लोक-संस्कृति में अवधी कहावतों का सामाजिक सरोकार”
अवधी भाषा का इतिहास बड़ा ही प्राचीनतम और वृहद् है, अवध क्षेत्र के ग्रामीण लोक जीवन में बोली जाने वाली भाषा अवधी “हिंदी भाषा” की उपभाषा भी मानी जाती रही है ।
अवधी की उत्पत्ति में अनेक विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत रखे हैं, ये उनकी अपनी राय है, परंतु आम जनजीवन में रची-बसी, अवध क्षेत्र में बोली जाने वाली “अवधी भाषा” अपनी सांस्कृतिक और अलौकिक विरासत को समेटे आज भी आम जनजीवन को समृद्ध कर रही है, नगरीय जनजीवन की लालसा ने अवधी भाषा को हानि ज़रूर पहुँचाई है, परंतु अभी हाल के दिनों में अवधी के प्रचार- प्रसार में बढ़ती लोगों की रुचि इस बात की परिचायक है, कि “अवधी भाषा” एक दिन अपने उत्कर्ष को ज़रूर छुएगी ।
इसी परिदृश्य में “अवधी की कहावतें” अपना ऊँचा स्थान रखती हैं, जो रोचक होने के साथ-साथ संदेशप्रद और प्रेरणादायी हैं, वर्षों से कही जा रहीं ये “कहावतें” आज भी उतनी ही अर्थवान, प्रासंगिक और जीवनमूल्यों से आप्लावित हैं ।
“अवधी कहावतों” का समृद्ध इतिहास अगर हम देखते हैं, तो इनका जन्म अवध प्रांत के हर इंसान के द्वारा आम जीवन में बोली जाने वाली भाषा के समय से है, प्राचीन समय में ये आम बोलचाल की भाषा में रची-बसी थीं ।
विकिपीडिया के अनुसार “कहावत” आम बोलचाल में इस्तेमाल होने वाले उस वाक्यांश को कहते हैं, जिसका सम्बंध किसी न किसी कहानी या पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ होता है, प्रायः इन कहावतों को अन्य भाषाओं के द्वारा मूल या बदले हुए रूप में अपना भी लिया जाता है ।
अवधी की कहावतें आज भी, उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फ़ैज़ाबाद, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, इलाहाबाद, फ़तेहपुर, मिर्ज़ापुर और जौनपुर ज़िलों में लोकजीवन की भाषा का सौंदर्य बढ़ाती हुई, बोली जाती हैं, देश के साथ-साथ अवध क्षेत्र की भी एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है, कि “कोस- कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी” इस कहावत के कहन के अनुसार कहावतों का भी स्वरूप बदल जाता है, जैसे इस कहावत को कोई तीन कोस कहता है, कोई चार, परंतु कहावत का अर्थ वही है ।
ऐसे ही दादी के द्वारा कही गई एक कहावत आज भी याद आ जाती है, बचपन में मूली हाथ सवेरेमें देखते ही मेरी दादी कह उठती थीं…
“ सवेरे मूरी दूध बराबर, दोपहर मूरी मूरी ।
साँझ क मूरी जहर बराबर, मानों बात जरूरी ॥”
इस कहावत में वे समझाती थीं कि मूली कब और क्यों नहीं खानी चाहिए.. उनका कहना था कि मूली सुबह के समय दूध जितनी फ़ायदेमंद है, दोपहर में वो अपने मौलिक गुण जितनी फ़ायदेमंद है, परंतु शाम को वो नुक़सान करती है ।
