अन्य ब्लॉग

ऑफ़िस का मौन.. लघुकथा

स्वप्निल लगातार बोले जा रहा था…

“तुम कहती हो कि मेरे अंदर धैर्य नहीं, बिलकुल भी संयम नहीं ! अरे तुम क्या जानो ? जनोगी-सुनोगी-समझोगी, तभी न ! कितना वर्कलोड होता है ऑफ़िस में. उसपे खूसट बॉस की किचकिच । कितना मौन, कितना धैर्य रखे इंसान ।”

“अब इधर तो कम्पनी को पूरा टारगेट देना है साल भर का, ऊपर से ऑफ़िस की प्रतिस्पर्धा । सब एक दूसरे की काटने में लगे रहते हैं, बॉस के चमचे, दोमुँहे। उनके पास तो और कोई काम ही नहीं।

   यहाँ घर आओ तो तुम्हारा प्रवचन सुनो । थोड़ा धैर्य रक्खो, धीरज धरो । सुन लिया करो, वे बॉस हैं, तुम्हारे ।थोड़ा चुप रह जाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा ? अब ये मौन व्रत मुझसे नहीं होता । एक हफ़्ते से तुम्हारी सलाह पर ही काम कर रहा था ऑफ़िस में । फिर भी मुआँ बॉस आज भिड़ ही गया ।

अरे क्या हुआ ? खुल के कुछ बताओगे भी या फिर बड़बड़ाना ही है । रागिनी ने जैसे ही कहा ..

स्वप्निल ने फिर से चिल्लाना शुरू कर दिया..

  रागिनी समझ चुकी थी कि ये ऑफ़िस का मौन बोल रहा है ।

**जिज्ञासा सिंह**

12 टिप्‍पणियां:

  1. पुरुष तो भड़ास निकाल ही लेता है । ऑफिस में जो कुछ नहीं कह पाता वो घर पर सब पर चिल्ला कर खुद को शांत कर लेगा ।,लेकिन पत्नी कहाँ जाए ? सार्थक लघु कथा ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, सही कहा आपने । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार दीदी!

      हटाएं
  2. पुरुषों की भडास पत्नियों पर ही निकलती है।औरत को सूक्ष्म मनोविज्ञान में दक्ष बनाया है ईश्वर ने और हर तरह से सक्षम बनाया है इस कथित दफ्तरी मौन को झेलने के लिए।सार्थक पोस्ट के लिए बधाई प्रिय जिज्ञासा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सूक्ष्म और सटीक समीक्षा के लिए आभार सखी ।
      आपकी टिप्पणी रचना में रचना का आविष्कार करती है । आभार आपका।

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-10-2022) को  "ब्लॉग मंजूषा"  (चर्चा अंक-4579)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय शास्त्री जी। आपको मेरा नमन और वंदन।

      हटाएं
  4. पुरानी कहावत है - बाहर लात खा कर आने वाला मर्द घर में अपनी बीबी पर गुर्राता ज़रूर है.

    जवाब देंहटाएं
  5. जी, सही कहा आपने । सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर !

    जवाब देंहटाएं
  6. हा हा हा... बहुत खूब- पत्नी की प्रतिक्रिया और आपका प्रभावी लेखन!

    जवाब देंहटाएं
  7. आपका हार्दिक आभार सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए ।

    जवाब देंहटाएं