उसने दौड़कर, हौले हौले सहलाते हुए उसे उठाया और सीने से चिपका लिया, बिना सोचे समझे वो नन्ही जान उसके वक्ष से चिपक गया, यूँ कहें उसके कोमल नाखून नंदिनी के आँचल में फँस गए, और नंदिनी ने सोचा कि परिंदे ने उसे अपनी माँ बना लिया।
उसने सत्तू का घोल और दूध में पानी मिलाकर बारी बारी से परिंदे को पिलाया और उसकी जान बचायी । इसी तरह परिंदे को पालते पोसते कई दिन गुजर गए, धीरे धीरे माँ चिड़िया भी आने की कोशिश में, परिंदे के आसपास मंडराने लगी, अपने चिरौटे से मिलने के लिए उसका मन मचलने लगा, नंदिनी की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा, जब एक दिन माँ फ़ाख्ता अपने नन्हें चिरौटे को पंखों में छुपाती नज़र आई । एक दो दिन बाद माँ बच्चा गलबहियाँ करने लगे, परिंदे के पंखों ने भी रफ़्तार पकड़ी और दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और फुर्र से उड़ गए, और जाली की खिड़की से, सुकून भरी नज़रों से नंदिनी, उन्हें उड़ता देखती रह गयी । उसकी ममता ने टीस मारी और मुँह से निकला । आह !!
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय यशोदा दीदी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनंद" जैसे सुंदर मंच पर मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐🙏
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय जोशी जी,आपको मेरा सादर अभिवादन ।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी गहन भाव लघुकथा। जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी और भावपूर्ण प्रस्तुति है प्रिय जिज्ञासा जी। बचपन के अनेक ऐसे प्रसंगों को स्मरण कराती ये लघुकथा नंदिनी के निश्छल ममत्व के माध्यम से मूक प्राणियों के लिए करुणा का आभास कराती है। सस्नेह
जवाब देंहटाएंविनम्र आभार आपका रेणु जी ।
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