अभी गाँव में रह रही बहन से बात हो रही थी, तो वह अपनी नवविवाहित बेटी को ग़ुस्से में ससुराल न जाने पर कह रही थी कि “चीलर कारन कथरी छोड़िहौ” ये सुनकर मुझे हँसी के साथ आश्चर्य हुआ, कि एक माँ ने एक पंक्ति में कितनी बड़ी और उत्तम सलाह दी, इस कहावत के कई पहलू हैं, कई सलाह हैं, जो अर्थ मुझे समझ में आया वे निम्नलिखित हैं:-
(१) क्रोध में निर्णय नहीं लेना चाहिए ।
(२) छोटे मोटे मनमुटाव होते रहते हैं, घर छोड़ना उचित नहीं ।
(३) किसी शख़्स के कारण अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए ।
(४) अपना वतन अपना होता है ।
(५) परिवार का मान-सम्मान रखना एक महत्वपूर्ण दायित्व है., आदि ।
कहावतें आंचलिक जीवन की बोलचाल को समृद्ध बनाने के साथ-साथ सामाजिक ताने-बाने और पारिवारिक मूल्यों को भी समृद्ध करती हैं, ऐसे ही एक कहावत आज से तीस वर्ष पहले मैंने अपने गाँव की एक चाची के मुख से उस समय सुनी जब मेरे भतीजा हुआ था और मैं बड़ी खुश थी..कि मैं बुआ बन गई.. वो कहावत थी कि..,
“भैया से भतीजा। जैसे आँखी महके दीदा ॥”
इस कहावत में भाई, बहन और भतीजे के रिश्ते की सुंदरता का कोमल भाव है यानि कि भाई तो प्यारा है ही, भाई का बेटा तो आँख की दृष्टि जितना प्यारा है ।
..एक कहावत का जिक्र बहुत ज़रूरी है, वो कहावत एक चार पंक्ति की कविता है, बेटी विमर्श के संदर्भ को आज भी प्रासंगिक करती है, इस संदर्भ में एक क़िस्सा है कि मेरे ननिहाल में मेरी माँ के चचेरे भाई को बेटे की आस में चौथी बेटी हो गई.. घरवालों ने उन्हें बहुत ताना मारा कि तुम बड़ी कुलटा हो, निर्बन्सिन हो । तुम्हारी कोख पवित्र नहीं, क्योंकि तुम्हें बेटा नहीं, जब मेरी माँ को पता चला तो उन्होंने अपनी भाभी को एक कहावत के ज़रिए बेटी का ऐसे गुणगान किया कि वो मामी, मेरी माँ के न रहने पर हम लोगों को ये कहावत कहके मेरी माँ की बात करती थीं और भावविभोर हो जाती थीं ये कहते हुए कि हमारी बेटियाँ आगे चलके हमारा नाम रोशन कीं.. कहावत कुछ ऐसे थी कि चार बेटी मोरे ।
दमाद अइहैं घोड़े ॥
कि भरि जाई कोरा
औ नाँव चली मोरा ॥”
यहाँ उद्घृत कुछ कहावतें आम हैं, आज भी बोली जाती हैं, कुछ विलुप्ति के कगार पर हैं, अतः उन्हें सहेजने की ज़रूरत है, ये कहावतें मैं अपने बचपन से लेकर आज तक सुनती आई हूँ, अभी बहुत कहावतों को इकट्ठा कर “ अवधी भाषा की कहावतों” को समृद्ध करना है..।
मेरी नज़र में कुछ कहावतें, उनके अर्थ और प्रयोग :-
(१) जेहके पिराय ते रोउते नाहीं परोसिन मेल्ह मेल्ह रोवयं ।
अर्थ- स्वयं ही कार्य करने से सिद्धि मिलती है, दूसरे के सहारे कार्य सिद्ध नहीं होते ।
प्रयोग- इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब स्वयं किसी कार्य को करने से कतराएँ और दूसरे लोग ज़बरदस्ती करने को उत्सुक हों ।
(२) गैर मन कय बियाह कनपटी म सेंदुर ।
अर्थ- बिना मनोरथ के कार्य का परिणाम उल्टा होता है ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कही जाती है जब बिना मन के काम करने पर कोई काम उल्टा- सीधा हो जाय ।
