सुबह-सुबह मैं हैरान सी क्यूँ हैं? कुछ तो गड़बड़ है, वीणा स्नानघर में कपड़े धोते हुए पास लगे शीशे में खुद को निहारती है, चेहरे पे भी असमंजस की स्थिति स्पष्ट झलक रही है।
अरे हाँ! अब समझ आया, आज चिड़ियाँ नहीं बोलीं। कहाँ गईं ? उनकी चूंचूंचींचीं सब गायब है, क्यूँ वो आज इतनी शांत हैं? क्या बात हो गई?
सोचते हुए वो कपड़े डालने लगी। और देख रही कि कहीं चिड़ियाँ दिख जाएँ। पर कहीं एक भी नहीं। बस दो कौवे बैठे हैं, सामने के घर में वर्षों पुराने एंटीने पर।
गली में कामवाली के दो-तीन बच्चे कल दीवाली में दगे पटाखों में पटाखे ढूँढ रहे।
इतने में एक बच्चे ने चुटपुटी बम पटका, धड़ाम की आवाज आई और कौवे चौंकते हुए फुर्र हो गए।
वीणा समझ गई चिड़ियाँ क्यों और कहाँ गायब हैं?
एक ज्वलंत समस्या !
जवाब देंहटाएंकान-फोड़ शोर-शराबे ने और बढ़ते प्रदूषण ने मासूम पंछियों को शहर छोड़ने को मजबूर कर दिया है. हर घर की शोभा गौरैया तो मानो गायब ही हो गयी है.
वीणा की तरह हमारे भी समझ में आता है कि चिड़ियाँ क्यों और कहाँ गायब हैं
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏💐
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 14 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आदरणीय दीदी,नमस्कार !
हटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी लघुकथा शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐🙏
बेहतरीन रचना समसामयिक समस्या को उकेरती
जवाब देंहटाएंगागर में सागर , शुभकामनाएं सखी
बहुत बहुत आभार आदरणीय अभिलाषा जी ।
जवाब देंहटाएंचिड़िया की चहक सी बहुत ही सुंदर कहानी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंसंदेश परक वृत्तांत ..... और चिंतनीय विषय।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका पुरषोत्तम जी ।आपकी विशेष टिप्पणी ने कथा को सार्थक कर दिया ।
हटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर लिखी गई विचारणीय लघुकथा!
जवाब देंहटाएंचिड़िया का यूँ चले जाना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है! हम ठेंठ गाँव में रहते पर यहाँ भी अब बहुत कम ही चिड़िया की चूं.. चूं सुनाई पड़ती है! और इसी तरह बहुत से जीव जन्तु विलुप्त हो रहें हैं! जैसे रातों में अब पेड़ों पर जुगनू नज़र नहीं आते!सब विलुप्त हो गए हमारी मस्ती और स्वार्थ के चलते!
कथा की सार्थक समीक्षा के साथ सही संदर्भ उठाया अपने प्रिय मनीषा । बिलकुल यही मैं भी देख रही हूं । बहुत आभार
हटाएंकम शब्दों में बहुत बड़ा संदेश दिया है आपने,
जवाब देंहटाएं.
निज खुशी के खातिर हमने छीने है घर कईयों के...
मेरे इस ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है हरीश जी । टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-12-2021) को चर्चा मंच "रजनी उजलो रंग भरे" (चर्चा अंक-4279) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम !
जवाब देंहटाएंइस लघु कथा को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन । हार्दिक शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 🙏💐
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंये चिड़ियाँ भी न दिवाली के पटाखों से ही डरती हैं ..... बाकी जब भी आतिशबाजी होती है तब नहीं .....
जवाब देंहटाएंयूँ बहुत संदेशपरक कथा ....
सुंदर लघुकथा आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और विचारणीय लघुकथा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
जवाब देंहटाएंसचमुच मानव की नादानियाँ पृथ्वी से उस के हर शृंगार को छीन कर ही मानेगा।
जवाब देंहटाएंआने वालेक्षबच्चे पूछेंगे ये चुन चुन करती आती चिड़िया आखिर गई कहां।
विचारणीय लघुकथा।
आदरणीय कुसुम जी आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया ने कथा को सार्थक कर दिया । बिल्कुल सही आपने कहा.. कि कुछ समय के पश्चात लोग पूछेंगे कि आखिर गौरैया भी कही थी । आप को मेरा नमन और बंदन ।
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