टाँके

   क्या कर रही हैं माँजी ? इतनी देर से देख रही हूँआप बार-बार आँख बन्द करती हैं और खोलती हैंक्या है ? कोई बात है क्या ?”

अरे नहीं बेटा !

कोई बात नहींबस कुछ सिलन टूट गई हैउसी को सिलने में लगी हूँपर सिल ही नहीं पा रही ।

“बिना सुई धागे के ।”

“तुम्हें दिख नहीं रहा बस, है सुई धागा ।”

“ तो लाइए न,  मैं सिल देती हूँ

हुँह ! अरे बेटा ये कोई कपड़ा नहीं जो तुमसे सिलवा लूँये तो फटे हुए मन की दास्ताँ है ।जब ये फट रहा था तो मैंने इसे फटने दिया, अब सीना भी तो मुझे ही पड़ेगा 

ओह ! माँ जी मन का फटना तो सुना था सिलाई तो नहीं सुनी 

सही कह रही हो बेटा । अब इसे सिल तो पाऊँगी नहीं  ये पहले जैसा हो ही सकता हैसोचती हूँज़िंदा रहने के लिए कुछ टाँके ही लगा दूँ ।”


**जिज्ञासा सिंह**

39 टिप्‍पणियां:

  1. टांके भी कभी कभी बेहद टीस देते हैं। लेकिन शायद ये भी ज़रूरी लगता है ।

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    1. आपकी प्रतिक्रियाएं नव सृजन का आधार बन रही हैं, आभार आपका आदरणीय दीदी ।

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  2. आपकी लिखी रचना सोमवार 22 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  3. "पांच लिकों का आनंद" में रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार और अभिनंदन ।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  7. जिज्ञासा सिंह21 अगस्त 2022 को 11:38 am बजे

    बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी, रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत शुक्रिया.. शुभकामनाएँ सखी !

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  8. जिज्ञासा, क्यों हम बूढों को निराशा के गर्त में ढकेल रही हो?
    अब क्या टाँके लगवा कर और रफ़ू करवा कर ही हम बूढ़े-बूढ़ियों को जीना होगा?

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    1. जी, बिलकुल नहीं, मेरा उद्देश्य ये बिलकुल नहीं, हमारे इतने बड़े विशाल देश में तरह-तरह के दर्द हैं, उन्हीं में से एक ये भी है, जल्दी ही एक लघुकथा आपको उससे बिलकुल उलट पढ़ने को मिलेगी.. बुढ़ापे की प्रेरणा देगी.. 👏🏻☺️
      जीवन का हर संदर्भ हमारे जीवन का हिस्सा है👏🏻

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  9. बहुत बहुत आभार आपका अभिलाषा जी।

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  10. बहुय अच्छी कथा, अप्रत्यक्ष प्रतीकों को समेटकर बहुत अच्छा लिखा। अनुमति ऐसी तो नहीं हाँ इस सिलन से ही उपजी है एक कविता - चोरी तो न होगी।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया लघुकथा को सार्थक बना गई । आपका बहुत बहुत आभार दीदी ।ब्लॉग पर आपके दो शब्द हमेशा मनोबल बढ़ाएंगे । आती रहें।
      सिलन से उपजी कोई भी रचना कहां चोरी हो सकती है । नव सृजन होगा।
      मेरे ख्याल से कथा से कथा या कविता सेकाविता की उपज सृजन को सार्थक करेगी ।
      आपकी प्रेरणा को नमन ।

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  11. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है आपका आदरणीया। प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार और अभिनंदन।

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  12. गहन !!
    उधेड़बुन में उलझे अधेड़ मन का सुंदर चित्रण।
    बहुत सुंदर।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।आपकी प्रतिक्रिया का दिल से स्वागत है ।

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  13. सार्थक अभिव्यक्ति ....एक सकारात्मक दृष्टिकोण रचती

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    1. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है । प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  14. मर्मस्पर्शी लघुकथा।
    बहुत सुंदर।
    सादर

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  15. ओहह्ह बेहद गहन भाव उकेरे हैं आपने जिज्ञासा जी।
    मनुष्य का आत्मावलोकन भले ही पिछला कुछ सुधार न कर सके पर वर्तमान और भविष्य को सुकून से भर सकता है।
    मर्मस्पर्शी लघुकथा।
    सस्नेह।

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    1. इतनी सकारात्मक प्रतिक्रिया ऊर्जा दे गई सखी ।स्नेह बनाए रखें। आभार आपका।

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  16. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है । प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।

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  17. जब इन्सान देह और मन से थक जाता है तब अपने आप को अप्रासंगिक समझ इस उधेडबुन में खोया रहता है।जीवन सन्ध्या में उतरे लोग इसी में खोये मिलते हैं।अपने गाँव में हाल ही में कई असहाय लोगों को इसी उधेडन- तुरपन मेँ खोये देखा तो बड़ी व्यथा होती है।सार्थक पोस्ट के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय जिज्ञासा जी।

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    1. समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार प्रिय सखी ।

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  18. अपने मन को खुद ही सीना पड़ता है ।
    बहुत सुन्दर सार्थक लघुकथा।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया मेरा संबल है नेह बनाए रखेंप्रिय सखी ।

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  19. वाह वाजिब प्रयास स्वयं का स्वयं के लिए

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  20. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार।

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