अपना आसमान.. लघुकथा

 

ऑर्डर-ऑर्डर-ऑर्डर!

    जज ने आनंदी के पक्ष में फ़ैसला सुनाया, आनंदी ने गौरव को कनखियों से देखा। गौरव उनसे अलग होकर दुखी नहीं था, 

होता भी क्यों? उसके जीवन में बहार जैसी रागिनी, पहले से जो थी। वकील को धन्यवाद कह, आनंदी बेटी के साथ चलकर गाड़ी में बैठ गई, सालों की ज़िल्लत आँखों से बहती कि, बेटी ने माँ की आँखों में निहारा, बोली,


“ माँ! आपकी आँखों में हमारा आसमान हँसता हुआ दिख रहा है।"

जिज्ञासा सिंह