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महिला ग्राम प्रधान की घरेलू विसंगतियाँ (महिला सशक्तिकरण )

   कुछ सोचते हुए मैं ग्राम प्रधान के सीढ़ीदार घर पे एक-एक सीढ़ी चढ़ रही थी, और घर के दालान से ,छन-छन के आ रही,कई लोगों के बतियाने की आवाज़ सुन रही थी , अचानक किसी ने कहा, सुनो प्रधान बाबू अबकी बार तो महिला सीट थी, चाची चुनाव लड़ीं और प्रधान हो गईं और तुम मुँह देखते रह गए । इतनी सी बात के बाद प्रधान जी की ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। ये कहते हुए वो चीख रहे थे वो, कि कौन है ? जो कहता है ? कि चाची प्रधान हैं, अरे दस्तखत कर देने से कोई प्रधान हो जाता है, बीस साल से घर तो सम्भाल नहीं पाई । पंचायत संभालेंगी वो । अपने लड़के बच्चे सम्भाल लें, समझो इनकी प्रधानी मुकम्मल है । इनके बस का कुछ नहीं है । इस संसार में औरतों से कुछ सम्भला है भला । झूठे औरतों  को बढ़ावा दे रही है सरकार । करना धरना तो सब,हम आदमी जात को ही है ।

            इतना सुनकर मैं प्रधान जी के दरवाज़े पे ठिठकी और ऊपर जाने के बजाय उल्टे पाँव धीरे से लौट ली और रास्ते भर सोचती रही कि क्या हम औरतें इतनी ही नाकाबिल हैं या हमें इतना सब सुनने के लिए पाला ही गया है,आख़िर उस महिला का क्या दोष है ? जो चार हज़ार लोगों की, ग्राम सभा की प्रधान है ।कुछ न कुछ तो उनमें क़ाबिलियत होगी ही ,जो लोगों ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना है, मेरा जिज्ञासु मन ये जानने के लिए व्याकुल हो गया कि सच में हमारी ग्राम प्रधान की क्या खूबी है? जो इतने महिला विरोधी मानसिकता वाले पति के रहते प्रधान हो गईं ,आख़िरकार ये उनके घर की पहली प्रधानी जो है। 

            चूँकि मैं बाहर रहती हूँ और अपने गाँव कभी कभी आती हूँ , इसलिए मैंने अपने गाँव के जागरूक लोगों से विस्तृत चर्चा की, तदुपरांत जो सच्चाई सामने आई,उसे सुनकर मैं दंग रह गई ।मुझे पता चला कि ग्राम पंचायतों में महिला प्रधान के जितने भी कार्य हैं, चाहे वो जनपद स्तर के हों,ब्लॉक स्तर के हों, या ग्राम स्तर के, हर कार्य मेरे गाँव की महिला प्रधान अपने पति से ज़्यादा अच्छा करने में सक्षम हैं,साथ ही साथ उनके अंदर सेवा भाव तथा गाँव के विकास को लेकर एक विस्तृत खाका है,जिससे पंचायत के चुनाव के समय में लोग ख़ासा प्रभावित हुए और उन्हें वोट देकर विजयी बनाया था।परंतु आज सारा खेल ही उल्टा हो गया है।प्रधान तो पत्नी है, और कार्य क्षेत्र पतिदेव सम्भाल रहे हैं ,जो कि पत्नी से कम पढ़े लिखे हैं ।प्रधानी जीतने के बाद उन्होंने पत्नी का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है ,उड़ती उड़ती तो ये खबर सुनायी पड़ी, कि पत्नी अगर घर से बाहर निकलीं और लोगों से मिलीं, तो बाहर की हवा लगेगी और वो बिगड़ जाएँगी।अतः सारा कार्यभार उन्होंने सम्भाल लिया है । और पत्नी को जब बहुत ज़रूरी काम हो,जो पति द्वारा किए जाने पर, दंड भुगतना पड़ सकता है, तभी अपनी छत्रछाया में उन्हें ले जाते हैं ।कभी कभी तो प्रधान पति, पत्नी की जगह अपना दस्तख़त करने से भी नहीं चूकते। 

        मैं इन बातों को सुनकर हैरान हुई,और सोचने लगी कि इस तरह तो गाँव को महिला प्रधान होने का कोई फ़ायदा नहीं मिल सकता, और महिला प्रधान अपनी प्रतिभा के द्वारा कोई कार्य कर ही नहीं पाएगी, इसके लिए सरकार को और समाज को कोई न कोई ठोस कदम उठाने होंगे ।जिससे महिला प्रधान अपने हिसाब से अपने कार्य को करे और ग्रामीण जीवन की हर छोटी बड़ी समस्या का निराकरण कर सके तथा गाँव के  साथ साथ ग्रामीण महिलाओं और उनके बच्चों के जीवन स्तर में सुधार ला सके । तभी गाँवों को महिला प्रधान होने का फ़ायदा मिलेगा।

                                                       **जिज्ञासा सिंह**

21 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय जिज्ञासा जी, सबसे पहले तो आपको इस
    नये ब्लॉग की हार्दिक बधाई। आपका ये ब्लॉग आपके विचारों को गागर में सागर की तरह समेटे और आपके यश का प्रतीक बने, मेरी यही कामना और दुआ है। सस्नेह शुभकामनायें 🙏🌹❤❤🌹

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    1. आप की इतनी प्यारी और शुभकामना भरी प्रशंसा से भावविभोर हूँ रेणु बहन , जितना आभार व्यक्त करूँ,कम ही है । हार्दिक शुभकामना सहित जिज्ञासा..।

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  2. प्रिय जिज्ञासा जी, आपका लेख पढ़ा, आश्चर्य नहीं हुआ। ऐसे प्रकरण बहुधा सुने जा सकते हैं। गाँव गली की हालत और खराब है। हालांकि यदि मैं अपने क्षेत्र की बात कहूँ तो वहाँ स्थिति भले 100 प्रतिशत सही ना हो, तो भी बहुत खराब हो ऐसा मैंने नहीं देखा।वहाँ अपेक्षाकृत हालात कुछ बेहतर हैं। औरत को मात्र एक मोहरा समझा गया है और बाहर जाकर बिगड़ जायेगी -जैसी वाहियात बात जोड़कर लोग अपनी कुत्सित मानसिकता ज़ाहिर किये बिना नहीं रह सकते। औसत नारी आज भी पराधीन और अपने निर्णय स्वयं लेने में अक्षम है अथवा उसे ऐसा बना दिया गया है। नारी विमर्श पर एक सार्थक, चिंतनपरक आलेख के लिए बहुत -बहुत बहुत आभार और शुभकामनाएं।

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  3. बिल्कुल सही कहा आपने , मैंने जो लिखा वो बहुत क़रीब से अनुभव किया,यूँ समझिए कि मेरे गाँव के घर परिवार के लोगों में से, सभी तो नहीं, परंतु एक दो लोग इस मानसिकता से ग्रस्त ज़रूर मिलेंगे । गाँव तो छोड़िए,शहरों में भी कुछ एक लोग मिल जाएँगे ।ख़ैर बदलाव हो रहा है और होकर रहेगा ..।इसी आशा और विश्वास की, शुभकामनाओं के साथ..आपका आभार व्यक्त करती हूँ...जिज्ञासा ।

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  4. बहुत सुन्दर।
    गुरु नानक देव जयन्ती
    और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  5. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा सोमवार ( 07-12-2020) को "वसुधा के अंचल पर" (चर्चा अंक- 3908) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    "मीना भारद्वाज"

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  6. आदरणीय मीना जी, नमस्कार ! मेरे लेख को, चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ...।सादर नमन...।

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  7. भ्रष्टाचार समाप्त करने, समाज की स्थिति बदल जाने, महिलाओं को जागरूक करने हेतु गाँव में हवा बदली गयी लेकिन आपकी कहानी ही अधिकतर गाँवों में पायी जाती है।

    सच्ची लेखनी

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    1. आदरणीया दीदी, प्रणाम ! आपका स्नेह इस ब्लॉग पर मिला। जिससे अभिभूत हूँ । आपने जो कुछ कहा वो बिल्कुल सत्य है । बदलाव तो हो रहा है समाज में,पर न के बराबर । कभी कभी तो स्त्रियों की स्थिति देखकर मन द्रवित हो जाता है ।आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए आभार व्यक्त करती हूँ..।सादर..।

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    1. ओंकार जी नमस्कार ! इस ब्लॉग को आपने समय दिया और पढ़ा । जिसका मैं स्वागत करती हूँ,आपके स्नेह को नमन है..।

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  9. कि कौन है ? जो कहता है ? कि चाची प्रधान हैं, अरे दस्तखत कर देने से कोई प्रधान हो जाता है...सटीक व्याख्या वर्तमान की।
    बहुत ही सुंदर सराहनीय।

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    1. अनीता जी, आप ने ब्लॉग पे रुचि दिखाई और अक्षरशः पढ़कर प्रतिक्रिया दी, जिसका मैं कोटि कोटि आभार व्यक्त करती हूँ, आपकी प्रशंसा को मेरा नमन है..।

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  10. सामयिक विषय, महिला सशक्तिकरण पर अनुसंधानात्मक रौशनी डालती हुई प्रभावशाली लेख।

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  11. शान्तनु जी, आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया का स्वागत करती हूँ..। आप ने मेरे लेख को पढ़ा ये अपने आप में मेरे लिए ये हर्ष का विषय है ।सादर नमन..।

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  12. मैं तो व्यंग्य लेख समझ कर आया था इस पृष्ठ पर जिज्ञासा जी लेकिन यह तो गंभीर रचना निकली । जो आपने लिखा है, वो गांव-गांव का सच है और स्थानीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को दिए गए आरक्षण का निंदनीय उपहास है । महिला दिवस के अवसर पर ऐसी महिलाओं को भी संकल्प लेना चाहिए कि अपने पद एवं अधिकरों का प्रयोग वे स्वयं ही करेंगी और घर के पुरुषों को अपनी इस स्थिति का दुरूपयोग नहीं करने देंगी ।

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  13. आपका कथन सही है, महिलाओं को संकल्प लेना चाहिए..परंतु ग्रामीण महिलाएं अभी बहुत अक्षम हैं अभी यह सोचने में, उन्हें बहुत आगे बढ़ने की जरूरत है, वो तो चुनाव इसलिए लड़ती है क्योंकि महिला सीट हो जाती है वरना सामान्य सीट में तो पुरुष ही चुनाव लड़ेगा..आपका बहुत आभार..

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  14. प्रिय जिज्ञासा जी , पांच लिंक के मंच पर आज आपके लेख को पाकर अच्छा लगा | हार्दिक बधाई स्वीकार करें |

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  15. आप जैसी प्यारी सखी को हार्दिक आभार, जिसने मुझे यह सूचना दी, सस्नेह जिज्ञासा सिंह ।

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  16. सादर नमस्कार
    महिला सशक्तिकरण पर प्रभावशाली लेख।

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