“क्या सुबह से ही किच-किच मचाए हो तुम ?
“अरे यार अब तो छोड़ो ! इन्हें जीने दो अपनी ज़िंदगी !”
“कब तक अपनी दुहाई देते रहोगे ?”
.. हमने ये किया, हमने वो किया..हम आठ किलोमीटर पैदल चलकर पढ़कर बड़े हुए हैं, हमारी अम्मा ने हमें चुपड़ी रोटी पूरे साल टिफ़िन में अचार के साथ दी फिर भी हमने उफ़्फ़ नहीं किया और एक तुम हो हर वक्त तुम्हें कुछ न कुछ कमी पड़ी रहती है, ये ब्रांड..वो ब्रांड..ये पिज़्ज़ा..वो ड्रिंक..उफ़्फ़ !!”
“कुछ तो ये औलादें कुछ तुम.. सबने मिलकर जीना मोहाल कर दिया है, ये घर है,अखाड़ा नहीं ।”
.. आज रेणुका कहे जा रही थी और बाप-बेटा सुन रहे थे ।
”क्यों हर वक्त अपना उदाहरण देते रहते हो.. माना हमें बीती तारीख़ों से सबक़ लेना चाहिए पर अपना ज्ञान अगली पीढ़ी पर इतना भी न थोप दें कि उनकी अपनी समझ अपनी बुद्धि का विस्तार ही रुक जाय । ये भी तो सोचो वे हमारी संतान के अलावा इस दुनिया के एक इंसान है, जो हमारे समय में नहीं पैदा हुए है, ये आज के समय की पैदाइश हैं ।”
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना सोमवार 29 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी। लघुकथा को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन।मेरी असंख्य शुभाकामनाएं।
हटाएंपीढ़ियों के बीच की वैचारिक खाई को इंगित करती सुंदर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंलघुकथा के मर्म को समझने के लिए आपका हार्दिक आभार।
हटाएंसबसे बड़े मूर्ख और अहंकारी वो लोग होते हैं जो बुज़ुर्ग होते ही अपनी गणना सर्वगुणसंपन्न विभूतियों में करने लगते हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लघुकथा को सार्थक कर दिया । आपको मेरा सादर अभिवादन।
हटाएंअहंकारी और मूर्ख तो नहीं होते . हां अपनी मर्जी पर जीने वाली नयी पीढ़ी नहीं समझना चाहती उनकी बात का मर्म और उद्देश्य .
हटाएंसच कहा जिज्ञासा दी कि हमें यह समझना होगा कि ये आज की पीढ़ी है।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार ज्योति जी ।
हटाएंकहानी का संदेश जबरदस्त है ।बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा, यदि बड़ों में व्यवाहारिक गरिमा ना हो तो वे संतान के सम्मान से वंचित रह जाते हैं।स्वयं को सर्वगुण संपन्न और सामने वाले को कमतर समझना रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।हार्दिक बधाई इस सार्थक और चिंतनपरक कथा के लिए।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया मेरी प्रेरणा हैं।स्नेह बनाए रखें। आभार आपका।
हटाएंबहुत सही सन्देश…हर पीढ़ी को उसके समय के साथ ही चलने देना चाहिए । संस्कारों की दुहाई देकर हर समय नहीं कोंचना चाहिए!
जवाब देंहटाएंबहुत सही सन्देश…हर पीढ़ी को उसके समय के साथ ही चलने देना चाहिए । संस्कारों की दुहाई देकर हर समय नहीं कोंचना चाहिए!
जवाब देंहटाएंजवाब दें
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया।
हटाएंबढ़िया लघुकथा .
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति हमेशा प्रेरणा देती है ।आभार आदरणीय दीदी।
हटाएंसमय और परिस्थितियों के अनुरूप व्यवहार करने की शिक्षा देना ही काफी है बच्चों को न कि अपने समय की बीती बातों में उलझाना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संदेशप्रद लाजवाब लघुकथा।
ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति का हमेशा स्वागत है प्रिय सुधा जी । नमन ।
जवाब देंहटाएंDosto aaj mane aapke liye ek behatrin article likha hai jo life Quotes hai hindi mai umid karta hu aap Saab ko bhut pasand aaye gye.
जवाब देंहटाएंReality life Quotes IN Hindi