आखिरी स्नेह

    पैरों को चूमते हुए दूब धीरे धीरे सहला रही है माली के तलवे । माली को गुदगुदी होती है, भीना सा मासूम अहसास भी । 

  पर वो क्या जाने ? जाड़े में गर्म और गर्मियों में सर्द अहसास देने वाली उस नन्हीं मासूम छुईमुई दूब का सौंदर्य । जो गर्म खुरदुरी मिट्टी में एक कोपल के साथ जमती है और धीरे धीरे मिट्टी की गर्मी सोखकर अपने अंदर समाती हुई पूरे लॉन में फैल जाती है, आने जाने वाले लोग अपने रेशमी या खुरदुरे पावों को नर्म मुलायम अहसास देने के लिए पैसे से खरीदे हुए जूते उतार देते हैं और अंगड़ाई लेते हुए अपने प्रिय का हाथ पकड़े उसके दामन में पसर जाते हैं।

माली को कहते हुए आज उसने सुना है, कि अब वो पहले जैसी नहीं रह गई है, आज उसका आखिरी दिन है, क्योंकि ऋतु परिवर्तित हो चुकी है और उम्रदराज होने से उसकी रेशमी पत्तियाँ झड़ रही हैं, अतः उसे जड़ से उखाड़ कर खत्म किया जाएगा उसकी जगह कोई नई घास ले लेगी । दूब तो बस अपने माली को आखिरी स्नेह दे रही है ।               

**जिज्ञासा सिंह**

14 टिप्‍पणियां:

  1. हम प्रकृति से बहुत दूर होते जा रहे हैं. दूब के मैदान में टहलने से ज़्यादा अब हमको सिंथेटिक ग्रास के ट्रैक पर चलने में आनंद आता है.

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    1. बिलकुल सही कहा आपने ।
      बहुत बहुत आभार आपका इस सटीक प्रतिक्रिया के लिए।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
    'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी लघुकथा को चर्चा मंच तक पहुंचाने के लिए आपका हृदयतल से आभार और अभिनंदन प्रिय अनीता जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  3. वाह! दुर्वा - मर्दन से झांकता जीवन - दर्शन!!!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।

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  4. वाह!क्या बात है ,बहुत सुंदर सृजन जिज्ञासा ।

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  5. कोमल हृदय की संवेदनाओं को व्यक्त करती हृदय स्पर्शी लघुकथा।

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  6. दूब के माध्यम से गहन संदेश देती सराहनीय लघुकथा जिज्ञासा जी।
    सस्नेह

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  7. आपने लघुकथा को सराहा ।लेखन सार्थक हुआ ।आती रहा करें आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का इंतजार रहता है सखी ।

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  8. दूर्वा का अनकहा स्नेह इन्सान के लिए बहुत बडा उपहार है।एक सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति जो एक संवेदनशील हृदय ही अनुभव कर सकताहै।

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  9. कथा को सार्थक करती आपकी दिव्यदृष्टि के लिए आभार सखी ।

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