धीरे धीरे बच्चों की टोली की आवाज़ में देशभक्ति के तराने मेरे घर के दरवाज़े पे गूंजने लगते हैं और घर में हलचल सी मच जाती है, मैं नन्ही सी बच्ची नन्हें नन्हें पाँवों से दौड़कर अपने परबाबा के घुटनों में चिपक कर सारे बच्चों, गुरुजनों तथा अपने परिजनों के साथ अपनी मीठी, तोतली ज़ुबान में होंठ हिलाते हुए गाने लगती हूँ और दादी,ताई,माँ,चाची सभी घर के बरामदे में झाँकती हुई हमारा साथ दे रही होती हैं ।
" वीर तुम बढ़े चलो ।
धीर तुम बढ़े चलो ।।"
थोड़ी देर में बाबाजी राष्ट्र्गान गाते हैं और हम सब उनका साथ देते हैं, फिर पँगत लग जाती है, और सब भोजन करते हैं,जलेबियाँ खाते हैं,ताऊजी सभी गुरुजनों को पान खिलाते हैं तथा सब एक दूसरे को गणतंत्र दिवस की बधाई देते हैं और फिर एक बार मेरे सारे भैया दीदी अपने गुरुजनों के साथ देशभक्ति के नारे लगाने लगते हैं ।
भारत माता की जय ।
भारत माता की जय।।
और फिर ये सुंदर कारवाँ तिरंगा थामे, देशभक्ति का नया तराना गाते हुए, शनैः शनैः मेरी आँखों से ओझल होता हुआ कहीं बहुत दूर चला जाता है जिसे अपलक मेरी आँखें आज तक ढूँढ रही हैं और मुझे वो दिखाई नहीं देता ।शायद देशभक्ति का वो मनोरम दृश्य मैं फिर कभी नहीं देख पाऊँगी ।
**जिज्ञासा सिंह**