(३) हाथी पै न चढ़ि पावें तौ घूरेन पर चढ़ि जाइं ।
अर्थ-नक़ल से उच्च स्थान स्थान नहीं मिलता ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कही जाती है, जब किसी की नक़ल करते हुए कोई अर्थ का अनर्थ करने लगे ।
(४) नोखे क धनियाँ, भुइं रहैं न कनियाँ ।
अर्थ- लाड़-दुलार में बहकना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय मुँह से निकल जाती है, जब कोई अपने को मासूम दर्शाते हुए हरकतें करे ।
(५) खिसियान बिलरिया भूसम मूति मारिस ।
अर्थ- बदला लेने के लिए कुछ भी करना ।
प्रयोग- इसका प्रयोग अनुचित तरीक़े से प्रतिवाद लेने पर किया जाता है ।
(६) सरग म जोंधैया मुन्नि क मुहम घुट्टू ।
अर्थ- बहुत बड़ी वस्तु की आशा बँधवाना ।
प्रयोग- ये कहावत ऐसे समय में कही जाती है जब असम्भव चीज़ का लालच दिया जाय ।
(७) अपना का रोई धोई भतरा क अढ़ाई पोई ।
अर्थ- अपने दायरे से बढ़कर बात करना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कहते है, जब अपने लिए कोई कम असम्भव हो और दूसरे के लिए बयाना ले लो ।
(८) आन्हर मौसी चुम्मय मचवा हम जानी बहिनी कय बेटवा
अर्थ- मौसी का प्रेम माँ समान होता है ।
प्रयोग- माँ की बहन मौसी का बहन के बच्चों को असीम स्नेह, प्यार, दुलार की प्रतीक है यह कहावत ।
(९) रोवत मनई बोल हंसावयं ।
अर्थ- हँसमुख और मनोहारी स्वभाव ।
प्रयोग- ये कहावत किसी के हंसमुख स्वभाव और मनोहारी व्यक्तित्व का परिचय देती है ।
(१०) भुरकिम पिसान बगियम भंडारा ।
अर्थ- औक़ात से बाहर काम करना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कही जाती है जब लोग अपनी आर्थिक स्थिति न देखकर ज़्यादा खर्चा करते हैं, और परेशानी का शिकार हो जाते हैं ।
(११) होइगा बियाह मोर करिहे का ।
अर्थ- काम निकलने के बाद भूल जाना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कहते हैं, जब आप किसी के काम आएँ और वह इंसान कामनिकल जाने के बाद आप से मुँह फेरने लगे ।
(१२) मुंह यस मुंह नाहीं बतकही छप्पन टका की ।
अर्थ- अज्ञानी का ज़्यादा ज्ञान देना ।
प्रयोग- जब कोई किसी भी संदर्भ की बातें बढ़-चढ़ के, बिना तथ्य के करे ।
(१३) टेंटेम लड़िका गांव गोहार ।
अर्थ- बिना समझे बूझे शोर मचाना ।
प्रयोग- ये कहावत की कहन अक्सर उस समय होती है जब अपने आसपास मौजूद वस्तु देखे बिना उसी वस्तु को ढूँढते वक्त शोर मचाया जाय ।
(१४) हम रोयबेन रहेन तू मारेव काहे ।
अर्थ- कहने से पहले बात समझ जाना ।
प्रयोग- ये कहावत उस वक्त कहते हैं, जब कोई कार्य होने से पहले ही उस कार्य का आभास हो जाय ।
(१५) ओखरिम बैठे पहरुआ स डेरायं ।
अर्थ- समस्या खड़ी करके मुँह चुराना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय सामने आती है जब समस्या खुद खड़ी करो और शोर मचाओ कि हाय अब क्या करें ?
