यहाँ घर में,कांता के मोबाइल में भी आठ आँखें बड़े गौर से उस वीडियो को देखने में व्यस्त हैं ।
वीडियो का अंत होते होते पिता जी के मुख से निकल ही गया, कि इसीलिए लड़कियों को बाहर भेजने में डर लगता है।
अब तो हम अपनी सोना को क्या ही बाहर पढ़ाएंगे ?
शांता अवाक और स्तब्ध रह गई ।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत चिंतनशील रचना प्रिय जिज्ञासा जी।एक और पढेगी बेटी तभी पढेगी बेटी का शोर है तो दूसरी और कुछ बेटियों का भद्दे सार्वजनिक आचरण और बिगडे संस्कार दूसरी पढ़ने और आगे बढ़ने वाली बेटियों के मार्ग अवरुद्ध रहे हैं।कहीं ना कहीं हर माता पिता को यह चिन्ता जरुर सताती है कि अगर हमारी बेटी भी इसी प्रकार संस्कार विहीन बन गई तो क्या होगा। शिक्षित बेटियों का ये अशिष्ट व्यवहार एक नयी सामाजिक चिन्ता को जन्म दे रहा।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्रतिक्रिया ।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया ने इस लघुकथा को सार्थक कर दिया ।
समाज में हर घटना के कई पहलू, कई परिणाम होते हैं,जो कि विमर्श के मुद्दे हैं।
आपका बहुत बहुत आभार रेणु जी ।
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकुछ लड़कियों की हरकतों के कारण वास्तव में पढ़ने लिखने वाली लड़कियों के पढ़ाई पर असर पड़ता है,इनकी गलती की सजा अन्य लड़कियों को भुगतनी पड़ती है! बाप होने के नाते ऐसा डर पैदा होना लाजमी है पर कहीं न कहीं रूढ़िवादी सोच की वजह भी जिम्मेदार है क्योंकि जिस तरह पांचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती वैसे ही सभी लोग एक जैसे नहीं होते इसलिए किसी दूसरे की गलती की सजाअपने बच्चों को देना गलत!अगर लड़की की जगह यहाँ कोई लड़का होता तो पिता जी के मुख से ऐसी बात नहीं निकलती! लेकिन लड़कियों की हरकते बहुत ही चिंतनीय है! शिक्षा हमें सभ्य बनाती है न कि असभ्य होना! बहुत सी लड़कियां हैं जो गाँव में रहती थी तो उनकी भाषा बहुत ही सभ्य थी पर बाहर पढ़ने गयी तो उनकी भाषा बहुत ही असभ्य हो गयी हर शब्द में साला आदि शब्द इस्तेमाल करने लगी! ये कैसी शिक्षा है?
बहुत सार्थक प्रतिक्रिया ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही व्यवहारिक और सामयिक चिंतन का विषय है ।
समाज में हर घटना के कई पहलू, कई परिणाम होते हैं,जो कि विमर्श के मुद्दे हैं,बहुत बहुत आभार मनीषा ।
आपकी लिखी रचना सोमवार २३ मई 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरी लघुकथा का चयन करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन आदरणीय दीदी । एक सुंदर अंक के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
हटाएंकिसी की गलती दूसरी क्यों भुगते
जवाब देंहटाएंयह मानसिकता बदलनी पड़ेगी
अगर लड़कियों के साथ रुढ़िवादी सोच जोड़ी जाएगी तो फिर इसे लड़कों के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए
शराब तो लड़के भी पीते है,छेड़छाड़ भी करते है फिर इनके लिए पाबंदी क्यों नहीं.
बाहर क्या हो रहा है,सड़क पर क्या हो रहा है होने दे ,नजरअंदाज करें
और अपनी बेटियों पर विश्वास रखें
बेटियां पिता का नाम रोशन ही करती हैं.
आपकी छोटी सी कहानी ने बहुत कुछ कह दिया
यह चिंतन और मनन का विषय है.
बहुत आभार आदरणीय ज्योति जी । आपका अवलोकन मेरे लिए अमूल्य है । स्नेह की आभारी हूं।
हटाएंसार्थक
जवाब देंहटाएंसादर..
बहुत आभार आपका । आपकी प्रशंसा को नमन है ।
हटाएंआधुनिकता की होड़ में माता-पिता के दिये हुए स्वतंत्रता और विश्वास को तार तार करती,संस्कारों को.शर्मसार करती लड़कियों की हिमायत तो कभी नहीं की जा सकती है। इन लड़कियों के आचरण से अन्य प्रतिभाशाली बेटियों के माता पिता के मन में भय और असुरक्षा की भावनाघर कर रही है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय लघुकथा जिज्ञासा जी।
सस्नेह।
आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया ने लघुकथा को सार्थक कर दिया ।बहुत आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंगागर में सागर । सुंदर लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंआज के परिप्रेक्ष्य पर सटीक लघु कथा, सचमुच कई लड़कियाँ आत्मनिर्भरता और पुरुषों से बराबरी के चक्कर में गलत संगत में फस कर जीवन बर्बाद कर रही है अपना और आने वाली नवीन पीढ़ी का ।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन परक लघुकथा।