शक हुआ, पड़ोसियों से पूँछने पर पता चला कि परसों ख़ाना बनाने वाली लड़की किसी के साथ आते हुए दिखी थी, उसके बाद से विनय बाबू को किसी ने नहीं देखा, वे यहाँ अकेले रहते थे उनकी पत्नी का देहांत दो साल पहले हो चुका है, तीन बच्चे हैं, दो विदेश में और एक हैदराबाद में।”


   “पड़ोसियों ने ही पुलिस को सूचना दी, पुलिस के आने के पश्चात घर का दरवाज़ा तोड़ा गया, घर में घुसते ही, बैठक में पेंचकस और छोटे-बड़े कई चाकूनुमा, पेंटिंग के औज़ार बिखरे मिले हैं, जिससे पुलिस अंदाज़ा लगा रही है कि मारने वाले किसी और मक़सद से आए थे और वो मक़सद पूरा न होने पर, घर ही के मामूली हथियारों से उनकी हत्या कर दी, घर के उलझे हुए सामनों को देखकर ऐसा लग रहा जैसे विनय बाबू ने अपने को बचाने के लिए काफ़ी संघर्ष किया होगा, दीवारों पर कई जगह खून के निशान हैं, दो जगह तो पंजे के साथ आधी-अधूरी उँगलियों के निशान हैं, महसूस होता है कि विनय बाबू दीवार के सहारे बचने की कोशिश कर रहे थे क्योंकि उनके बैठक की कई पेंटिंग्स गिरी हुई मिली हैं, पेंटिंग्स को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वो किसी ऐसे चित्रकार की हैं, जो नग्न पेंटिंग बनाने का शौक रखता था, काफ़ी अश्लील चित्रों को उकेरा गया है, कुछ लोग कह रहे हैं कि विनय बाबू ख़ुद ही बड़े अच्छे पेंटर थे, ये उनकी हस्तरचित पेंटिंग्स हैं।”


   मैं सारा समाचार सुनकर सन्न थी, चूँकि वो हमारी कॉलोनी के पुराने निवासी थे। कॉलोनी में जब हमारा परिवार नया-नया आया था, तब वे हमें अक्सर टहलते हुए दिख जाया करते थे, आते-जाते हम लोगों का आपस में थोड़ा-बहुत परिचय भी हो गया था, मैंने अभी टीवी बंद नहीं किया था बस विज्ञापन ने मेरा ध्यान भटका दिया था, उतनी देर में मैं विनय बाबू के स्वभाव का मूल्यांकन करने लगी, कि किस तरह जब मैं अपने बच्चों को पार्क में घुमाने जाती थी तो विनय बाबू भी किसी न किसी बहाने हमारी सहेलियों के झुंड के पास खड़े होकर बात करने लगते थे एक बार तो उन्होंने मुझे अपने घर भी बुलाया था, मेरी ५ माह की बेटी का अच्छा सा नाम सुझाने के लिए, पर मेरी दोस्तों ने आँख के इशारे से उनके घर जाने को मना कर दिया था, मना करते वक्त उनके चेहरे पर आश्चर्य के साथ-साथ हास्यमिश्रित भाव भी थे।


    उन्हीं दिनों एक दिन मेरी पड़ोसन ने भी मुझे विनय बाबू से बात करते हुए देखा तो कुछ देर बाद मेरे घर आ गई थीं और मुझसे हँसते हुए कहा था, कि इनसे थोड़ा दूरी बना के रखना। तुम नई हो न! इन्हें अभी जानती नहीं हो।


   विज्ञापन के पश्चात टीवी पर एंकर ने ज़ोर-ज़ोर चिल्लाने के बजाय आराम से बोलना प्रारंभ कर दिया था,


“विनय बाबू से जुड़ा हर समाचार हम समय-समय पर आपको देते रहेंगे फ़िलहाल अब शहर की दूसरी खबरों की ओर चलते हैं।”


    चूँकि विनय बाबू की हत्या का मामला  हमारे शहर का समाचार था तो वह लोकल चैनल्स पर ही आ रहा था, राष्ट्रीय स्तर पर बस एक दो पंक्ति का ही प्रसारण हुआ था। अतः मैं अगले समाचार तक अपने घर के काम निपटाने लगी, पर मेरा मन अब काम में नहीं लग रहा था? शाम हो गई थी, अचानक घंटी घनघना उठी। मैंने गेट खोला सामने नीता खड़ी थी मेरे घर दस साल से काम करने वाली पुरानी कामवाली। उसने घर में घुसते ही धमाका कर दिया, चिल्लाते हुए बोली,


   “नेम साहब! कुछ सुना आपने, वो १७ नंबर वाले बाबू जी को कोई मार डाला, मल्डर होइगा उनका, कोई घर ही मा मारि के गाड़ दीन्हा रात को। टीबी में सब आय रहा, खोलौ तनिक, देखौ तौ टीबी मा उनकी रासलीला। आख़िर छिछोरऊ चले गये, हमहूँ करे रहयँ उनके घर तीन महीना काम। नेमसाहब ज़िंदा रहीं तब, वे कालिज चली जायँ और ई लिटायर रहयँ। हम पोंछा करी औ ऊ पीछे-पीछे कमरा-कमरा चलयँ

ऐसा लगय कि कब पकर लेहयँ। जब वे अकेल रहयँ नेमसाहब! तौ सही कहित हम, बहुत डर लागय। उनके घर मा हमेशा नौकर रहत रहय। नौकर का बियाह रहय तौ हमसे चिरौरी करीं नेमसाहब कि एक महीना काम कर दे। पैसा के लालच मा हम काम तौ पकर लिया लिकिन ई साहब परेसान कर दीन्ह रहयँ। नेमसाहब कमौ काम का जादा पैसा देती रहयँ, देय-लेय मा नेमसाहब बड़ी खरी रहयँ, जो अच्छाई है सो तौ कहय का ही परी, साहब कय बड़ी छिछोरपन की आदत रहय औ नेमसाहब ई बात जानय न। कौन कहे मियाँ-बीवी के बीच की बात? कहव वे साहब की आदत जानती होएँ और कहती न होयँ। कहौ न कहौ भाभी जी कौनो ऐसी ही बात मा मरे हैं साहब। काहे से टीबी मा कहि रहे कि ख़ाना बनावे वाली सबसे बाद मा आई रहय। ऊके बाद म साहब का कोई बाहर नाही देखा है, देख लेव आप! यही कौनो लड़क़िनी वाला मसला ही होए।”

 

    मैं बराबर टीवी देखती रही और विनय बाबू की हत्या को एक-एक मिनट समझती रही, आख़िरकार नीता की बात सत्य साबित हुई, हफ़्ते भर में पुलिस ने एक आईएस अधिकारी की हत्या का पर्दाफ़ाश कर दिया था ऐंकर उस हफ़्ते के आख़िरी दिन फिर चिल्ला रही थी,


