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बुढ़ापे की कढ़ाई

मेरी दादी तो कमाल हैं माशा अल्ला !

आज भी इतनी दुरुस्त हैंकि क्या कहने ?

हुनरमंदी तो उनसे सीखनी चाहिए  अभी जब बेटी को लेकर घर गई थी मायके.. उनके पास.. अम्मी तो हाथ पे हाथ धरे बैठी दिखें और दादीजान कभी टोपियाँकभी जुराबेंकभी स्वेटर बनाती ही रहीं.. उन पंद्रह दिनों में     मेरे लिए एक जोड़ा दस्ताना भी बुन दिया.. हद तो तब हो गई जब दादा साहब को भेज सिलाई मशीन ठीक कराई और पाँच फ़िराकें सिल डालींमेरी गुड़िया की.. पहनापहना के दादा साहब को ऐसे दिखाएँ कि मैं भी  खुश होऊँ अपनी गुड़िया को देखकर.. याऽऽर ! क्या कहूँ ? अल्ला ताला उन्हें ऐसे ही उमर   नेमत करे और हम  इतनी ही ज़िंदादिल दादी देखते रहें !


आमीन !.. 

कुसुम ने ज़ेबा की बातें सुन ख़ुशी का एलार्म बजाया.. और गहरी साँस लेते हुए कुछ सोचकरबोली अम्मी कैसी हैं ?”


“ अरे दोस्त अम्मी का क्या कहूँ ? वो तो उमरदराज़ बुढ़िया की तरह पचपन साल की उमर में ही हो रही हैंहर वक़्तख़ाली बैठी दादी को ही नख़रेबाज़ बताती हैं  मैंने बहुत समझाया,पर वह कहाँ सुनने वालीं ? वही पुरानी आदत ?” 


उसी घर में में दादी नई-नई चीज़ें यूट्यूब से सीख के बुढ़ापे की कढ़ाई करती रहती हैं और अम्मी कोफ़्त में बूढ़ी हुई जारही हैं 


**जिज्ञासा सिंह**

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-08-2022) को "उमड़-घुमड़ कर बादल छाये" (चर्चा अंक 4531) पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. रचना के चयन के लिए आदरणीय शास्त्री जी आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. बहुत सी स्त्रियाँ वक़्त के साथ स्वयं को बदल जीवन का आनंद ले सकती हैं। इस ओर इंगित करती सार्थक लघुकथा।

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय दीदी।

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  3. वाक़ई, नया सीखने के लिए और कर्मठ बने रहने के लिए उम्र की बंदिश नहीं होती और निकम्मे तो अपनी जवानी में ही बूढ़े-लाचार हो जाते हैं.

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    1. आशा है आपको ये लघुकथा प्रेरणीय लगी होगी । आपका आभार आदरणीय।

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  4. वाह जितना हुनर हमारी दादी -नानी के पास था आने वली पीढ़ी ....को भी हुनर निखारने होंगे

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    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है।सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार ।

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  5. बड़े काम की चीज है यूट्यूब। कुढ़ने वाले कुढ़ते रहे दादी हो तो ऐसी

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  6. यह मात्र लघुकथा नहीं, बल्कि समाज का सच है। वरिष्ठ जनों का हुनर और उनकी सक्रियता नयी पीढ़ी के लिए वाक़ई प्रेरणादायक है।

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  7. आपकी इतनी सकारात्मक प्रतिक्रिया ने लघुकथा को सार्थक कर दिया। आपका बहुत बहुत आभार।

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  8. वरिष्ठ जनों ने संघर्ष का जीवन जिया है जिससे उनकी जीवटता हमेशा बनी रहती है।उनका सक्रिय रहना उनके भीतर के आत्मविश्वास का प्रतीक है।प्रेरक कथानक के लिए बधाई और आभार प्रिय जिज्ञासा जी।

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