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गुलाबी गलियाँ.. वेश्याओं के जीवन पर आधारित लघुकथाऐं

मेरी लघुकथा-आहट



“जी, आप लोग कौन?”

“हम सरकारी दफ़्तर से आए हैं। शिखा आपकी ही बेटी है??”

“जी हाँ। क्यों क्या हुआ? शिखा ने क्या कर दिया? उसे क्यों पूँछ रहे हैं?”

“आपको पता नहीं क्या?”

“ये आपके साथ पुलिस! पुलिस क्यों आई है? कोई बात है क्या?

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं, उनके लिए ये सूचना पत्र लाए हैं, जिसके बदले हमें इस रसीद पर उनका हस्ताक्षर चाहिए।”

“सूचना पत्र! वो तो इस समय घर में ही नहीं है। उसका परीक्षाफल आने वाला है न, उसी सिलसिले में कहीं गई है।”

“हमें उसी परीक्षाफल के संदर्भ में ही कुछ सूचना देनी है।”

“सूचना?? क्या मतलब है आपका? मेरी बेटी का पढ़ने के अलावा किसी बात से कोई मतलब ही नहीं है, फिर कौन सा संदर्भ?”


…बदनाम बस्ती के बड़े गलियारे के छोटे से कमरे का पर्दा उठाए हुए दो लोग एक सिपाही के साथ खड़े हुए शिखा की माँ कुंजा से बातें कर रहे हैं,  कुंजा जिस्म बेचने के धंधे में बचपन से ही है, उसी कमाई से वह अपनी दो बेटियों को पढ़ा रही है, परंतु ग्राहकों और वसूली करने वालों के ख़ौफ़ का साया उसे इस धंधे में भी चैन नहीं लेने देता।

     इतने में सामने से शिखा आती हुई दिखती है, उसी समय पीछे से कई छोटी-बड़ी गाड़ियों का रेला आकर उसके दरवाज़े को घेर लेता है, अपने कमरे के बाहर, भीड़ देख कुंजा भयभीत हो, बेटी से कहती है.. कोई तुम्हें लेने आ रहा है, मुझे कुछ अजीब सी आहट हो रही है।

    गाड़ी से उतरकर शिखा के दो-तीन दोस्त आकर कुंजा को उठाकर, नाचते हुए चिल्लाने लगते हैं.. 

“आँटी शिखा ने टॉप किया है, आपकी बेटी जज बन गई है।”

 पुलिस के साथ खड़े दोनों व्यक्ति शिखा का अभिवादन करते हुए एक लिफ़ाफ़ा पकड़ाते हैं, शिखा लिफ़ाफ़ा खोलकर पढ़ती हुई गौरवान्वित हो, माँ के हाथों को चूम कर कहती है..  

“माँ अब तक आई आहटों को भुला के, जीवन में आती हुई अच्छी आहट का स्वागत करो।”


जिज्ञासा सिंह




 

4 टिप्‍पणियां:

  1. लाखों में एक ही सही !
    किसी ने तो अपनी बिगड़ी किस्मत की आंच अपनी बेटी पर नहीं आने दी.

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  2. आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया का स्वागत है सर।

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  3. कहानी बहुत अच्छी है, समाज को नया सन्देश दे रही है। आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं,

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  4. कृपया अपना नाम लिखें! सादर आभार!

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