(१६) भुइयां-भुइयां चलव बदरेम न उड़व ।
अर्थ- हवा-हवाई बातें करना ।
प्रयोग- अपनी असलियत को भुलाकर जब लोग बड़ी-बड़ी बात करने लगते है, उस वक्त यह कहावत कही जाती है ।
(१७) रस्ता चलत आगिम मूतयं ।
अर्थ- झगड़ालू प्रवृत्ति का इंसान ।
प्रयोग- ये कहावत उस वक्त कही जाती है, जब कोई भी बिना वजह झगड़ा करे ।
(१८) नानी कय ननियाउर याद देवाय देब ।
अर्थ- गहराई से असलियत समझाना ।
प्रयोग- ये कहावत उस वक्त प्रयुक्त करते हैं, जब किसी को उसकी औक़ात जतानी हो या किसी बात की गहराई समझना हो ।
(१९) गुलरी के फूल होइगे ।
अर्थ- कभी दिखाई न देना ।
प्रयोग- जब किसी को बहुत दिन तक न देखो और किसी की झलक देखने को तरस जाय तो ऐसी स्थिति में ये कहावत प्रयुक्त होती है । क्योंकि गूलर का फूल कभी दिखाई नहीं देता ।
(२०) उँगरी पकरावा पहुंचा पकरिन ।
अर्थ- चालाकी से अपना काम निकालना ।
प्रयोग- इस कहावत का प्रयोग उस समय किया जाता है जब आप अपने सम्पर्कों से किसी की सहायता करें और वह वहाँ आगे बढ़के अपना निजी सम्पर्क बना ले ।
(२१) ई मुँह मसुरिक दाल ।
अर्थ- भाव न होने पर भी भाव दिखाना ।
प्रयोग- इस कहावत को उस समय उपयोग में लाते हैं, जब औक़ात से बाहर कोई बात करे, अपनी बड़ाई हाँके ।
(२२) पानिम किहिन बहि उतरान ।
अर्थ- उथली (हल्की) बातें समय के साथ उजागर हो जाती हैं ।
प्रयोग- ये कहावत बहुत ही प्रचलित है, इसमें शौच का संदर्भ लेकर कहा जाता है कि अगर हल्की बात करोगे तो हलके हो जाओगे, अतः समय और जगह देखकर कोई काम करना चाहिए ।
(२३) दोसरेक मुँहे मकुनी बहुत मिठाय ।
अर्थ- दूसरे की ग़रीबी का महिमामंडन ।
प्रयोग- कुछ लोग ख़राब बस्तु दूसरे पर थोपते वक्त
ये भूल जाते है, कि वही समान वस्तु वो उपयोग करेगा तो उसे कैसा लगेगा ? ऐसे ही संदर्भों में यह कहावत प्रयुक्त होती है ।
(२४) नोखेक नाउन बाँसेक नहन्नी ।
अर्थ- पहली सफलता पर इतराना ।
प्रयोग- यह कहावत उस वक्त कही जाती है, जब कोई अपनी पहली सफलता या कमाई पर बहकी- बहकी बातें करे ।
(२५) बेना पर कय सुखवन देखे न देखाय ।
अर्थ- किसी के संघर्षों को नज़रंदाज़ कर, सफलता देख चिढ़ जाना ।
प्रयोग- ये कहावत तब कही जाती है जब अनथक परिश्रम के बाद कुछ परिणाम मिले और दूसरे उसमें अतिशयोक्ति ढूँढें ।
(२६) आनेक पंडित सगुन बतावयं अपना चलें भद्दरा म ।
अर्थ- दूसरे के लिए नियम बनाने वाले लोग ।
प्रयोग- कुछ लोग दूसरे के लिए तरह- तरह नियम बनाते है और खुद सारे नियमों को ताक पर रख देते हैं, उन्हीं को इंगित करके ये कहावत कही जाती है ।
(२७) बिल म हाथी कोरवयं ।
अर्थ- बिना जगह के जगह बनाना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कहते हैं, जब बिना जगह के ज़बरदस्ती जगह बनाने की कोशिश होती है ।
(२८) बदरेम लात मारयं ।
अर्थ- बिना औक़ात काम करना ।
प्रयोग- इस कहावत को उस वक्त कहते है, जब कोई अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा बड़े से बड़ा काम करनेवाला प्राण ले लेता है, जैसे “भैया रमेश तो बदरेम लात मार सकत हैं” इसका नकारात्मक प्रयोग भी होता है, जैसे “ औक़ात नहीं तबहुँ बदरेम लात मारत हौ ।
(२९) घिव कय पूरी टेढ़वमेढ़ ।
अर्थ- असली तो असली होता है ।
प्रयोग- शुद्ध और खरेपन की पहचान है ये कहावत..
