अन्य ब्लॉग
एक पल की ख़ुशी
पछतावा
महीनों बाद माली के आते ही राधिका के तेवर गर्म हो गए,उसने माली के ऊपर चिल्लाना शुरू कर दिया और बगीचे में दौड़ दौड़ कर बिखरे हुए सूखे पत्तों तथा टूटी सड़ी लकड़ियों को दिखाते हुए उलाहना देने लगी कि काम करना हो तो ठीक से करो वरना हमें बता दो,हम किसी और को रख लेंगे।
वर्षों पुराना माली सुनते सुनते थक गया और सोचने लगा कि मैं तो इतना बीमार था पर मेमसाहब ने एक बार भी हाल नहीं पूँछा कि तुम इतने दिन बाद क्यों आए हो ? ऊपर से इतना उलाहना ।वह मन ही मन बड़बड़ाने लगा, न बाबा न,मुझे अब काम ही नहीं करना, मेरे तो बच्चे भी कह रहे थे,कि बाबू बूढ़े हो गए हो चुपचाप घर में रहो और भगवान का भजन करो, जब मेरे बच्चे मेरे साथ हैं,तो फिर मैं क्यूँ ये कोठियों के चक्कर काटूँ ?
आज ही सारे काम छोड़ दूँगा, अपना खर्चा ही क्या है ? मुनिया की अम्मा को मरे पाँच साल हो गए, बच्चे पेट पालने के लिए कमाते ही हैं, घर बार भी बनवा दिया है कोई ज़िम्मेदारी नहीं है मुझ पर,मुनिया भी अपने घर में खुश है,सोचते सोचते रग्घू माली का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर चढ़ गया, और उसने ज़ोर से खुरपी पटकी और चिल्लाया; लो सम्भालो अपना काम मेमसाहब, मैं तो चला सुख की रोटी खाने।
राधिका एक बार रग्घू का मुँह देखती और दोबारा अपना गंदला सा बगीचा, उसने सोचा भी नहीं था कि जिस रग्घू को वो पंद्रह साल से ऐसे ही लताड़ रही थी,वो ऐसा भी निर्णय ले सकता है । रग्घू रामधुन गाता हुआ तेज कदमों से अपने घर की तरफ़ भाग रहा है, कि कहीं कोई फिर न उसे बंधुआ बना ले और राधिका हैरान परेशान पछता रही है कि उसने ऐसा क्यों किया ?
**जिज्ञासा सिंह**