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अपना आसमान.. लघुकथा

 

ऑर्डर-ऑर्डर-ऑर्डर!

    जज ने आनंदी के पक्ष में फ़ैसला सुनाया, आनंदी ने गौरव को कनखियों से देखा। गौरव उनसे अलग होकर दुखी नहीं था, 

होता भी क्यों? उसके जीवन में बहार जैसी रागिनी, पहले से जो थी। वकील को धन्यवाद कह, आनंदी बेटी के साथ चलकर गाड़ी में बैठ गई, सालों की ज़िल्लत आँखों से बहती कि, बेटी ने माँ की आँखों में निहारा, बोली,


“ माँ! आपकी आँखों में हमारा आसमान हँसता हुआ दिख रहा है।"

जिज्ञासा सिंह

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 11 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. मेरी रचना को "पांच लिकों का आनंद" में शामिल करने के लिए बहुत आभार सखी!

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  2. वाह! सखी जिज्ञासा जी ,बहुत खूब!

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  3. दिन ब दिन बढ़ती ऐसी घटनाओं को व्यक्त करती चंद पंक्तियां, दिल को झकझोरती सी।

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  4. सचमुच गागर में सागर .......चाँद पंक्तियों में गहरी बात,सादर नमन जिज्ञासा जी

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  5. छोटे में बहुत कुछ कहती सामर्थ्य वान लेखनी हार्दिक बधाई सुलेखनी को।

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  6. इतनी सार्थक प्रतिक्रिया ने मनोबल बढ़ा दिया आपने बहुत आभार आपका।

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