जैसे झगड़ालू माली अगर बगीचे में सुंदर मनोहर फूल उगाए तो उसका स्वभाव फूल की सुंदरता में विस्मृत हो जाता है ।
(३०) सूप बोलय सूप बोलय चलनिव बोलय जिहमा बहत्तर छेद ।
अर्थ- ओछे इंसान का ज़बरदस्ती अपनी राय देना ।
प्रयोग- ये कहावत उस बात पर कही जाती है, जब कोई होशियार इंसान बात करे और बीच में कोई मूर्ख अपनी मूर्खता नज़रंदाज़ करते हुए टपक पड़े ।
(३१) तुरुक बनी तौ बेहना ।
अर्थ- बदलो तो जड़ से, नहीं तो ऐसे ही ठीक है ।
प्रयोग- इस कहावत को जातीय उदाहरण देकर कहते हैं, परंतु लोक जीवन में बहुत प्रचलित है .. इसका प्रयोग उस समय करते हैं, जब जीवन में बदलाव लाना हो तो अपनी नींव से ही बदलें बीच का कोई मार्ग उचित बदलाव नहीं देगा ।
(३२)जिहके किल्ला तेही केरेम लागी ।
अर्थ- अपना, अपने का ही साथ देता है ।
प्रयोग- ये कहावत उन संदर्भों पर कही जाती है, जब लोग अपना काम निकालकर, मौक़ा देखकर अपने परिवार के लोगों की तरफ़ हो जाते हैं ।
(३३) बांधे बनिया बजार न चली ।
अर्थ- ज़बरदस्ती का काम सही नहीं होता ।
प्रयोग- यह बड़ी प्रचलित कहावत है कि ज़बरदस्ती किसी से कोई काम नहीं करवाया जा सकता है, अपनी इच्छुक से लिए गए कार्य में ही सफ़ाया मिलती है ।
(३४) भुस पर लीपें ।
अर्थ- अनर्थ को अर्थ बताना ।
प्रयोग- इस कहावत को उस वक्त लोग कहते थे, जब गलती करो और उसको दस बहानों द्वारा सच साबित करने की कोशिश करो ।
(३५) जहेकय बांदर तेई नचावे ।
अर्थ- अपना कार्य अपने हाथ ही सिद्ध होता है ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कहते हैं, जब कोई भी बच्चा केवल अपनों की ही बात मानता हो ।
(३६) तेली भतार करय तबउ पानी नहाय ।
अर्थ- अपने चुनाव का सही इस्तेमाल ।
प्रयोग- यह कहावत उस समय आठवाँ होती है , जब अपने द्वारा लिए गए निर्णय से सकारात्मक परिणाम न मिले ।
(३७) सोरह पूरिम पूरी तौ समधि क खेतेम मजूरी ।
अर्थ- अपने कार्यक्षेत्र का चुनाव सोच समझ कर करना चाहिए ।
प्रयोग- इस कहावत का भावार्थ है कि अगर काम ही करना है तो समधी के खेत में ही क्यों करें ? ऐसे तो बहुत से रास्ते हैं, जहां चल के मंज़िल मिल सकती है ।
(३८) घर भर दरिहारै तौ चूल्हा के बारै ।
अर्थ- काम करने में बहानेबाज़ी करना ।
प्रयोग- जब बहानों की जुमलेबाज़ी की अति हो जाती है तब इस कहावत को कहा जाता है ।
(३९) चौबे गए बनय छब्बे, लौटे बन कय दूबे ।
अर्थ- बड़ी- बड़ी बातें काम बनाने के बजाय बिगाड़ भी देती हैं ।
प्रयोग- कभी- कभी लोग बड़े सपने सजाने बहुत दूर चले जाते हैं और वहाँ उन्हें रोटी भी बमुश्किल मिलती है, ऐसे में लोग बड़े रोचक अंदाज में इस कहावत को कहते हैं ।
