“फ़िक्र फ़िक्र फ़िक्र”
“कितनी फ़िक्र करते हैं पापा आप”
“इस फ़िक्र के चक्कर में आप खुद तो घनचक्कर होकर रह गए हैं, और हमें भी परेशान कर दे रहे हैं, पापा मैं अब बीस साल की हूँ, अगर कहीं जाऊँगी तो आपकी उँगली थोड़ी न पकडूँगी ।आप दिन भर मुझे फ़ोन ही करते रहते हैं, अरे मैं हॉस्टल में हूँ, बहुत सेक्योरिटी है यहाँ । फिर जैसे ही मैं फ़ोन न उठाऊँ, आप मेरी रूम्मेट को भी फ़ोन कर देते हैं, बताइए आपको भला इस तरह मेरे पीछे पड़ना चाहिए । अरे मैं कॉलेज आई हूँ पढ़ने, घूमने नहीं ।
“मुझे अपना भविष्य, अपना करियर भी देखना है, ऊँच-नीच समझाने के लिए तो मम्मी ही काफ़ी हैं, दो बार दिन में, एक बार रात में, इसके अलावा जब मन हुआ तब वो भी फ़ोन करती रहती है, एक बार उनका फ़ोन, उनका कटा नहीं कि आपका फ़ोन, जबकि मैंने सुबह ही आप दोनों को ग्रुप पे मैसेज कर दिया है, कि आज एग्ज़ैम है, तीन घंटे बात नहीं कर पाऊँगी, उफ़्फ़ !”
राध्या ने आज पापा से अपने मन की बात कह ही दी । उसकी बात सुनकर पापा ने ‘ठीक है’ कहके फ़ोन रख दिया ।
शाम को पापा का फ़ोन फिर आया बोले
“बेटा वो अनुज अंकल से तुम्हारे लिए कुछ भेजा था, दे गए क्या ? अरे पूँछना ज़रूरी था न । मम्मी ने अपनी दो साड़ियाँ भेजी हैं उसमें । तुम्हें किसी फ़ंक्शन में पहननीं हैं शायद ।इसीलिए फ़िक्र हो रही थी, या फिर ये भी.. कहते हुए वो रुक गए ।
पापा इतना ही बोले थे कि राध्या ने बात काटते हुए कहा,
“हाँ पहुँच गईं पापा”।
“पापाऽऽ अब आप और माँ फ़िक्र नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? माँ तो नहीं पर, आप तो जब मन होता है तभीऽ रात एक बजे, इग्ज़ैम टाईम.. कभी भी.. फ़ोन ही करते रहते हैं, बोलते हुए राध्या हँसने लगी..।”
पापा भी हँसने लगे.. बोले “अब से फ़िक्र करूँगा, पर समय देखकर.. यही नाऽ..।”
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-09-2022) को "शीत का होने लगा अब आगमन" (चर्चा-अंक 4566) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय सर । नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
हटाएंसही बात है जिज्ञासा दी कि बच्चों को थोड़ा स्पेस देना जरूरी है। वक्त बेवक्त तो फोन करके डिस्टर्ब बिल्कुल नही करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने ।बहुत आभार ज्योति जी । नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
हटाएंमाता - पिता के मन के ऐसे ही हाल हो जाते हैं , विशेष रूप से बेटियों के प्रति । फिर भी वक़्त बेवक्त फोन न ही करें तो बेहतर है । वैसे समय से बच्चे भी मत पिता को अपने बारे में सूचित करते रहें तो अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंजी, आपकी बात बिल्कुल सही है,यही होना ही चाहिए ।बहुत आभार दीदी । नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका। नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा कथा को सार्थक कर गई । बहुत आभार दीदी । नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
हटाएं😃😃प्रिय जिज्ञासा जी,ये सब मेरी बिटिया के साथ Bsc तक खूब हुआ जब उसे कॉलेज मेंNCC कक्षाओं में ठहरने के लिए कुछ अतिरिक्त समय चाहिये था।तब मेरे ससुर जी ,बार बार फोन करके पूछते।कई बार छोटे-मोटे (अपना शहर भी छोटा है)जाम में फंस जाती तो घबराई रहती कि बाबा जी नाराज होंगे।बहुत मुश्किल से पिताजी को समझाया गया कि वे उसकी इतनी चिन्ता न किया करें,वो समझदार हो गई अब ।आजकल बेटियों के बारे में बहुत डरावनी खबरें अभिभावकों को भयभीत कर देती है पर आशंकाओं के बीच उसकी शिक्षा को बाधित करें ये उचित नहीं।हम भाग्य विधाता बनना चाहते हैं तो बच्चे उन्मुक्त रह उड़ान भरना चाहते हैं।पिता पुत्री का ये संवाद समाज में व्याप्त अराजता की परिणति है।फिर भी बच्चों की सुविधा का ध्यान रखना जरुरी है।नहीं तो उनका धैर्य चूक जाता है।😃😃
जवाब देंहटाएंजी, रेणु जी हमारे घरों में अक्सर, फिक्र करते करते हम कभी कभी अति कर देते हैं, जिससे बच्चे खीझ जाते हैं, जैसा कि आपने लिखा ऐसा ही हमारे यहां, लगभग हर घर में यही होता है,खासतौर पे जब बच्चा पहली बार जाता है ।
हटाएंइन्ही संदर्भों से इस कथा का जन्म हुआ ।
कथा की समीक्षा करती इतनी सार्थक प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ाने के साथ साथ हमेशा नव सृजन का उत्साह पैदा करती है ।
बहुत बहुत आभार आपका । नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता जी । नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएंबच्चों की फ़िक्र होना लाज़मी है जिज्ञासा जी, लेकिन उनकी वैयक्तिक स्वतंत्रता या सोच में हद दर्जे का दख़ल गैरवाज़िब है। आप इस ख़याल को बखूबी दिखा सकी हैं अपनी इस खूबसूरत रचना में। मुझे, लेकिन, बेटी ने अपने कथन में 'घनचक्कर' शब्द का जिस तरह प्रयोग किया गया है, थोड़ा अखर गया। बड़ों की किसी अनुचित बात पर उज्र या नाराज़गी तो दिखाई जा सकती है, लेकिन बच्चों को अदब के दायरे का ध्यान तो रखना ही चाहिए, ऐसा मैं मानता हूँ। उम्मीद है, आप भी इस बात पर इत्तिफ़ाक ज़रूर रखती होंगी
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