अरे शर्मिष्ठा तुम ! यहाँ कैसे ?
मैं तो यहाँ छः महीने से हूँ ।
देखा नहीं कभी तुम्हें..कल ही फ़ोन पे माँ से कह रही थी मैं, कि शर्मिष्ठा आजकल पता नहीं कहाँ है ? न जाने क्यूँ तुम्हारा ख़याल कौंध रहा था ?
अरे यार ! जब तक दिल्ली में थी, रोज़ राघव की वही किच-किच कि अगर तुम आगरा में जॉब कर रही होती तो माँ बेटी को सम्भाल लेती, तुम आराम से नौकरी करती, पर तुम्हें मेरी बात समझ ही नहीं आई । हम दोनों जॉब पर चले जाते थे और बेटी आया के हवाले, इसलिए दिल्ली की जॉब छोड़ यहीं ज्वाइन कर लिया, राघव दिल्ली में ही हैं, अक्सर आ जाते हैं । माँ हैं, तो बड़ा सुकून है बेटी की तरफ़ से । उसको अच्छी तरह सम्भाल लेती हैं, बेटी भी खुश है उनके साथ । ख़ैर अब अपनी भी कुछ सुनाओ तुम्हारे क्या हाल हैं ? पतिदेव कैसे हैं ?
क्या कहूँ यार ! मेरी तो कुछ उल्टी ही कहानी है, मैंने आगरे में जॉब ही इसीलिए ली थी कि बच्चों की देखभाल बाबा-दादी के पास अच्छी तरह होगी, हम दोनों कम कमाएँगे पर माता पिता के पास रहेंगे ।
मगर यहाँ मेरी सासू माँ जब से कॉलेज से रिटायर हुई हैं रोज़ चरस किए हैं, कि तुम लोग अब बाहर निकलो आगरे से ।
हम रिटायरमेंट के बाद तुम्हारे बच्चे नहीं सम्भाल सकते । सारी उम्र नौकरी की है अब आराम से दुनिया घूमना चाहते हैं, अब हम कोई नयी ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकते ।
उसी सिलसिले में ऑफ़िस से बात करके आ रही हूँ । अवंतिका ने शर्मिष्ठा का हाथ पकड़ते हुए कहा..
..अरेऽऽ ! शर्मिष्ठा कुछ सोचते हुए बोली एक जैसी समस्या पर तुम्हारा जाना और मेरा आना । अजीब इत्तेफ़ाक है ?
**जिज्ञासा सिंह**
जिज्ञासा, तुम्हारा यह 'अजीब इत्तिफाक़' मुझे हज़म नहीं हुआ.
जवाब देंहटाएंमेरी दृष्टि में बुजुर्गों को अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से, अपने टर्म्स पर, जीने का उतना ही अधिकार है जितना कि उनकी संतान को. उनको अपनी सन्तान के बच्चों के अवैतनिक सेवक बनने की कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए.
जी गोपेश जी, क्षमा प्रार्थी हूँ मुझे आपके अवैतनिक सेवक शब्द पर आपत्ति है।आम तौर पर खुद आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए भी लडके के माता- पिता घर के लिए कमाऊ बहू का ही चयन करते हैं।अगर बहू कमाऊ है और शालीन के साथ सहयोगी भी है तो कुछ घन्टे के लिए अपनी भावी पीढ़ी को संरक्षण देने में उन्हें सहयोग करना चाहिए।मानती हूँ माता-पिता से स्वार्थ साधने वाले बेटे बहू असंख्य हैं पर कुछ लोग बहुत अच्छे भी होते हैं।आखिर एक दूसरे के सहयोग से ही परिवार चलता है।किसी दिन माता -पिता को भी जरुरत पड़ सकती है।हाँ यदि बेटे बहू के साथ स्वभाव गत समस्याएँ हैं तब और बात है। 🙏🙏
हटाएंरेणुबाला, दादा-दादी या नाना-नानी, नन्हें-मुन्नों की देखभाल करें या न करें, यह उन पर छोड़ देना चाहिए.
हटाएंआमतौर पर लड़के के माँ-बाप कमाऊ बहू अपने बेटे की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए लाते हैं न कि अपने किसी स्वार्थ के लिए.
अपने माँ-बाप को इमोशनली ब्लैकमेल कर के अपना उल्लू सीधा करने वाले श्रवणकुमार और श्रवणकुमारियाँ समाज में बहुतायत में हैं और ठुकराए हुए असहाय बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम बहुत कम हैं. वैसे जिज्ञासा की कहानी अच्छी है, इस बार हाजमोला खा कर इसका अंत हज़म करने की कोशिश करूंगा.
आदरणीय सर !