(४०) राजा क बिटिया पियाजि क तरसैं ।
अर्थ- सुविधा होने पर भी छोटी-छोटी बात का रोना ।
प्रयोग- ये कहावत खुद मेरे ऊपर तब कही गई जब घर में दवाखाना होने के बाद मैं दवाई के लिए किसी से आग्रह कर रही थी । ऐसे ही संदर्भों में इस कहावत का प्रयोग होता है ।
(४१) हेल कै मारी भेल ।
अर्थ- जिसको कोई पूँछने वाला न हो ।
प्रयोग- जब अपनी जायदाद बच्चों के नाम कर दो और वे बुढ़ापे में आपको दर-दर ठोकर खाने को मजबूर का दें, ऐसे समय में ये कहावत एक एक शब्द चरितार्थ होती है ।
(४२) गगरी म दाना सूद उताना ।
अर्थ- थोड़ी सी कमाई का घमंड ।
प्रयोग- दिहाड़ी मज़दूर अक्सर जो कमाते है, उसे ख़त्म कर देते हैं, फिर कमाते है, फिर ख़त्म करके दोबारा काम पर जाते हैं, ऐसे समय में यह कहावत अक्सर सुननेवालों मिल जाती है ।
(४३)फूहर उठीं तौ नौ घर हाला ।
अर्थ- बेसहूरी दूर से ही पता चल जाती है ।
प्रयोग- कुछ लोगों की फूहड़ता उनके हर कार्य में झलकती है, ऐसे संदर्भों में ये कहावत अक्सर सुननेवाली मिलती है ।
(४४) न पेट म आंत न मुंह म दांत ।
अर्थ- पतला-दुबला मरियल इंसान ।
प्रयोग- कुछ लोग असमय ही जर्जरता के शिकार हो जाते हैं? वे जब महफ़िल में अपनी बात रखते हैं, तो अक्सर सुनने को मिलता है, कि “न पेट म आँत न मुँह म दाँत” है यार जाओ पहले अपनी सेहत सुधारो फिर बातें करना ।
(४५) एक जनी अंगना बहारें एक जनी करिहांव डबोटयं ।
अर्थ- अकेले के कार्य को कई लोगों द्वारा करना ।
प्रयोग- ये कहावत बड़े तब कहते थे जब किसी एक के कार्य को करते वक्त पूरे कुनबे के बच्चे या औरतें जुट जाती थीं ।
(४६) आपन नैना मुझको दय तोय झुलौती रह ।
अर्थ- अपनी सुविधा दूसरे को देकर, खुद सहारा तलाशना ।
प्रयोग- जब किसी सहेली को अपनी गणित की किताब दे दो और संदेशा आ जाय कि कल सुबह की पाली में गणित का टेस्ट है, तब माएँ अक्सर ये कहावत कह उठती थीं ।
(४७) कटी उंगरी प मुतइया नाही ।
अर्थ- गाढ़े वक्त पर भी किसी का काम न आना ।
प्रयोग- ये कहावत उस वक्त कहते हैं, जब दूसरे का साथ देते रहो पर जब अपने ऊपर कोई मुसीबत आ जाय तो वो व्यक्ति मुँह गेट ले ।
(४८) करिया बाभन गोरिया सूद, कंजा तुर्क भुर्र रजपूत ।
अर्थ- अनुभव के आधार पर लोगों को पहचानना ।
प्रयोग- किसी से मित्रता करने पर पहले के बुजुर्ग इसी तरह की कहावतों के द्वारा अगले व्यक्ति का परिचय बता देते थे ।
(४९) जब गोईंड़े आई बरात, समधिन के लगी पियास ।
अर्थ- ऐन मौक़े पे अपना काम छोड़, दूसरा काम करना ।