“आख़िरकार अवकाशप्राप्त ज़िलाधिकारी की हत्या का राज़ खुल ही गया, जो तथ्य निकलकर सामने आए हैं उसके अनुसार पुलिस का कहना है कि पत्नी की मृत्यु के उपरांत विनय बाबू अपना जीवन-यापन नौकरों और कामवालियों के सहारे चला रहे थे दो साल पहले उनकी पुरानी कामवाली अपने गाँव रहने चली गई थी, तब से उन्होंने कई नई उम्र की लड़कियों को काम पर रखा। एक रखते जब वो छोड़ जाती तो वे दूसरी रख लेते क़रीब तीन महीने पहले उन्होंने जो कामवाली रखी उसकी उम्र महज़ अट्ठारह-बीस साल होगी, कमरे की पैमाईश करते वक्त पुलिस को अचानक दीवार पर खून सने उँगलियों के जगह-जगह अलग तरह के निशान और फ़र्श पर टूटी चूड़ी का नन्हा सा टुकड़ा दिखा हालाँकि कमरे से हर दाग-धब्बा पोंछा गया था परंतु वह टुकड़ा सोफ़े के कोने में छिपा हुआ था जो हत्यारों को सफ़ाई के वक्त नहीं दिखा। हत्यारों में किसी महिला के शामिल होने का पुलिस का शक अब यक़ीन में बदल रहा था कि हो न हो कोई महिला भी शामिल थी। आस-पड़ोस में उस कामवाली के और काम न होने से पुलिस के समक्ष उसे ढूँढने का बड़ा अल्टीमेटम था, गेट पर खड़े पड़ोसियों और कई काम वालियों से पूँछताँछ करने पर पता चला कि वे लोग उसे नहीं पहचानते, उसी समय उधर से निकल रहे एक मज़दूर मियाँ-बीवी ने धीरे से पूँछा कि यहाँ क्या हुआ है? इतना कहकर वे दोनों आगे बढ़ गए और चलते हुए मेन सड़क की तरफ़ मुड़ गए, उनको जाते देखकर भीड़ में खड़ी एक महिला बोली कि ये दोनों तो कल भी ऐसे ही टहल रहे थे, अचानक से पुलिस की टीम में भगदड़ सी मच गई एक सिपाही उछला और उन दोनों की तरफ़ दौड़ा उसके पीछे-पीछे सड़क की तरफ़ ही पुलिस की पूरी टीम दौड़ने लगी। मैंने देखा कि चिल्लाती हुई एंकर भी हाथ में माइक लिए कैमरे की तरफ़ देखते हुए भीड़ की तरफ़ पीठ किए उल्टा भाग रही थी, चिल्लाते-भागते वह पुलिस तक पहुँचकर, कभी पुलिस कभी उन दोनों मज़दूर-मजदूरिन के मुँह में माइक घुसाने की कोशिश में लगी हुई थी पुलिस के ऑब्जेक्शन के बावज़ूद सड़क के किनारे पर खड़ी हो उछल-उछल चिल्ला रही थी,


“आख़िरकार प्रशासनिक अधिकारी की हत्या की थ्योरी पुलिस ने पूरी तरह सुलझा ली उसकी हत्या अधिकारी की घरेलू नौकरानी ने अपने मंगेतर और अपनी बहन-बहनोई के साथ मिलकर की थी, उसको जब पकड़ा गया तो उसने जो कहानी सुनाई उससे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं।


   उसने बताया कि,

    

   “मुझे साहब के यहाँ काम करते हुए तीन महीने हो गए थे, साहब मेरी पगार महीना पूरा होते ही दे देते थे, लेकिन साहब गंदी आदतों के शिकार थे, वे मेरे साथ अक्सर छेड़छाड़ करते थे, छेड़छाड़ का पैसा वे अलग से देते थे, जब भी छेड़ते थे उसके बाद ज़रूर कुछ पैसा देते थे। इस बार जब एक दिन मैं पोंछा कर रही थी, तो उन्होंने चुपके से पीछे से आकर, मेरे गाल को चूमते हुए मुझे बाहों में भर लिया था, मैं बहुत आहत हो गई थी पर फिर मैंने सोचा कोई रेप थोड़ी किया है साहब ने, मेरे जैसी लड़कियों के साथ तो ऐसा होता रहता है।” 

  

    ये कहते-कहते वह हिचक-हिचक रोते हुए अपनी बात बताने लगी, 


   “मैंने सोचा कि साहब पैसा तो दे ही देते हैं, लेकिन साहब वही पुराना रेट दे रहे थे उसके कई बार माँगने पर भी उन्होंने मुझे पैसा नहीं दिया तो मुझे बहुत गुस्सा आ गया था, हत्या वाले दिन मैंने साहब से कई बार पैसा माँगा पर उन्होंने नहीं दिया, जबकि वे उसी दिन बैंक से बहुत सारा पैसा निकालकर लाए थे और फ़ोन पर भैया-दीदी लोगों से बात करते हुए कह रहे थे, कि दीवाली आने वाली है, तुम लोग आओगे तो ठीक है, नहीं तो वे हैदराबाद वाले भैया जी के साथ अमरीका चले जाएँगे, भैया ने कहा कि आप अमरीका ही आ जाओ। मैंने ये सब अपने कानों से सुना था, मेरी भी शादी होने वाली थी, इसलिए मुझे भी ज़्यादा पैसे की ज़रूरत थी। 

      

   मैं सोचने लगी कि ये अमरीका चले गए तो मुझे तो पैसे मिलने से रहे और मैंने उनसे बीस हज़ार रुपये माँगे थे। वे रुपयों की कई गड्डी रखे थे पर मुझे एक हज़ार रुपया पकड़ा दिए। मेरा भी माथा गरम हो गया, मैंने भी सबक़ सिखाने को ठान ली।”

     

“मैं उस दिन शाम को काम पे न जाके रात को नौ बजे अपने बहन-जीजा और अपने मंगेतर के साथ साहब के घर जा पहुँची, उन्होंने मेरी बहन जो मेरे साथ ही खड़ी थी उसे देखकर पूँछा कि इसे क्यूँ लाई हो? मैंने देर रात का बहाना कर दिया। ये सुनकर साहब ने एक दो बार मना किया कि अब कल काम पर आना पर मैंने कहा कि कल मुझे कुछ और काम है, आपका काम पड़ा रह जाएगा, ये सुनके उन्होंने गेट खोल दिया और मैंने जल्दी से अपने जीजा और मंगेतर को भी अंदर कर लिया, साहब उन लोगों को देखकर सकपका से गए और फ़ोन उठाने चले तो मैंने ये कहा कि हम लोग केवल पैसे की बात करने आए हैं, बाक़ी आप किसी को फ़ोन मत करिए।”


      “अब मैं बीस हज़ार के बजाय उनसे पचास हज़ार माँग रही थी, पर साहब बड़ी मुश्किल से दस पर राज़ी हुए, मेरी बात न मानने पर हम कई बार उनसे कहते रहे कि लोगों के सामने हम अपना मुँह खोल देंगे कि आपने मेरे साथ क्या किया है? इतनी बात सुनके मेरा मंगेतर बौखला गया और वो साहब के ऊपर चढ़ गया और उनका गला दबाते हुए बोला कि हमें शादी करनी है नहीं तो ताऊ! हम आज ही तुम्हारे हाथ उखाड़कर पुलिस के चले जाते। इतने पर भी साहब पैसे देने को राज़ी नहीं हुए ऊपर से हमें पुलिस से पकड़वाने की धमकी देने लगे अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचा था हाथापाई होने लगी हमें कुछ भी नहीं सूझा, मुझे पता था कि साहब तरह-तरह के चाकूनुमा औज़ारों से पेंटिंग बनाते हैं, मैं घबराहट में छोटे-बड़े सारे औज़ार उठा लाई, हमने उनके मुँह में कपड़ा ठूँस दिया और छोटे औज़ारों से कनपटी और सिर में कई छेद कर दिए और बड़े-बड़े नुकीले औज़ार से कई जगह से उनकी गर्दन काट दी, हम उन्हें डराकर पैसा वसूलना चाहते थे पर वे हमें बराबर पुलिस की धमकी देते रहे, उनकी धमकियों से हम लोग बुरी तरह डर गए। हम केवल पैसे के इरादे से गए थे, पर बात बढ़ने पर हमें उनकी हत्या करनी पड़ गई।”


     ऐंकर चिल्ला-चिल्लाकर मेरे कानों के पर्दे फाड़ रही थी और मैं अपने घर के टीवी के सामने वाली दीवार पर, कोट-पैंट पहनें एक गिद्ध की नई पेंटिंग लगाने की कल्पना कर रही थी।


जिज्ञासा सिंह

4 टिप्‍पणियां:

  1. Gighyasa मुझे उस समय का सब याद आ रहा है,बहुत अच्छे से कहानी में वर्णन किया है

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    1. जिज्ञासा सिंह19 अक्टूबर 2024 को 7:37 pm बजे

      आपका नाम नहीं आ रहा! सादर धन्यवाद!

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  2. जिज्ञासा, सत्यकथा जैसी तुम्हारी कहानी अच्छी है.
    वैसे ऐसे अधिकतर गिद्ध ताज़िंदगी पकड़े नहीं जाते.
    नौकरानी के अवधी में कहे गए संवादों के साथ कोष्ठक में खड़ी बोली की हिंदी में उनका भावार्थ भी तुम दे सकती थीं.

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  3. जी, आपकी सलाह अनुग्रहणीय है। सादर प्रणाम सर!

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