सीख
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“दादा जी आप पार्क जाते वक्त हमेशा इस नाले के पास क्यूँ खड़े हो जाते हैं..? देखिए न.. शिवी के दादा जी पार्क पहुँच गए, शिवी के साथ और आप अभी तक यहीं खड़े हैं”
“तुम नहीं समझोगे बेटा ?
“अरे बताइए ना दादा जी ।”
“कहा ना.. नहीं समझोगे ।”
“उं..उं..फिर भी.. बताइए दादा जी..” रोहन पैर पटकने लगा ।
“देखो बेटा..
घर में मैं सबसे बड़ा हूँ न.. पूरे घर का मालिक.. ऐसे समझो.. घर में कोई दुःखी हो..जैसे दादी के घुटने का दर्द या तुम्हारे पापा का मम्मी से झगड़ा और ..कोई ख़ुशी हो.. जैसे तुम्हारा जन्मदिन..या बुआ का आना.. सब कुछ मुझे ही तो देखना चाहिए ।“
“क्यों ? दादा जी ?”
“.. क्योंकि घर में बड़ा होने के नाते घर का मुखिया भी हूँ..जानते हो बेटा.. हर घर में एक मुखिया होना ही चाहिए, नहींतो घर के लोग हर काम अपने मन का करने लगते हैं, सही दिशा निर्देश न मिलने से कभी-कभी भटक भी जाते हैं,अतः मुखिया का काम होता है कि परिवार को अच्छे-बुरे का ज्ञान कराना ।”
“अगर आपकी बात कोई नहीं माना तो दादा जी..।”
“तो इसीलिए तो मैं इस नाले को रोज़ देखता हूँ, जानते हो बेटा मैं नाले से सीखता हूँ..बहना..सबको साथ लेकर बहतेहुए तटस्थ रहना.. तुमने भी देखा होगा नाले के अंदर कितनी गंदगी, कचरा, कूड़ा सब बहता है, कभी-कभी उसमें तुम्हारे पार्क का फूल भी बहता हुआ दिखाई देता है और तो छोड़ो बेटा नाले में अगर तुम दूध डालो या शहद डालो या ज़हर डालो सब साथ-साथ बह जाएगा ।”
“कहने का मतलब है कि घर में हर तरह के लोग होते हैं, अच्छे, बुरे, सीधे और झगड़ालू.. और मुखिया का काम होता है सबको साथ लेकर चलना.. और मैं यानि तुम्हारा दादा , नाले से सीख लेकर रोज़ अपना घर चलाता हूँ.. समझे मास्टर रोहन !”
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-09-2022) को "आओ हिन्दी-दिवस मनायें" (चर्चा अंक 4551) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
हटाएंप्रेरक लघु कथा । लेकिन केवल मुखिया को ही नहीं हर व्यक्ति को ऐसे ही सबको साथ ले कर चलना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने दीदी। आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंवा व्व दी जीवन का गूढ़ रहस्य और वो भी नाले के माध्यम से...बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी । आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रेरक लघुकथा सखी। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंपहली बार देखा कि नाले को किस खूबसूरती से महिमामंडित कर दिया आपने...वाह जिज्ञासा जी...शानदार कहानी सबक देती हुई
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीख,इन्सान यदि सीखना चाहे तो वो नाले से भी सीख सकता है। प्रेरक लघुकथा जिज्ञासा जी 🙏
जवाब देंहटाएंकाश! ये बात सब समझ पाते तो कोई भी परिवार टूटता ही नहीं। हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय , सुंदर सीख देती सुंदर अभिव्यक्ति । हिन्दी दिवस की बहुत शुभकामनायें ।
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