मृत्यु ने सोलह श्रृंगार किया ।
मोती माणिक्य से जड़ा रेशम की डोरी वाला, बहुत सुंदर एक बड़ा सा थैला लिया और चल दी एक और आत्मा लेने ।
डगर ने पूछा ।
“आज बड़ी बनी ठनी हो, इतने सुंदर वस्त्र और गहने में तो तुम जाती नहीं कभी आत्मा लेने, कोई ख़ास है क्या ? ”
मृत्यु मुँह बनाकर बोली ।
“हुँह, टोंक ही दिया आख़िर ! कितनी बार कहा है, टोंका मत करो, विघ्न पड़ जाता है, पूरी तरह तैयार आत्माएँ,अंत समय में धोखा दे देती हैं ।”
“अरे चलो नऽ ! नाराज़ न हो, मेरी तो छाती तैयार ही है, तुम्हारे चरण चूमने के लिए, डगर मुस्कुराती हुई बोली ।”
मृत्यु ने देखा कि डगर तो डगर, स्वर्ग से पृथ्वी तक पुष्प ही पुष्प बिछा हुआ है, वह अचंभित हो गई । उसने डगर से पूँछा।
“ क्या बात है ? इतनी सजावट ? पहले तो कभी देखी नहीं ।”
डगर चौंकी !
“अरे ! अब आप ऐसी बात कर रहीं, आपको तो सब पता है, आप जिस आत्मा को लेने जा रही हैं, वह कोई आत्मा नहीं, पृथ्वी पर जल और वायु का संरक्षण करने वाली एक ऐसी पुण्यात्मा है, जिन्होंने वर्षों से प्रकृति के संरक्षण का अभियान छेड़ रखा है, लाखों प्राणियों के जीवन को सुरक्षित, संरक्षित करने के लिए अपना सब कुछ, तन, मन और धन पृथ्वी को सौंप दिया है,और अब अपने पीछे हज़ारों, ऐसी ही पुण्यात्माओं की टोली तैयार करके छोड़ दी है, जो युगों-युगों तक पृथ्वी को संरक्षित करने का काम करेंगी ।उसी पुण्यात्मा के प्रस्थान की ख़ुशी में धरती और आसमान ने पूरी सृष्टि सजा दी है ।”
“ये क्या कह रही तुम ?
"प्रस्थान"
उन्हें तो मेरे साथ आना है ।”
मृत्यु अचंभित हो गई ।
“तो क्या ?”
ऐसी आत्माओं को मृत्यु को लेकर नहीं जाना पड़ता, वे मृत्यु को स्वयं बुलाती हैं, मृत्यु के ले जाने के बजाय, ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ पृथ्वी से "प्रस्थान" करती हैं ।
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-10-2022) को "गयी बुराई हार" (चर्चा अंक-4575) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में लघुकथा को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय सर ! मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
हटाएं'मौत का एक दिन मुहैयन है, नींद क्यूं रात भर नहीं आती' (मिर्ज़ा ग़ालिब)
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा तथा स्वर्गीय अनुपम मिश्र ऐसी ही दिव्यात्माएं थे। अपने पीछे वे अपने जैसे कितनों को छोड़ गए, यह ज्ञात नहीं। काश आपकी यह कथा सत्य सिद्ध हो एवं ऐसी अनेक विभूतियाँ इस धरा पर सतत् सक्रिय रहें! आहत पर्यावरण को आज ऐसी पुण्यात्माओं की महती आवश्यकता है। और किसी अन्य की प्रतीक्षा न करके हमें स्वयं ऐसा ही बनना होगा।
जवाब देंहटाएंऐसी पुण्य आत्माओं की धरती को बहुत जरूरत है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसच में, जीवन जीने के लिए सबको नियत अवधि ही मिलती है पर इसी में अपने सद्कर्मों से कुछ दिव्यात्मायेँ धरती को धन्य कर जाती हैं।पर मृत्यु जीवन का अन्तिम छोर है ।इसे सभी को छूना ही पड़ता है। निश्चित रूप से ईश्चर इन पुण्यात्माओं के लिए
जवाब देंहटाएंस्वर्ग में पलक पाँवडे बिछाकर रखता होगा और डगर और मृत्यु इनका सानिध्य पाकर फूली नहीं समाती होंगी।बहुत रोचक और भावों से भरी प्रस्तुति 👌👌👌👌♥️
बहुत बहुत आभार आपका। मेरे मन के करीब इस लघुकथा की आपने इतनी सुंदर सार्थक समीक्षा की । नमन और वंदन प्रिय सखी।
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