कहानी.. जंगली घास

“लखनऊ कनेक्शन वर्ल्डवाइड” पत्रिका में प्रकाशित कहानी जंगली घास





************

“ऐ मौत आज तू इतनी शांत कैसे है?

मौत! तू कभी तो एक क्षण में आ धमकती है, कभी वर्षों मलमल के गद्दे पर सड़ा देती है, क्या कहें तुझसे? तुझसे बड़ा खिलाड़ी नहीं देखा!”

 

 सिंदूरी ज़मीन पर मरी हुई पड़ी है, दोनों बच्चे उसके शरीर से चिपके हुए हैं, ग्यारह महीनें का मुन्ना ब्लाउज़ को ऊपर करके उसके मरे हुए स्तनों में दो बूँद जीवन खोज रहा है, तीन साल की बिट्टन को थोड़ा-थोड़ा अहसास है, कि माँ अब कभी नहीं लौटेगी.. सामने लोगों की भीड़ में खड़ी केंवली आँटी की आँखों का आँसू बिट्टन को यह बता रहा है, कि माँ के साथ कोई बड़ी अनहोनी हो गई है, आख़िर बचपन से ही वो ऐसी घटनाओं की आदी जो हो चुकी है।

 

 लूना अपनी नौकरानी की हुई अचानक मौत पर उसका अंतिम दर्शन करने उसकी झुग्गी पर आई है, उसे तो सिंदूरी की मौत का पता ही नहीं चलता पर हाकिम सब्जीवाला सिंदूरी का पड़ोसी है, उसी ने आज सुबह, जब लूना सब्ज़ी लेने घर के बाहर निकली तो यह खबर सुनाई। लूना को विश्वास ही नहीं हुआ कि सिंदूरी अब इस दुनिया में नहीं है, सिंदूरी के मासूम बच्चों के दर्द से आहत वो अपने को उसकी झुग्गी पर आने से रोक नहीं पाई।

 

  अभी कल ही की तो बात है, जब उसने माली के न आने पर सिंदूरी से कहा था कि वो खुरपी लेके गमलों की गुड़ाई कर दे और जो ये घास के जैसे कटीले महीन पौधे उगे हैं, उन्हें जड़ से निकाल दे, तब जवाब देते हुए सिंदूरी ने कहा था.. 

 “मेमसाहब ये जंगली पौधे का बीज आपके गमले में कैसे उग गया? ये तो हमने बचपन में जंगल में बकरियाँ चराते बखत देखा था, इसे कितना भी काटो, जड़ से उखाड़ो, यह पता नहीं कैसे दोबारा उग आता है? उसने भी सिंदूरी की बात पर ग़ौर किया तो यही पाया कि वह सही ही कह रही है, क्योंकि ये जंगली पौधा कई बार साफ़ करने के बाद फिर कुछ ही दिनों में घास की तरह बढ़कर तेज़ी से उगता हुआ नज़र आ जाता है।सिंदूरी गमले की गुड़ाई करते वक्त बार-बार जंगली घास की ही बातें किए जा रही थी। कहते-कहते वह बताने लगी कि..

“मेमसाहब घास की ही तरह कुछ मरद भी जंगली होते हैं, जैसे हमारा मरद, जितनी बार पुलीस उसको सुधार करने के वास्ते जेल भेजती है, ओतनी बार वो जेल से एक नया कुकरम सीख कर आ जाता है।”

 

“क्या हुआ सिंदूरी?”

लूना ने जब उससे कुरेदकर पूँछा तो वह दुःखी मन से अपनी दुःखभरी दास्तान साझा करने लगी..

 

“मेम साहब पिछली बार जब बिट्टनिया के पापा जेल गए तब पुलीस वाला साहब हमको बताया था कि जेल में इसकी सारी हेकड़ी निकाल दी जाएगी। इस दुष्ट की जेल जाने पर ही बदमाशी ढीली पड़ेगी, ये सुधर कर आएगा। लेकिन ऊ जहरीली शराब के धन्धे में गया औ जब लौट के आया तौ जहरीली गोली खाने लगा, दुसरी बार ऊ भाँग-गाँजा रखने के आरोप में गया औ जब लौटा तौ नशा का इंजेक्शन लेने लगा। अबकी बार तौ जब वो हमको पटक के मार रहा था, किसी के भी बचाने पर हमें छोड़ नहीं रहा था तो हमारे पड़ोसी पुलीस बुला लिए थे, ऊ मौक़े पर ही धर लिया गया मेमसाहब! जाते बखत अंगारा जैसी आँख से घूर-घूर देख रहा था, अब पुलीस के सामने बोल तो सकता नहीं था, ग़ुस्से में गया है मेमसाहब! इस बार तौ आके हमारी जान ही ले लेगा। देखिएगा चाहे आप!

