साँचे
ऑफ़िस का मौन.. लघुकथा
स्वप्निल लगातार बोले जा रहा था…
“तुम कहती हो कि मेरे अंदर धैर्य नहीं, बिलकुल भी संयम नहीं ! अरे तुम क्या जानो ? जनोगी-सुनोगी-समझोगी, तभी न ! कितना वर्कलोड होता है ऑफ़िस में. उसपे खूसट बॉस की किचकिच । कितना मौन, कितना धैर्य रखे इंसान ।”
“अब इधर तो कम्पनी को पूरा टारगेट देना है साल भर का, ऊपर से ऑफ़िस की प्रतिस्पर्धा । सब एक दूसरे की काटने में लगे रहते हैं, बॉस के चमचे, दोमुँहे। उनके पास तो और कोई काम ही नहीं।
यहाँ घर आओ तो तुम्हारा प्रवचन सुनो । थोड़ा धैर्य रक्खो, धीरज धरो । सुन लिया करो, वे बॉस हैं, तुम्हारे ।थोड़ा चुप रह जाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा ? अब ये मौन व्रत मुझसे नहीं होता । एक हफ़्ते से तुम्हारी सलाह पर ही काम कर रहा था ऑफ़िस में । फिर भी मुआँ बॉस आज भिड़ ही गया ।
अरे क्या हुआ ? खुल के कुछ बताओगे भी या फिर बड़बड़ाना ही है । रागिनी ने जैसे ही कहा ..
स्वप्निल ने फिर से चिल्लाना शुरू कर दिया..
रागिनी समझ चुकी थी कि ये ऑफ़िस का मौन बोल रहा है ।
**जिज्ञासा सिंह**
प्रस्थान (लघुकथा)
मृत्यु ने सोलह श्रृंगार किया ।
मोती माणिक्य से जड़ा रेशम की डोरी वाला, बहुत सुंदर एक बड़ा सा थैला लिया और चल दी एक और आत्मा लेने ।
डगर ने पूछा ।
“आज बड़ी बनी ठनी हो, इतने सुंदर वस्त्र और गहने में तो तुम जाती नहीं कभी आत्मा लेने, कोई ख़ास है क्या ? ”
मृत्यु मुँह बनाकर बोली ।
“हुँह, टोंक ही दिया आख़िर ! कितनी बार कहा है, टोंका मत करो, विघ्न पड़ जाता है, पूरी तरह तैयार आत्माएँ,अंत समय में धोखा दे देती हैं ।”
“अरे चलो नऽ ! नाराज़ न हो, मेरी तो छाती तैयार ही है, तुम्हारे चरण चूमने के लिए, डगर मुस्कुराती हुई बोली ।”
मृत्यु ने देखा कि डगर तो डगर, स्वर्ग से पृथ्वी तक पुष्प ही पुष्प बिछा हुआ है, वह अचंभित हो गई । उसने डगर से पूँछा।
“ क्या बात है ? इतनी सजावट ? पहले तो कभी देखी नहीं ।”
डगर चौंकी !
“अरे ! अब आप ऐसी बात कर रहीं, आपको तो सब पता है, आप जिस आत्मा को लेने जा रही हैं, वह कोई आत्मा नहीं, पृथ्वी पर जल और वायु का संरक्षण करने वाली एक ऐसी पुण्यात्मा है, जिन्होंने वर्षों से प्रकृति के संरक्षण का अभियान छेड़ रखा है, लाखों प्राणियों के जीवन को सुरक्षित, संरक्षित करने के लिए अपना सब कुछ, तन, मन और धन पृथ्वी को सौंप दिया है,और अब अपने पीछे हज़ारों, ऐसी ही पुण्यात्माओं की टोली तैयार करके छोड़ दी है, जो युगों-युगों तक पृथ्वी को संरक्षित करने का काम करेंगी ।उसी पुण्यात्मा के प्रस्थान की ख़ुशी में धरती और आसमान ने पूरी सृष्टि सजा दी है ।”
“ये क्या कह रही तुम ?
"प्रस्थान"
उन्हें तो मेरे साथ आना है ।”
मृत्यु अचंभित हो गई ।
“तो क्या ?”
ऐसी आत्माओं को मृत्यु को लेकर नहीं जाना पड़ता, वे मृत्यु को स्वयं बुलाती हैं, मृत्यु के ले जाने के बजाय, ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ पृथ्वी से "प्रस्थान" करती हैं ।
**जिज्ञासा सिंह**