इनको भी गाँव में चैन नहीं। जब देखो तब अपने बेटे का सिर खाते रहते हैं। बुला लो-बुला लो बेटा! बहुत दिन हो गया, तुम लोगों से मिले हुए। बच्चों की याद आ रही। बच्चे न कच्चे! इन्हें तो बस अपनी पड़ी है। साल भर में एक बार आएँ तो भी ठीक। ये तो अब यहीं रहना चाहते हैं, अभी तो भले चंगे हैं। जबकि आपकी अम्मा जी से बड़े हैं।
देखिए न! अब आपकी अम्मा जी तो पाँच साल पहले ही चली गईं लेकिन ये तो संजीवन बूटी पिए हैं, इनकी भगवान के यहाँ पूँछ नहीं.. न जाने कब..क्या कहूँ ? इनसे भी तो नहीं कह सकती । हमेशा कुछ न कुछ कहानी गढ़े रहते हैं, बाप-बेटा।”
शालू अपनी धुन में इतनी लीन हो गई
कि उसे पता जी नहीं चला कि बाबू जी कब उसके पीछे आके खड़े हो गए और झिझकते हुए सिर नीचा करके बोले देखो बहू तुम्हारे लिए गाँव से ये जौ चने का सत्तू, और अपने पेड़ की अमिया लाया हूँ ।
सत्तू के साथ अमिया का पना बनाना । गर्मियों में लू नहीं लगेगी।
हाँ देखो ये गन्ने का सिरका भी बड़ा फायदेमंद है। तुम्हे पिछले साल लू लग गई थी न । अपना ख़्याल नहीं करती बेटा तुम ।
तभी तो मैं आने के लिए परेशान था । परसों गाँव का एक मुकदमा अपनी कचहरी में लगा है, मैं कल चला जाऊँगा । बिटिया के पेपर भी हैं, तुम्हें कोई तकलीफ़ नही दूँगा ।
वो तो ..वो तो.. ऐसे ही..वो बाबू जी को अचानक देख
शालिनी हड़बड़ा गई ।
उसने जल्दी से अपना आँचल ठीक किया और पैरो में झुकते हुए बोली..चरण स्पर्श बाबू जी ।
बाबू जी ने उसके शीश पर हाथ रखते हुए कहा जीती रहो बेटी । सानंद रहो, भगवान तुम्हें लंबी उमर दें ।
दीवार के उस पार खड़ी नीलम अवाक रह गई ।
**जिज्ञासा सिंह**
पड़ौसन नीलम भले अवाक रह गयी हो पर मोटी खाल वाली शालू पर कोई असर नहीं पड़ा होगा.
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप को अपने बच्चों से उतने ही सम्बन्ध रखने चाहिए जितना कि उनके बच्चे उन से रखते हैं.
जी, सही कहा आपने । सहमत हूं आपसे ।
हटाएंकभी कभी कुछ ऐसे दृश्य आहत कर जाते हैं।
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभारी हूं।
प्रिय जिज्ञासा जी, इस मर्मांतक कथा और गोपेश जी के विचारों को पढ़ गोस्वामी जी की पंक्तियाँ याद आ गईं
जवाब देंहटाएं------*---*---
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
बस आजकल के बाबूजीओं को ये बात समझ लेनी चाहिए कि वह पीढ़ी गुजर चुकी जिसके लिए चने के सत्तू , अपने आम की अमियाँ और गन्ने के सिरके के साथ बाबूजी के कंपकंपाते हाथों के स्नेहिल आशीर्वाद की कद्र थी।शालिनी जैसी एकलखोर गृहस्वामिनीयों ने देहाती सरल और निश्छल बाबूजी और माओँ का मोल घटा दिया है।पर समय का पहिया गोल घूमता है।आज जहाँ बाबूजी खड़ें हैं वहाँ शायद शालिनी खड़ी हो।एक मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई।
इतनी सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार प्रिय सखी ।
जवाब देंहटाएंआपकी एक एक बात सही है ।
भांति भांति के अनुभवों के बीच ऐसे भी अनुभव से कभी कभी दो चार होना ही पड़ जाता है।
ऐसे लोग ये कभी भी नहीं सोचते कि कल उन्हें भी उसी दौर से गुजरना है.. या फिर बाबूजी की जगह अपने पिता को रखकर सोचें ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक एवं मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं जिज्ञासा जी!
जी बिलकुल सही कहा आपने ।
हटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
बेटा भी माता पिता की तभी सेवा कर पाता है जब बहू सास ससुर को मान सम्मान दे । उनको अपना माने । सभी शालिनी जैसी नहीं होतीं लेकिन काफी ऐसी होती हैं ।।
जवाब देंहटाएंमार्मिक लघुकथा ।
सार्थक टिप्पणी के लिए आपका बहुत आभार।
हटाएंअत्यंत मार्मिक सच।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ।
हटाएंआपकी लिखी रचना शुकवार 24 जून 2022 को साझा की गई है ,पांच लिंकों का आनंद पर...
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
इस लघुकथा का चयन मेरे लिए सौभाग्य है। आपका बहुत बहुत आभार और हार्दिक अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंसत्यकथा
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी।
हटाएंसमाज के कटु सत्य को इंगित करती मार्मिक लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार मीना जी ।
हटाएंये तो अब घर घर की कहानी सा होता जा रहा है| मार्मिक किन्तु सत्य
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है।
हटाएंआखिर क्यों बहुओं को अपने सास ससुर खराब लगते है?यदि ऐसा ही व्यवहार उनके भाभी ने अपने सास ससुर के साथ किया तो क्या होगा? बहुत सुंदर लघुकथा, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी ।
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जवाब देंहटाएंबहुएँ ये क्यों भूल जाती हैं कि जीवन के जिन सुखों को वो भोग रही है,जिस पति के वैभव की सम्राज्ञी बनी बैठी है उसका कारण तो वही माता-पिता है जो उसे फूटी आँख नहीं भाते।अपने परिवार के बुजुर्गों का सम्मान न करने वाले असंवेदनहीन लोगों को याद रखना चाहिए कि समय चक्र में उनकी बारी भी आयेगी।
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मर्म को झकझोरती संदेशात्मक कथा ।
सस्नेह।
सार्थक समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया प्रिय श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक कथा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी ।
जवाब देंहटाएंआपकी लघुकथा हृदयस्पर्शी है जिज्ञासा जी। आपकी लेखनी गद्य में भी उसी निपुणता से चलती है जिस निपुणता से पद्य में। अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेंद्र भाई । सादर नमन आपको ।
हटाएंबहुत सुंदर ।बधाई ।
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