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नया खर्चा

"रिक्शा खींचते-खींचते थकते नहीं तुम? कुछ बचत भी करते हो या बस्स.. 

"अरे मैडम क्या थकेंगे? क्या बचत करेंगे हम?  जैसे ही लल्ला का मुँह और पिंकी की फीस याद आती है, पाँव अपने आप और तेज पैडल मारने लगते हैं।”


मंहगाई का हाल तो आप लोगों को भी पता है, क्या आप लोग सब्जी नहीं खाते या गैस नहीं भराते? हम तो गरीब हैं ही . जितना कमाते हैं, उससे ज्यादा घर खर्च, ऊपर से रोज एक नया खर्चा।"


रिक्शेवाला बात ही कर रहा था कि फोन की घंटी बजने लगी, वो अपने घर बात करने लगा..


"अरे घबराओ मत! सवारी उतार दें बस। आ रहे हम। तुम घाव के जगह पर रूमाल लगा के अँगोछा से बाँध दो.. खून रुक जाएगा, तैयारी रखो, आते ही अस्पताल चलेंगे, रिक्शेवाले के सामने "नया खर्चा" मुँह फाड़े खड़ा था।


**जिज्ञासा सिंह**

आशीर्वाद

 "अरे काका ई हमारा बड़का पलंग कहाँ लिए जा रहे  हैं? और ई आपके पीछे हमारी आजी का जगन्नाथपुरी वाला गगरुआ लोटा लिए हरखू आ रहे हैं? हमें ज़रा बताओ तो सही, ये आपको किसने दिया? हम अभी घर के अंदर जाकर पूछते हैं।"

   बम्बा पे पानी भर रही लालती ने अपने घर से निकलते कन्हाई को दो लोगों के साथ घर का सबसे बड़ा पलंग लादे और पीछे हरखू लोहार को हाथ में लोटा लिए जाते देख, रोष प्रकट करते हुए जब टोंका.. तो उन दोनों ने कहा कि.. 

“ये तो आपके बापू नए घर की छत पड़ने पर हमें सरिया कटाई का इनाम दिए हैं बिटिया।” 

 लालती ने बाल्टी उठाई और घर की देहरी से ही "बापू-अम्मा" चिल्लाते हुए गुहार लगाने लगी, सामने खड़ी अम्मा ने अपना हाथ होठों पे रखते हुए चुप होने का इशारा किया।ये देख वो और भी ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगी।


"देखो अम्मा सब कुछ दान कर दे रहे ये बापू, आज नानी का दिया बड़का पलंग और आजी का लोटा गया। कल बुधई पंडित बड़की परात लिए जा रहे थे और बरेठा बाबा खोपड़ी पर बूढ़े बाबा वाली कुर्सी लादे हुए गए हैं आज सुबह, परसों तौ नन्हकू कहांर पानी भराई बाल्टी ले ही गए हैं, और ऊ जमुई बारी को कुछ नही दे पाए बापू तौ शीशम की बनी, आले में रक्खी खूंटी ही दान कर दिए। अम्मा जान लो बापू एक दिन घर बनवाई हमको तुमको भी दान कर देंगे।"


  बेटी के पीछे खड़े शिव बरन मुस्करा रहे थे। उसको गले से लगाया और बोले.. 

“बिटिया इतना बड़ा घर अपने गाँव में हम बना लिए है, ई गृहस्थी का चीज है, फिर बना लेंगे। ये हमारे कामगार हैं, इनके “आशीर्वाद” से कोई कमी नहीं होती जीवन में, बड़ी होगी तब समझोगी इन बातों का अर्थ।”


"हाँ-हाँ आप हम लोगों को भी दान कर दीजिए न बापू।"

"अरे बिटिया.. ई का कह रही?  ग़रीबों को देने से कभी कमी नहीं पड़ती घर में, भगवान चार गुना देते हैं।"


   आज बरसों बाद सुख-सुविधा से संपन्न, बिस्तर पर लेटी लालती को बापू की कही हर बात याद आ रही है और आँखों से आँसू लुढ़क-लुढ़क गालों को सहलाते हुए बह रहे हैं।

  सामने खड़ी सेविका समझा रही है, मेमसाहब सबके बाप को एक न एक दिन इस दुनिया से जाना होता है, फिर आपके बापू तो नब्बे बरस से ऊपर के थे, भरे-पूरे परिवार और हँसते-खेलते बच्चों को छोड़कर गए हैं।


**जिज्ञासा सिंह**