  

  हम सही कहते हैं मेमसाहब! हमारा मरद यही घास की तरह है, घास को ही देखो चाहे जितना काटी-छाँटी जाय फिर हरा होके नया रंग लेके उग आती है, जंगली घास तौ नन्हा-नन्हा जंगली फूल भी खिला देती है, भले ही ऊ फूल दो दिन म मुरझा जाय। पर हमारा मरद! हाय दैया! हमारा मरद! 

हमारा मरद तौ रंग की जगह बदरंग हो जाता है, ओहमा तौ कबहुँ फूल खिलबे नाहीं किया, जब खिला तब काँटा ही खिला। अब का कहें मेमसाहब?”

 

  “अरे तुम उसे समझाती क्यों नहीं? दुनिया के नियम धर्म की बात मुझे बताती हो कभी उसे भी समझाया करो, हो सकता है कुछ समझ में आ जाय, आख़िर तुम उसकी पत्नी हो, हर बात न सही कुछ तो मानेगा, मैं कह रही हूँ, इस बार जब वो आए तो उसे समझाना और जब वो न समझे तो मेरे पास लाना, मैं उससे बात करूँगी, मेरी भी न सुनी तो साहब से बात करवाऊँगी, साहब उसे अच्छी तरह समझा देंगे, नहीं समझा तो साहब के पास उसका भी उपाय है, आख़िर तुम्हारे साहब इतने बड़े वकील जो हैं।”

 

“वो तो ठीक है मेमसाहब! पर ऊ.. ऊऽ तौ!”

हिचकिचाती हुई सिंदूरी अपने होंठों को दाँतों से काटते और पैर के अँगूठे से फ़र्श को खुरचते हुए बोली, “ समझानाऽ.. समझाने की बात तो मेमसाहब कहिए ही न, हमारी तो लड़ाई ही इसी बात की है, ऊ कहता है कि मैं उसे समझाती क्यों हूँ? जब भी कोई ऐसी बात होती है तभी कहता है कि मैं उसे नीचा दिखाने के लिए ही उसके सामने बोलती हूँ। ऊ बड़ा घमंडी है मेमसाहब! जैसे ही साहब की बात करूँगी वो मेरे ऊपर घोर चढ़ाई कर-कर लड़ेगा कि तुम हमारी बात बाहर जाकर कहती हो, उल्टा-सीधा बकेगा। कोठी वालों को गाली देगा। साहब को भी नहीं छोड़ेगा, जो पाएगा वही मुँह से निकाल देगा, ताही से तो हम अपने कोठी वालों का नाम नहीं लेते उसके सामने।”

 

“ओह!”

लूना को ऐसी स्थितियों का अनुभव नहीं था, वह सिंदूरी की बातें सुन अचम्भित थी। रात को ख़ाना खाते वक्त उसने पति से सिंदूरी की परेशानी के बारे में बात की थी पति ने आश्वासन दिया था कि अब जब भी मैं घर पर रहूँ और सिंदूरी आए तो तुम ये बात छेड़ना, मैं उससे बात करूँगा और उसे समझाऊँगा कि उसे आगे क्या करना है? लेकिन होनी को कौन टाल सकता है? कल लूना को अपनी सारी कहानी बताने के बाद सिंदूरी जब अपने घर पहुँची तो वहाँ जंगली घास का पौधा पहले से ज़्यादा बड़ा होकर, ज़हरीले काँटों के साथ उगा हुआ था पिछली जितनी भी डालें काटने के बारे में उसने अब तक विचार किया था उन सभी डालों में ज़हरीले काँटे जड़ तक झूल रहे थे, सिंदूरी ने सुना था कि कोई जंगली फूल होता है जो कीड़े-मकोड़ों को अपने गिरफ़्त में लेके खून चूस लेता है, परंतु आज उसके घर में उगा जंगली घास का पौधा उसका खून चूसने के लिए तैयार था। और वही हुआ जो सिंदूरी को डर था, घर पहुँचने से पहले ही उसका पति जेल से छूटकर नशे में धुत्त होकर, घर आ चुका था और सिंदूरी से प्रतिशोध लेने को तैयार बैठा था।

   

 लूना के सामने पड़ी, जंगली पौधे से चुसी   हुई सिंदूरी की लाश रात की हर कहानी बयान कर रही थी, उसका चेहरा कई जगह से फटा हुआ था, गले पर काला स्याह निशान, आँखें सूखे जमें खून से ढकीं और फूली हुईं, बुरी तरह उलझे बालों का झुण्ड, हाथ-पैर पर चोटों के अनगिनत घाव पति की दरिन्दगी की कहानी कह रहे थे। दरिन्दगी ऐसी कि एक जीते-जागते इन्सान को मौत तक ले गई। लाश से लिपटे दोनों बच्चे रोने के बाद सूखे पड़े, अपने कपोलों से मक्खियाँ उड़ा रहे थे, अथाह दर्द की कहानी कहतीं मासूम आँखें थककर बंद हुई जा रही थीं। 

 

जिज्ञासा सिंह

लखनऊ