हटाएंमेरी लघुकथा का आशय क़तई ये नहीं कि कोई बाबा दादी अपने बच्चो के बच्चों का बँधुआ या अवैतनिक सेवक बन जाय । मैंने एक ऐसी दादी के समर्पण का भी ज़िक्र किया है, उनकी भी अपने जीवन की कुछ शर्तें हो सकती हैं, शायद आपका ध्यान उस पर नहीं गया । सर आज हम शहर से लेकर गाँवों तक एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहाँ अचानक कामकाजी बहुओं की माँग बहुतायत में हो रही है, हर कोई चाह रहा है कि उसकी बहू घर बाहर दोनों जगह काम करे, कमाए, बहू बेटा दोनों मिलकर घर की पारिवारिक, आर्थिक, स्थिति को बखूबी सम्भाले ऐसे में जब ऐसा कोई उदाहरण हमारा पढ़ा लिखा समाज प्रस्तुत करता है तो लेखनी अपने आप लिखने को बाध्य हो जाती है, ये मेरी समस्या नहीं, मैंने उम्र या रिश्ते का विचार न करके एक पारिवारिक समस्या या कहें तो संघर्ष पर ध्यान दिलाने की कोशिश की है, हाँ मैंने ऐसी दादियों को भी देखा है, जिनकी कमर बच्चा लादने में झुक जाती है, खूब विरोध भी किया है, पर क्या दो पीढ़ियाँ सामंजस्य बैठा के उदाहरण नहीं प्रस्तुत कर सकतीं ।
एक अलहदा और विचारणीय विमर्श देने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
ऐसे अजीब इत्तेफाक अक्सर होते रहते हैं जीवन में ........ कोई बुज़ुर्ग बच्चों की परवरिश करके खुश तो कोई अपने ढंग से जीवन जीने की ख्वाहिश रखते हैं हैं ..... विचारणीय कथा .
जवाब देंहटाएंजी, दीदी आपने कथा की गहराई और विमर्श तक पहुंच लेखन को सार्थक कर दिया ।आपका कोटि कोटि आभार।
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 4 जुलाई 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बढ़िया लघुकथा प्रिय जिज्ञासा जी।अपने अपने विचार और सोच है सभी की।दो लोगों के साथ कभी एक जैसा नहीं होता।कुछ भावी संतति के प्रति बहुत भावुक होते है तो कई लोगों को अपनी आजादी बहुत पसंद है।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आपको मेरा सहृदय आभार प्रिय रेणु जी । आपने लघुकथा का सार और अपने पक्ष को रखा । नई पीढ़ी के अंदर दोष ही दोष हैं या मातापिता के अंदर सब अच्छाई ही अच्छाई है, ये बात तो मेरी समझ से परे है । कुछ संदर्भो और अनुभवों के आधार पर ये लघुकथा लिखने की कोशिश की है ।
हटाएंइसी समाज में हर तरह के लोग हैं, ऐसा मेरा भी मानना है ।
आपका बहुत आधार प्रिय रेणु जी ।
बहुत सुन्दर लघुकथा ....सही कहा सबके अपने अपने विचार हैं ...। घर परिवार की जरुरत के अनुसार सामर्थ्यानुसार सहयोग करने में कोई बुराई नहीं । दादा दादी और नाना नानी के प्यार पर बच्चे का पूरा हक होता है।हाँ कुछ लोग हक का दुर्पयोग भी करते हैं
जवाब देंहटाएंलघुकथा के मर्म तक जाने के लिए आपका हार्दिक आभार सुधा जी ।आपकी प्रेरक टिप्पणियां नव सृजन का द्योतक हैं।
हटाएंसबका अपना अपना हिसाब है । बस कोई जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। बाकी बुजुर्ग अपने तरीके से ताल मेल बिठा लेते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है रंजू भाटिया जी ।
हटाएंचिन्तन परक लघुकथा । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी।
हटाएंविचारणीय लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंपरिवार की गाड़ी पारस्परिक, विश्वास, एड्जस्टमेंट, स्नेह और सहयोग के चक्कों पर ही बैलेंस करके सामान्य गति से चलती रहे यही सुखद जीवन का मूलमंत्र है। बस इतना एतिहाद रखना है कि अहं या स्वार्थ का नुकीली सिरा
जवाब देंहटाएंकिसी भी चक्के को क्षतिग्रस्त न कर दे।
-----
सहज अभिव्यक्ति।
बहुत आभार सखी ।आपकी प्रतिक्रिया मेरे लघुकथा लेखन को संबल देगी । सुझाव सहयोग की निरंतरता बनी रहे । शुभाकामनाएं।
हटाएंवाह!जिज्ञासा ,बहुत खूब ! मेरा मानना है आपसी प्रेम और सहयोग से चले तो घर स्वर्ग बन जाता है । मैं तो अपना बचपन फिर से जी रही हूँ बच्चों के साथ ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात लिखी आपने । ब्लॉग पर सार्थक प्रतिक्रियाएं एक दूसरे का मनोबल हैं ।आपकी प्रतिक्रिया मेरे लघुकथा लेखन को संबल देगी । सुझाव सहयोग की निरंतरता बनी रहे । शुभाकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसब की अपनी अपनी सोच और परिस्थितियां होती है।
जवाब देंहटाएंदोनों रूपों को एक साथ आपने एक ही कहानी में सुंदरता से बताया है।
बहुत बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लघुकथा विचारोत्तेजक है जिज्ञासा जी। संसार में सभी प्रकार की सोच एवं दृष्टिकोण वाले लोग होते हैं। अच्छा यही है कि दूसरों को प्रभावित करने वाला कोई भी क़दम उठाने से पूर्व उनके संबंधित विचारों को जान लिया जाए। यदि आपने एक बहुत पुरानी हिन्दी फ़िल्म 'मेरे अपने' नहीं देखी है तो मेरे अनुरोध पर देखिए। अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएं