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सिर के बाल

“जुगनी ज़रा सुनना तो!”

कोई ग़ल्ती हो गई क्या साहब?


“ अरे नहीं.. मैं ये कह रहा था कि तुम काम करते वक्त इतना आँचल क्यों सिर से खिसकाती हो?.. अभी तुम्हारे सिर से ईंट गिर जाती, चोट लग सकती है न। यहाँ कोई पर्दे की बात नहीं.. काम करते वक्त अपना ध्यान रखना चाहिए। 


जुगनी कुछ जवाब देती.. उसके पहले ही बग़ल खड़ी नन्हकी मुस्कुराते हुए बोल उठी..


“अरे ऐसी कोई बात नहीं साहब.. 

ई शरमाती है न.. अपना सिर खोलने से।”

बहुत साल से मौरंग-मसाले का तसला और ईंट ढोते-ढोते इसके सिर के बाल जो उड़ गए हैं।”


**जिज्ञासा सिंह**

5 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह!बहुत खूब ...ये भी खूब रही ।
    जिज्ञासा जी ..लाजवाब सृजन।

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  2. “बहुत साल से मौरंग-मसाले का तसला और ईंट ढोते-ढोते इसके सिर के बाल जो उड़ गए हैं।”
    मुस्कराहट के साथ नन्हकी ने बहुत गंभीर बात कह दी । हृदयस्पर्शी लघुकथा जिज्ञासा जी!

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  3. ये नन्ही की गम्भीर बात नहीं जीवन का करुण सत्य है जो श्रमिक वर्ग के सभी लोगों की कड़वी सच्चाई है।सर का पल्लू ना जाने कितने राज ढक गया 😔😔

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