प्रयोग- ये कहावत ऐसे संदर्भों पर बहुत ज़रूरी संदेश देती है, जब बच्चे स्कूल जाते वक्त कहते हैं, कि माँ मुझे प्रोजेक्ट के लिए एक चार्ट चाहिए और चार्ट घर में मौजूद न हो या पूरे साल का कोर्स कोई बच्चा जब इम्तिहान के पहले वाली रात को पूरा पढ़ना चाहे ।
(५०) घर जरय घूर बुतावय ।
अर्थ- करने वाले काम के बजाय अन्य काम को प्राथमिकता देना ।
प्रयोग- ये कहावत उस समय कही जाती है जब खाने वाले रोटी माँग रहे हों और रोटी सेंकने के बजाय ख़ानसामा बिना ज़रूरत गिलास में पानी भर-भर दे रहा हो ।
मेरे मुख से निकलीं कुछ कहावतें
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(१) धान भवा नरदहा से जानेन ।
अर्थ- अनुभव के आधार पर समझना ।
प्रयोग- जब घर में धान होगा तो चावल ज़रूर नाली में बहेगा, ये कहावत मैंने ऐसे ही एक संदर्भ से बनायी कि एक व्यक्ति अपनी “ चावल ज़्यादा खाने वाली बेटी” के लिए वर खोजने गए तो नाली से पता लगाया कि इस घर में चावल ख़ूब खाया जाता है ।
(२) रस्तम मिलीं देवालिस भेंटयं ।
अर्थ- भाव न देना ।
प्रयोग- बहुत दिनों बाद कोई परिचित रास्ते में मिल जाय और आप तुरंत उसके गले लग जायँ परंतु वो ऐसे व्यवहार करे कि जैसे आप उसके लिए ख़ास नहीं हैं, ऐसे में ये कहावत मुख से निकल जाती है ।
(३) बाझि बाझि पेंड़ेस लड़यं ।
अर्थ- बिना वजह ख़ुराफ़ात करना ।
प्रयोग- कुछ लोग इतने झगड़ालू होते हैं कि बिना वजह झगड़े की जड़ खोदते हैं, इन्हीं संदर्भों में इस कहावत का जन्म हुआ ।
(४) कटोहली यस खींस निपोरे ।
अर्थ- बिन बात हँसना ।
प्रयोग- जैसे खग- विहगों द्वारा खाया हुआ आम कटोहली चाह कर भी अपने को छुपा नहीं पाता.. ऐसे ही मौके-बेमौके पर कुछ लोग अपनी हँसी नहीं रोक पाते, ऐसे ही समय पर ये कहावत मुँह से निकल जाती है ।
(५) झिल्गी खटिया सोवें उतान ।
अर्थ- निश्चिंत होना ।
प्रयोग- कंगाली की हालत में भी अतिशय निश्चिंत इंसान के बारे में ये कहावत चरितार्थ होती है, जो सब कुछ भुलाकर चैन की नींद सो सकता है ।
विशेष :-
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कल, आज और कल, में डूबती-उतरातीं “अवधी कहावतें” दर-बदर होती हुईं, अपना अस्तित्व बनाने में लगी हुई हैं, उन्हें आज भी जीवंत बनाता, हमारा आँचलिक समाज “अवधी भाषा” के लिए संजीवनी का काम कर रहा है, आशा और विश्वास है, कि जब तक अवध प्रांत के वासी, देश-विदेश में, कहीं पर भी, अवधी भाषा को सम्मान देते हुए विराजमान हैं, तब तक वहाँ “अवधी भाषा” के साथ-साथ “अवधी कहावतें” भी ज़रूर विद्यमान होंगी ।
जिज्ञासा सिंह
इन्दिरा नगर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश