“क्या सुबह से ही किच-किच मचाए हो तुम ?
“अरे यार अब तो छोड़ो ! इन्हें जीने दो अपनी ज़िंदगी !”
“कब तक अपनी दुहाई देते रहोगे ?”
.. हमने ये किया, हमने वो किया..हम आठ किलोमीटर पैदल चलकर पढ़कर बड़े हुए हैं, हमारी अम्मा ने हमें चुपड़ी रोटी पूरे साल टिफ़िन में अचार के साथ दी फिर भी हमने उफ़्फ़ नहीं किया और एक तुम हो हर वक्त तुम्हें कुछ न कुछ कमी पड़ी रहती है, ये ब्रांड..वो ब्रांड..ये पिज़्ज़ा..वो ड्रिंक..उफ़्फ़ !!”
“कुछ तो ये औलादें कुछ तुम.. सबने मिलकर जीना मोहाल कर दिया है, ये घर है,अखाड़ा नहीं ।”
.. आज रेणुका कहे जा रही थी और बाप-बेटा सुन रहे थे ।
”क्यों हर वक्त अपना उदाहरण देते रहते हो.. माना हमें बीती तारीख़ों से सबक़ लेना चाहिए पर अपना ज्ञान अगली पीढ़ी पर इतना भी न थोप दें कि उनकी अपनी समझ अपनी बुद्धि का विस्तार ही रुक जाय । ये भी तो सोचो वे हमारी संतान के अलावा इस दुनिया के एक इंसान है, जो हमारे समय में नहीं पैदा हुए है, ये आज के समय की पैदाइश हैं ।”
**जिज्ञासा सिंह**