अरे अजनारा तुम कैसे ? कहाँ से आ रही हो ? तुम तो बाहर चली गईं थीं । अरे हाँ ! तुम तो शायद हैदराबाद गई थीं, कब आईं वहाँ से ? क्या हुआ ? सपरिवार लौट आई क्या ? या तुम्हारा घरवाला अभी वहीं है ? क्या हुआ ? इस तरह से चुप क्यों हो ?
आज़ तीन साल बाद अजनारा को देखते ही मैंने सवालों की झड़ी लगा दी और वह खामोशी से मेरी बातों को सुनती रही । कहती भी क्या ? वह बेचारी तो अपने पति के साथ न चाहते हुए भी अपने सारे लगे लगाए काम छोड़कर हैदराबाद गयी थी ।मैंने उसे कितना रोका था कि तू इतने छोटे बच्चों को लेकर अजनबी शहर में कैसे रहेगी ? फिर तेरा घरवाला भी कोई ख़ास कमाऊ नहीं है, जो तेरे चार बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाएगा, इसके अलावा उसकी रोज़ नशा खोरी की आदतें तुझे कहीं भूखों मरने के लिए न मजबूर कर दें । कुछ तो मैं अजनारा के लिए चिंतित थी,उससे ज़्यादा मैं अपने लिए थी,क्योंकि वह मेरी बारह साल पुरानी कामवाली थी, जिसके भरोसे मैंने अपने छोटे छोटे बच्चों को पालकर बड़ा किया था, इसके अलावा मेरे हर सुख दुःख में उसने मेरा ऐसे साथ निभाया था, जैसे वह मेरे पिछले जन्म की क़र्ज़दार हो ।हाँ मैंने भी अपनी तरफ़ से उसके लिए, कुछ भी करने में कोई कोर कसर, कभी भी नहीं छोड़ी, उसे जब भी कोई ज़रूरत पड़ी, मैं हमेशा खड़ी रही । इसलिए मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती थी, कि वह मुझे छोड़कर कहीं और काम के तलाश में जा सकती है । चूँकि सुबह से शाम तक मैं अजनारा- अजनारा करती रहती थी और उसने भी कभी किसी काम के लिए मना नहीं किया, इसलिए मुझे उसके बिना अपने घर का कोई काम होता दिखाई ही नहीं देता था । और मुझे उसकी आदत सी पड़ गई थी ।
पर मैं उसे कितना समझा सकती थी ? जब उसका घरवाला उसे नहीं छोड़ रहा था, तो वह रुकती भी तो कैसे ? वह अपना हिसाब कर अपने घरवाले के साथ,ज़्यादा पैसा कमाने हैदराबाद चली गई थी ।आज इतने दिनों बाद अपने दरवाज़े पर रुआंसी सी अजनारा को देख मैं हतप्रभ थी, मेरे कई बार पूँछने के बाद वह रोती हुई बोली कि यहाँ से जाने के बाद , उसके घरवाले ने उसे कभी कोई काम नहीं करने दिया पर उसकी बड़ी बेटी को किसी के घर छोड़ आया और बोला कि अब हमें कभी भी पैसों की कमी नहीं पड़ेगी,मेमसाहब तब से आज तक मैंने बेटी को एकबार भी नहीं देखा, और घरवाला खुद दारू पी कर पड़ा रहता है और जैसे ही नशा उतरता है, फिर कहीं से पैसे लाता है और खा पी के खत्म कर देता है, इतना कहते कहते वह ज़ोर ज़ोर से रोते हुए मेरे पैरों पे गिर पड़ी और गिड़गिड़ाने लगी, मेमसाहब मेरी लड़की को बचा लीजिए ,मेरी लड़की को घरवाले ने बेंच दिया है वो लोग उसको अब हमें नहीं देंगे,घरवाले ने उनसे पैसा ले लिया है, घरवाले ने मुझसे झूठ बुलवाया था कि हम हैदराबाद जा रहे हैं, हम कहीं नहीं गए थे, हम तो यहीं छुप के रह रहे थे । मेमसाहब माफ़ कर दीजिए। वो बराबर रोये जा रही थी, और मैं अचम्भे से उसे देखे और सुने जा रही थी ।
मुझसे जब नहीं सुना गया तो मैंने उसे चुप कराया और पीने के लिए पानी दिया, अब वह थोड़ी शांत थी, मैंने संयत होकर कहा, कि अब वह मुझसे क्या चाहती है ? उसने कहा कि उसका घरवाला सात दिन से ग़ायब है, मिल नहीं रहा है ।मैं ढूँढ ढूँढ के थक गई हूँ ।पुलिस भी कुछ नहीं बता रही है। मेरा तो सिर चकरा गया कि अब क्या करूँ ?फिर भी मैंने अपने जानने वाले एक पुलिस वाले को फ़ोन किया जो उसी इलाक़े का इंचार्ज था । बाद में पता चला कि उसका पति नशे की हालत में, किसी फूटपाथ पर पड़ा हुआ मिला,उसने इतना नशा कर लिया था कि फिर कभी उठ नहीं पाया, उसकी मौत हो गई ।
आज जब अजनारा पति और बेटी को खोकर, बिल्कुल असहाय, जर्जर, ग़रीबी और भुखमरी के कगार पर पहुँच गई, तब दोबारा मेरे पास आई है । मैं क्या करूँ ? कि उसका थोड़ा सा दर्द कम हो जाय। इसी सोच में डूबी मैं अपने ही कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाश रही हूँ ?
**जिज्ञासा सिंह**